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संसद की कार्यवाही बाधित न होने की व्यवस्था हो

लोकसभा की पहली बैठक की 60वी वर्षगाठ पर रविवार को सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत बताई जिससे ससद की कार्यवाही बाधित नही हो और चर्चा के माध्यम से मुद्दो का समाधान निकाला जाए।

By Edited By: Published: Sun, 13 May 2012 01:14 PM (IST)Updated: Sun, 13 May 2012 04:44 PM (IST)
संसद की कार्यवाही बाधित न होने की व्यवस्था हो

न दिल्ली। लोकसभा की पहली बैठक की 60वीं वर्षगांठ पर रविवार को सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत बताई जिससे संसद की कार्यवाही बाधित नहीं हो और चर्चा के माध्यम से मुद्दों का समाधान निकाला जाए।

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प्रणब ने कहा कि सदन में कई मुद्दों पर उत्तेजना बढ़ जाती है जिसके कारण कार्यवाही बाधित होती है। इसमें हमारे दल के लोग भी होते हैं और दूसरे दलों के लोग होते हैं। लेकिन अगर कामकाज बाधित होता है तब हम अपनी बात नहीं रख पाते। हमें ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरती है जिससे सदन का कामकाज बाधित नहीं हो।

उन्होंने कहा कि शुरू से ही संसद ने किसी भी कठिन परिस्थिति में 'शॉक एबजार्वर ' [झटके सोखने] का काम किया है और अधिकांश समय में संकट को समाप्त करने में सहायक भी रही है। संसदीय लोकतंत्र में संघर्ष की स्थिति आती है लेकिन इन वर्षो में हमने ऐसी प्रणाली तैयार की है जहां से समाधान का रास्ता निकलता है।

सदन के नेता ने कहा कि किसी भी संसदीय व्यवस्था में 60 वर्ष अधिक नहीं होते हैं लेकिन चिंतन के लिए यह महत्वपूर्ण समय होता है। उन्होंने कहा कि जब आजादी के बाद भारत में 1,400 रियसतों का विलय किया गया तब न कोई यातना शिविर बना और कोई गिलोटिन हुआ। यह सब सहिष्णुता से हो गया।

प्रणब ने कहा कि इसी प्रकार से जब हम अंग्रेजों की औपनिवेशिक दासता से मुक्त हुए तब घृणा का भाव नहीं था बल्कि मित्रता के वातावरण में हुआ, इसी का उदाहरण है कि लॉर्ड माउंटबेटन आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल बने।

प्रणब ने कहा कि यह समय है कि हम इस बात पर चिंतन करें कि पिछले 60 वर्षो में क्या पाया, क्या खोया और आगे क्या हासिल किया जाना है।

सदन के नेता ने संविधान में 24वें संशोधन को मील का पत्थर करार दिया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी जब साल 1970 के चुनाव में जनता के समक्ष गई तब उन्होंने कहा कि संदेश दिया कि वह सामाजिक सुधार कानून बनाना चाहती है और इसके लिए उन्हें दो तिहाई बहुमत की जरूरत है, तभी बदलाव का मार्ग प्रशस्त होगा।

उन्होंने कहा कि इसी तरह यह बात भी सामने आई कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है लेकिन मौलिक अधिकारों से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

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