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धधकती चिताओं के पास करुण विलाप तो दूसरी तरफ घुंघरुओं की झंकार, महाश्मशान मणिकर्णिका कुछ ऐसा दिखा नजारा

मौका था वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि पर सोमवार को महाश्मशाननाथ के शृंगार महोत्सव की तीसरी निशा का। इसमें देशभर से आईं गणिकाओं ने वर्षों की परंपरा निभाई। अश्रुधार से महाश्मशाननाथ के पांव पखारे और घुंघरुओं की झंकार में उनके अभिशप्त जीवन का हाहाकार उभर आया। नृत्य में मोक्ष कामना के भावों को पिरोया और महाश्मशाननाथ के चरणों में मुक्ति की अर्जी लगा दी।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Published: Tue, 16 Apr 2024 09:54 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2024 09:54 AM (IST)
धधकती चिताओं के पास करुण विलाप तो दूसरी तरफ घुंघरुओं की झंकार, महाश्मशान मणिकर्णिका कुछ ऐसा दिखा नजारा
एकओर चिताओं की आंच तो दूसरी ओर गणिकाओं की नृत्यांजलि। महाश्मशान पर सोमवार को यह दृश्य था। उत्‍तम राय चौधरी

 जागरण संवाददाता, वाराणसी। महाश्मशान मणिकर्णिका पर एक ओर धधकती चिताओं के पास करुण विलाप तो दूसरी तरफ संगीत का आलाप। एक ओर जीवन के अंतिम सत्य को परिभाषित करती चिता अग्नि में भस्म हो रही मनुष्य की नश्वर काया तो दूसरे छोर पर जीवन को जी लेने की ललक जगाती माया।

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चीत्कार और उसके समानांतर खनकती घुंघरुओं की झंकार की शक्ल में राग-विराग एक ही तुला पर तुलता नजर आया। मौका था वासंतिक नवरात्र की सप्तमी तिथि पर सोमवार को महाश्मशाननाथ के शृंगार महोत्सव की तीसरी निशा का। इसमें देशभर से आईं गणिकाओं ने वर्षों की परंपरा निभाई।

अश्रुधार से महाश्मशाननाथ के पांव पखारे और घुंघरुओं की झंकार में उनके अभिशप्त जीवन का हाहाकार उभर आया। नृत्य में मोक्ष कामना के भावों को पिरोया और महाश्मशाननाथ के चरणों में मुक्ति की अर्जी लगा दी।

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गणिकाओं में मान्यता है कि श्मशाननाथ के दरबार में टांकी गई हाजिरी से उनके अधम जीवन का अभिशाप कट जाएगा। इहलोक रास न आया, न सही, परलोक जरूर संवर जाएगा। जनश्रुतियों के अनुसार 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में काशी आए राजा मानसिंह ने मोक्षतीर्थ मणिकर्णिका स्थित श्मशाननाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

परंपरानुसार धार्मिक अनुष्ठान के बाद मंगल उत्सव विधान के लिए शहर के संगीतज्ञों को आमंत्रित किया, लेकिन झिझक-हिचक के चलते स्थापित कलाकारों ने प्रस्तुति से मना कर दिया। इससे व्यथित राजा मानसिंह बगैर उत्सव दिल्ली लौटने की तैयारियों में जुट गए।

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यह खबर जब नगर की गणिकाओं तक पहुंची तो उन्होंने अपने आराध्य नटराज स्वरूप महाश्मशाननाथ की महफिल सजाने का निर्णय लिया और राजा साहब को संदेश भिजवाया। राजा मानसिंह ने उन्हें सम्मान सहित उत्सव में बुलाया और परंपरा चल निकली। इसमें काशी के साथ देश के अन्य प्रांतों से गणिकाएं आने लगीं।

शृंगार महोत्सव के मान-विधान अनुसार सायंकाल फूलों से महमह करते मंदिर में भोग-आरती के बाद तांत्रिक पूजन किया गया। इसके बाद गणिकाओं ने सुर लगाया। ‘दुर्गा दुर्गति नाशिनी...’, ‘डिमिक डिमिक डमरू कर बाजे...’ से स्वर वंदना की। मणिकर्णिका स्रोत प्रस्तुत किया।

खेले मसाने में होरी के साथ ही दादरा, ठुमरी व चैती गायन के साथ नृत्यांजलि प्रस्तुत की। इस दौरान जय पांडेय ने शिव भजनों को स्वर दिया। संयोजन मंदिर व्यवस्थापक गुलशन कपूर व मंदिर समिति के अध्यक्ष चैनू प्रसाद गुप्ता ने किया। महामंत्री बिहारी लाल गुप्ता, विजय शंकर पांडेय, संजय गुप्ता, दीपक तिवारी, अजय गुप्ता आदि ने संयोजन में सहयोग किया।


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