पर्यावरण शुद्ध बने गंगा की धार, हरियाली का हो उद्धार
एटा। पर्यावरण मामले में चोट पर चोट हो रही हैं। एटा-कासगंज के एक बड़े क्षेत्र में पतित पावनी गंगा नदी का जोड़ अरसे से है। सोरों,कछला,लहरा से लेकर कादरगंज और पटियाली में बूढ़ी गंगा का दामन पिछले दशक से प्रदूषण के चलते न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक बनता जा रहा है, बल्कि नदी से जुड़ी आस्थाओं पर भी चोट हो रही है।
एटा। पर्यावरण मामले में चोट पर चोट हो रही हैं। एटा-कासगंज के एक बड़े क्षेत्र में पतित पावनी गंगा नदी का जोड़ अरसे से है। सोरों,कछला,लहरा से लेकर कादरगंज और पटियाली में बूढ़ी गंगा का दामन पिछले दशक से प्रदूषण के चलते न सिर्फ पर्यावरण के लिए घातक बनता जा रहा है, बल्कि नदी से जुड़ी आस्थाओं पर भी चोट हो रही है। प्रदूषण का एक बड़ा कारण घाटों पर शवों के अंतिम संस्कार और आस्थावादियों के क्रियाकलापों से है। कछला-सोरों में तो प्रदूषण से गंगा साल दर साल मैली हो रही है। ऐसे में लोगों को जागरूक किए जाने की जरूरत है, जिससे इस पर रोक लगे।
वहीं अस्तित्व खोती जा रही काली नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा को भी पैकेज मिले तो पर्यावरण सुधरे और जनता को भी लाभ हो। हरियाली की नहीं रखवाली जिले के कुल क्षेत्रफल में 154.64 किमी वन आच्छादन क्षेत्रफल है, जो संपूर्ण क्षेत्रफल के अनुरूप 10 फीसद से ज्यादा है। जबकि सरकार की 33 फीसद वन आच्छादन की है। हर साल वृक्षारोपण अभियान सरकारी और निजी स्तर पर होने के बावजूद हरियाली की कमी पूरी नहीं हो रही। वर्ष 2006 में 1268 और वर्ष 2010 से हर साल 350 हेक्टेयर भूभाग पर वन विभाग का रिकॉर्ड वृक्षारोपण की गवाही दे रहा है। हकीकत में पचास फीसद वृक्षों का आच्छादन मौजूद नहीं है। सिर्फ इसलिए कि कुछ हरियाली फर्जीवाड़े तो कुछ संरक्षण के अभाव में पीली पड़ गयी। पैकेज चाहिए और प्रयास भी एटा का वनचेतना केंद्र हो या हरियाली से लोगों को आकर्षित करने वाले दर्जनभर पार्क,पर्यावरण संरक्षण की तमाम संभावनाएं सरकार से बजट न मिलने के कारण ही अटकी हैं। वन चेतना केन्द्र को सरकारी चेतना मिले तो यह पर्यावरण के भी अनुकूल होगा। कटान से हर साल नुकसान वृक्षारोपण में फर्जीवाड़ा तो पर्यावरण के लिए घातक है ही, वहीं गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ से हर साल होने वाले कटान के कारण भी काफी हरियाली गंगा को समर्पित हों जाती है। जबकि गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में इस हरियाली की सुरक्षा के लिए कभी कदम नहीं उठे। कटान से होने वाले नुकसान के रुकने पर ही वृक्षों का संरक्षण हो सकेगा।
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