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पेनाल्टी कॉर्नर पैदा करेंगे फर्क

यह हॉकी विश्वकप अनोखा होगा, मेरे लिहाज से चार टॉप के कोचों की प्रतिष्ठा यहां दांव पर होगी। भारतीय टीम का मार्गदर्शन कर रहे टैरी वॉल्श और रोलेंट ओल्टमेंस के अलावा अपना आखिरी विश्व कप टूर्नामेंट खेल रहे ऑस्ट्रेलियाई कोच रिक चा‌र्ल्सवर्थ और बेल्जियम के कोच मार्क लामेर्स टूर्नामेंट का मुख्य आकष

By Edited By: Published: Sat, 31 May 2014 05:52 PM (IST)Updated: Sat, 31 May 2014 05:52 PM (IST)

(जगबीर सिंह का कॉलम)

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यह हॉकी विश्वकप अनोखा होगा, मेरे लिहाज से चार टॉप के कोचों की प्रतिष्ठा यहां दांव पर होगी। भारतीय टीम का मार्गदर्शन कर रहे टैरी वॉल्श और रोलेंट ओल्टमेंस के अलावा अपना आखिरी विश्व कप टूर्नामेंट खेल रहे ऑस्ट्रेलियाई कोच रिक चा‌र्ल्सवर्थ और बेल्जियम के कोच मार्क लामेर्स टूर्नामेंट का मुख्य आकर्षण होंगे। अपनी-अपनी टीमों के साथ ये किस रणनीति के साथ उतरेंगे इस पर सभी की नजरें होंगी। यह टूर्नामेंट इस वजह से भी खास है कि क्योंकि यहां पहली बार ग्रीन फील्ड टी-एक्स टर्फ का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस टर्फ को संपूर्ण टर्फ माना जा रहा है। पहले की टर्फो की माफिक इसमें असमान उछाल नहीं है।

भारत के नजरिए से भी यह टूर्नामेंट बेहद ही महत्वूपर्ण है। 2002 और 2006 में भी भारत ने यहां भाग लिया, दोनों ही बार टीम के कोच भारतीय थे। 2002 के टूर्नामेंट को मैं विवादास्पद कहूंगा क्योंकि भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन को देख कर कोच सेड्रिक डीसूजा को टूनामेंट के दौरान ही कोच के पद से हटा दिया गया, जोकि बेहद ही कड़ा फैसला था। 2006 में भी दयनीय प्रदर्शन रहा और टीम 11वें स्थान पर रही। इसके बाद 2010 में विदेशी कोच होज ब्रासा की अगुआई में टीम विश्व कप में भाग लेने गई, लेकिन मामला तब भी नहीं बना और टीम एक बार फिर निराशाजनक प्रदर्शन करके स्वदेश लौटी। ऐसे में डिसूजा के साथ जो हुआ वह विवादास्पद ही कहलाएगा। आज 2014 में एक नहीं बल्कि दो-दो विश्व स्तरीय विदेशी कोच टीम के साथ जुड़े हुए हैं। टीम के हाई परफॉमर्ेंस निदेशक रोलेंट ओल्टमेंस को नीदरलैंड्स में गोल्डन कोच के नाम से भी पुकारा जाता है। जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है ओल्टमेंस ने अपनी कोचिंग में डच टीम को कई स्वर्ण पदक दिलाए हैं।

इस विश्व कप की एक सबसे बड़ी और खास बाद यह है कि यहां पाकिस्तानी खिलाड़यों की हरी जर्सी नजर नहीं आएगी। पहली बार पाकिस्तानी टीम विश्व कप में नहीं खेल रही है। 2008 में भारत ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सका था औऱ अब छह साल बाद पाकिस्तान इस अहम टूर्नामेंट से बाहर है। यह एशियाई हॉकी के लिए अच्छी बात नहीं।

भारत और बेल्जियम के बीच होने वाले मैच की बात करें तो विश्व रैंकिंग में 8वें स्थान पर बैठे भारत के मुकाबले पांचवीं रैंकिंग की टीम बेल्जियम का पलड़ा भारी है। इसके बावजूद मैच का फैसला पेनाल्टी कॉर्नर पर बहुत हद तक निर्भर करेगा। उनके पास टॉम बून हैं तो हमारे पास रुपिंदर और रघुनाथ के तौर पर दो विशेषज्ञ हैं। मैच को एकतरफा मानना गलती हो सकती है। यहां मैं कोच टैरी वाल्श के उस कथन का जिक्र जरूर करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने कहा कि टूर्नामेंट में यदि भारतीय टीम अपनी रैंकिंग के बराबर ही प्रदर्शन करती है तो वह खुश होंगे। मैं उनके इस कथन को दो नजरिये से देखता हूं। पहला यह कि वह अपेक्षा वाली बात करके खिलाड़ियों पर अतिरिक्त दबाव नहीं डालना चाहते और दूसरा भारतीय अभियान को लो प्रोफाइल रखते हुए वह विपक्षी टीमों के साथ मनोवैज्ञानिक खेल भी खेल रहे हैं। मेरी शुभकामनाएं भारतीय टीम के साथ हैं।

(फॉ‌र्च्यूना सिंडीकेट)


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