हरियाली की वकालत
अधिवक्ता का पर्यावरण से क्या वास्ता लेकिन अतरौली की नीलमा पाठक हरियाली की सबसे बड़ी वकील बनकर उभरी हैं। सैकड़ों पौधों को 'गोद' ले रखा है। खुद खाद-पानी डालती हैं। सुबह छह से आठ, दो घटे पर्यावरण के लिए ही समर्पित है। फिर प्रैक्टिस के लिए कोर्ट निकल जाती हैं। रास्ते में कहीं कोई पौधा मुरझाया, बीमार दिख जाए तो कदम
अलीगढ़। अधिवक्ता का पर्यावरण से क्या वास्ता लेकिन अतरौली की नीलमा पाठक हरियाली की सबसे बड़ी वकील बनकर उभरी हैं। सैकड़ों पौधों को 'गोद' ले रखा है। खुद खाद-पानी डालती हैं। सुबह छह से आठ, दो घटे पर्यावरण के लिए ही समर्पित है। फिर प्रैक्टिस के लिए कोर्ट निकल जाती हैं। रास्ते में कहीं कोई पौधा मुरझाया, बीमार दिख जाए तो कदम वहीं रुक जाते हैं। कहना न होगा कि पौधे को नया जीवन मिल जाता है। नीलमा ने इन दिनों स्कूलों-कालेजों में पौधे लगाने का अभियान छेड़ रखा है। बच्चों को पौधों की रक्षा का संकल्प भी दिलाती हैं। हजारों पौधे लगा चुकी नीलमा कहती हैं कि हरियाली के बीच बच्चे रहेंगे तो उन्हें अच्छा संदेश जाएगा। यही बच्चे भविष्य में पर्यावरण के प्रहरी बनेंगे। नीलमा से प्रेरित होकर 10 से ज्यादा महिलाएं उनके साथ जुड़ चुकी हैं। यह टीम पर्व-त्योहार के अवसरों पर गलियों-गावों में जाकर पौधे लगाती है और पास-पड़ोस के लोगों को उसकी सुरक्षा का संकल्प दिलाती है। नीलमा बताती हैं कि मेरे पिता देश के लिए लड़े थे। मैं पर्यावरण के लिए लड़ रही हूं। पर्यावरण नहीं तो हम कहा?'
बहस-
जगानी होगी जनचेतना-
अलीगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर ही समाजसेवी सर सैयद अहमद खा ने यहा एएमयू की नींव डाली थी। तब शहर के बीच दस बड़े बाग थे। ये सब शहरीकरण की भेंट चढ़ गए। उपभोक्तावादी सोच के चलते हमारी बुद्धि विपरीत हो गई है। हम खुद प्रकृति के विनाश की पटकथा लिख रहे हैं। अब तो ऐसा लगने लगा है मानो मानव जीवन की उल्टी गिनती शुरू हो गई हो। जल संकट इस कदर गहरा रहा है कि भविष्य में हम पानी के लिए लड़ेंगे। खेती की जमीन सिकुड़ रही है। जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत में छेद डराने वाले विषय हैं। जैव विविधता नष्ट हो रही है। प्रदूषण इतना कि सास लेना भी मुश्किल हो रहा है। पोखर, तालाब, नदिया, हरियाली सब पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पर्यावरण के विनाश से पशु-पक्षियों का जीवन भी नष्ट हो रहा है। शेखा झील पर आने वाले मेहमान परिंदों की संख्या कम होती जा रही है। यह सब शुभ संकेत नहीं हैं। अब भी नहीं चेते तो मानव सभ्यता गहरे संकट में फंस जाएगी। यह काम सरकार के भरोसे नहीं होगा। जनचेतना जगाने की जरूरत है। अब भी वक्त है। हम अपनी धरा को बचा सकते हैं, सुंदर बना सकते हैं। जहा चाह, वहा राह। आप क्या चाहते हैं?
-सुबोध नंदन शर्मा, अध्यक्ष, हरीतिमा पर्यावरण संरक्षण समिति
जनमत-
कृषि को लेकर सरकार खुद उदासीन है-
कृषि क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में नहीं रह गया है। उदाहरण के लिए यूपी में कुछ समय पहले कृषि स्नातकों के लिए किसान मित्र योजना बनाई गई थी। इसका किसानों को लाभ भी मिला। बसपा सरकार में इसे बंद कर दिया गया। कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान दे रहे हजारों कृषि स्नातक बेरोजगार हो गए। कृषि विभाग में आज भी बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं लेकिन भर्तियों पर रोक लगी हुई है। इससे यही पता चलता है कि कृषि क्षेत्र को लेकर सरकार का रवैया उदासीन है।
वी के भारद्वाज
वी के भारद्वाज123जीमेल.कॉम
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर