सबसे अलग है ये महागुरू, अब है 'सुपर हैट्रिक' की तलाश
पिछले एक दशक में भारतीय बैडमिंटन की बदलती तस्वीर का श्रेय जितना भारतीय खिलाड़ियों को जाता है उतना ही कोच पुलेला गोपीचंद को भी जाता है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। किदांबी श्रीकांत ने ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर सीरीज का खिताब जीतकर नया इतिहास रच दिया है। यह न सिर्फ एक बड़ी सफलता है बल्कि टोक्यो ओलंपिक खेलों (2020) से पहले उम्मीदों की नई नींव तैयार होने का आगाज भी है। वैसे पिछले एक दशक में भारतीय बैडमिंटन की बदलती तस्वीर का श्रेय जितना भारतीय खिलाड़ियों को जाता है उतना ही उनकेे गुुुुरू यानी राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद को भी जाता है जो अब एक दिलचस्प और स्वर्णिम हैट्रिक की तलाश में हैं।
- सुपर हैट्रिक पर नजर
2012 लंदन ओलंपिक में साइना नेहवाल कांस्य पदक जीतकर खेलों के महामंच पर ऐसा करने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं। उस समय उनके साथ कोच गोपीचंद ही थे। इसके बाद साइना ने रुख बदला, विनय कुमार के रूप में नया कोच चुना लेकिन गोपीचंद का लक्ष्य बरकरार रहा। चार साल बाद 2016 के रियो ओलंपिक में पीवी सिंधू महिला सिंगल्स फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनीं। वहां उन्हें हार मिली लेकिन पहली बार किसी भारतीय शटलर ने ओलंपिक का रजत पदक झोली में डाला। उस वक्त भी कोर्ट पर गोपीचंद ही गुरू थे। अब पिछले एक हफ्ते में दो खिताब (इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलियन ओपन) जीतकर गोपीचंद के एक और शिष्य (किदांबी श्रीकांत) ने नई उम्मीदों को जन्म दे दिया है। उम्मीदें 2020 के टोक्यो ओलंपिक खेलों की। श्रीकांत इन दिनों इंडोनेशियाई कोच मुल्यो हांदोयो से सीख रहे हैं लेकिन अब भी वो गोपीचंद की अकादमी का ही हिस्सा हैं और अगले ओलंपिक तक अगर गोपीचंद राष्ट्रीय कोच की भूमिका में सक्रिय रहते हैं तो श्रीकांत के साथ कोर्ट पर वही दिखेंगे। वो अपनी अगुआइ में श्रीकांत के जरिए भारत को लगातार तीसरा पदक देने का प्रयास करेंगे। कांस्य और रजत के बाद इस बार लक्ष्य स्वर्ण का हो सकता है क्योंकि पिछले एक हफ्ते में श्रीकांत ने विश्व नंबर.1 कोरियाई खिलाड़ी सोन वान हो और रविवार को ओलंपिक चैंपियन चेन लोंग को हराकर सबको सन्न कर दिया है।
- क्या अपने इरादे बदलेगा संघ?
हाल में भारतीय बैडमिंटन संघ (बीएआइ) और राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद के बीच संबंध थोड़े खट्टे होते नजर आए हैं। फिलहाल माना जाता है कि गोपीचंद के पास एक कोच से ज्यादा अधिकार हैं और हाल में गोपीचंद ने अपने एक बयान से बीएआइ पर सीधा निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि अगर और भी बेहतर नतीजे चाहिए तो उनके अधिकारों को कम करने के बजाय इसे और बढ़ाना चाहिए। दरअसल, बीएआइ अब प्रशासनिक फेरबदल की आड़ में गोपीचंद पर लगाम कसना चाहती है। भारतीय बैडमिंटन संघ के संविधान के मुताबिक एक राष्ट्रीय कोच का कार्यकाल चार वर्षों का होता है लेकिन गोपीचंद 2006 से इस पद पर बरकरार हैं। इसके साथ ही उन पर यह भी आरोप लगाए गए कि वह कोच होने के साथ-साथ बेंगलुरू में अपनी अकादमी का भी संचालन कर रहे हैं और तेलंगाना बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव भी बने हुए हैं। सवाल यही होगा कि इन ताजा सफलताओं के बाद क्या बीएआइ अपने विचारों को विराम देगा या फिर आने वाले दिनों में कोई नया विवाद जन्म लेगा।
- गोपीचंद की सफलताएं
एक खिलाड़ी के तौर पर पुलेला गोपीचंद ने पुरुष सिंगल्स में पांच बड़े खिताब अपने नाम किए थे। जिसमें प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन के अलावा फ्रांस का ला वोलांट ओपन, स्कॉटिश ओपन, इंडिया इंटरनेश्नल और इंडिया एशियन सैटेलाइट चैंपियनशिप के खिताब शामिल रहे। गोपीचंद ने अपने करियर के बाद कोचिंग का रुख किया और 2008 में अपना घर गिरवी रखकर गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी की स्थापना की। उनकी अकादमी ने साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, परुपल्ली कश्यप, किदांबी श्रीकांत और गुरुसाइ दत्त जैसे कई विश्व स्तरीय खिलाड़ी को जगह दी है। उन्हें 1999 में अर्जुन अवॉर्ड, 2001 में राजीव गांधी खेल रत्न, 2005 में पद्म श्री, 2009 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड और 2014 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।