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सीएजी बना सबसे बड़ा विपक्ष

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी सीएजी यानी सबसे ताकतवर विपक्ष! यकीनन यूपीए के पिछले तीन साल के दौरान सीएजी विपक्ष ही नही, बल्कि सरकार के खिलाफ खड़ी सबसे ताकतवर जांच एजेसी भी बन गया। सरकार की कमाई व खर्च का हिसाब किताब रखने वाली एक संवैधानिक संस्था ने न केवल मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियो को जेल भेजने की जमीन तैयार की, बल्कि दशकों पुरानी नीतियां को कठघरे मे खड़ा कर दिया।

By Edited By: Published: Tue, 22 May 2012 05:56 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2012 07:45 PM (IST)
सीएजी बना सबसे बड़ा विपक्ष

नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी सीएजी यानी सबसे ताकतवर विपक्ष! यकीनन यूपीए के पिछले तीन साल के दौरान सीएजी विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ खड़ी सबसे ताकतवर जांच एजेंसी भी बन गया। सरकार की कमाई व खर्च का हिसाब किताब रखने वाली एक संवैधानिक संस्था ने न केवल मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को जेल भेजने की जमीन तैयार की, बल्कि दशकों पुरानी नीतियां को कठघरे में खड़ा कर दिया। 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स, एंट्रिक्स-देवास, केजी बेसिन, कोयला खदान से लेकर एयर इंडिया व उर्वरक सब्सिडी रिपोर्टो की मार से पिछले तीन साल सीएजी बनाम सरकार में बदल गए।

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अगर कुछ लोग यूपीए-दो को देश के इतिहास का सबसे भ्रष्ट सरकार की संज्ञा देने लगे हैं तो इसके लिए बहुत हद तक सीएजी जिम्मेदार हैं। 2जी स्पेक्ट्रम से उसने सरकारी भ्रष्टाचार की पोल खोलने शुरू की वह सिलसिला आज तक जारी है। सरकार अभी तक यह फैसला नहीं कर पाई है कि सीएजी की इस बदली हुई भूमिका का सामना किस तरह से किया जाए। स्पेक्ट्रम, कोयला, प्राकृतिक गैस आवंटन में इसकी रिपोर्ट की वजह से ही आज सरकार को प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन को लेकर अपनी नीति बदलनी पड़ी है।

2जी स्पेक्ट्रम पर जब सीएजी की पहली रिपोर्ट आई तो केंद्र सरकार गफलत में रही। पहले इस रिपोर्ट को ही खारिज किया गया, लेकिन फिर पूरी जांच सीबीआई से करवानी पड़ी। यही हाल देवास एंट्रिक्स, कॉमनवेल्थ गेम्स में भी हुआ। यूपीए-दो के शासनकाल में सीएजी ने प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन [2जी स्पेक्ट्रम, कोयला, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम-देवास एंट्रिक्स] लेकर उर्वरक सब्सिडी बदइंतजामी तक कई मामलों में सरकार कठघरे में खड़ा किया। सरकारी कंपनियों के प्रबंधन [एयर इंडिया] से लेकर बड़े आयोजनों [कॉमनवेल्थ गेम्स] के इंतजाम तक सीएजी की पड़तालों का दायरा बहुत विस्तृत था। एक संवैधानिक संस्था जब घोटाला खोल रही हो तो सरकार के लिए इंकार करना भी मुश्किल था। इसलिए सीएजी के रिपोर्टो पर अदातलों संज्ञान लिया गया।

सीएजी के काम काज करने के तरीके भी इस दौरान काफी बदल गए। सीएजी अब घोटालों को आंकड़ा देती है, जिससे नुकसान पहली नजर में सामने आ जाता है और सरकार के लिए जवाब मुश्किल हो जाता है। सीएजी नीतियों में बदलाव की सिफारिश करती है जिसे सरकार की असुविधा बढ़ी है। यह पहला मौका है, जब सरकार को एक नहीं कई बार सीएजी को उसकी सीमायें याद दिलानी पड़ीं। मगर दूसरी तरफ अब घोटालों सीबीआई नहीं बलिक सीएजी जांच की मांग उठने लगी है।

हिसाब की मार

2जी स्पेक्ट्रम-सीएज की रिपोर्ट से सामने आया घोटाला, पीएमओ तक पहुंची लपट।

कॉमनवेल्थ गेम्स-सीएजी ने आयोजन समिति से लेकर दिल्ली सरकार व पीएमओ तक को लपेटा।

एंट्रिक्स-देवास-निजी कंपनी को मनमाने तरीके से स्पेक्ट्रम बेचने का मिला अधिकार, अंतरिक्ष विभाग पीएमओ के तहत।

केजी बेसिन-सरकार ने पहुंचाया रिलायंस इंडस्ट्रीज को फायदा।

एयर इंडिया-सरकार का कुप्रबंधन, जरूरत से ज्यादा विमान खरीदे, भारी लापरवाही।

कोयला ब्लाक आवंटन-निजी कंपनियों को रेवड़ियों की तरह बांटे गए ब्लाक, दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की हानि।

खाद्य सब्सिडी-उर्वरक उत्पादन नहीं बढ़ा लेकिन 50 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी चाट गई कंपनियां।

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