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सुशील कुमार: एक नाम जिसने भारतीय कुश्ती को फिर से पहचान दी

दक्षिणी दिल्ली के नजफगढ़ के बापरोला गांव में 26 मई 1983 को जन्में सुशील कुमार वह भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने भारत को विश्व कुश्ती में एक नई पहचान दी। बचपन से ही अपने पिता व भाई (दोनों पूर्व पहलवान) के जरिए कुश्ती में दिलचस्पी लेने वाले सुशील ने 14 साल के उम्र में ही दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पर अभ्यास करना शुरू कर दिया था। खुद के खराब आर्थिक हालातों के बावजूद सुशील का संघर्ष जारी रहा और अपने परिवार के लगातार मिले समर्थन को सुशील ने जाया नहीं जाने दिया और देश की तरफ से इतिहा

By Edited By: Published: Fri, 23 Aug 2013 11:34 AM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2013 01:52 PM (IST)
सुशील कुमार: एक नाम जिसने भारतीय कुश्ती को फिर से पहचान दी

नई दिल्ली। दक्षिणी दिल्ली के नजफगढ़ के बापरोला गांव में 26 मई 1983 को जन्में सुशील कुमार वह भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने भारत को विश्व कुश्ती में एक नई पहचान दी। बचपन से ही अपने पिता व भाई (दोनों पूर्व पहलवान) के जरिए कुश्ती में दिलचस्पी लेने वाले सुशील ने 14 साल के उम्र में ही दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम पर अभ्यास करना शुरू कर दिया था। खुद के खराब आर्थिक हालातों के बावजूद सुशील का संघर्ष जारी रहा और अपने परिवार के लगातार मिले समर्थन को सुशील ने जाया नहीं जाने दिया और देश की तरफ से इतिहास रचने का गौरव हासिल किया।

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1998 के विश्व कैडेट खेलों में स्वर्ण और उसके बाद एशियन जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीतकर वह सबकी नजरों में आ गए थे। 2003 में एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य और फिर 2003 में कॉमनवेल्थ कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दस्तक दे दी। फिर कुछ और चैंपियनशिप में अच्छे प्रदर्शन के बाद उन्हें 2008 में बीजिंग में खेलने का मौका मिला जहां उन्होंने कांस्य पदक जीत कर 1952 के इतिहास को एक बार फिर से दोहराया। 1952 में यह पदक महाराष्ट्र के खशाबा जाधव ने जीता था। सुशील कुमार ने 66 किग्रा फ्रीस्टाइल में कजाखिस्तान के लियोनिड स्प्रिडोनोव को हराया। सुशील, सतपाल पहलवान के शिष्य हैं। 2011 में सुशील ने अपने गुरू सतपाल की बेटी सावी से विवाह भी किया था।

2010 में सुशील कुमार ने मॉस्को में आयोजित विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर एक बार फिर इतिहास रचा और ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय पहलवान बने। उसी साल कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर भी उन्होंने देश का नाम रोशन किया। वहीं, 2012 के लंदन ओलंपिक में उन्होंने बीजिंग ओलंपिक में जीते अपने कांस्य पदक के रंग में सफलतापूर्वक बदलाव किया और इस बार वह ओलंपिक में रजत पदक जीतने में कामयाब हुए, और दो लगातार ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले वह इतिहास के पहले भारतीय पहलवान बन गए। फाइनल बाउट में उन्होंने तासुहीरो को रौंदा था। सुशील पहलवान होने के साथ-साथ भारतीय रेल में कार्यरत हैं। सुशील की शानदार सफलताओं के चलते उन्हें अब तक राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

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