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Lok Sabha Elections 2024: कर्नल राम सिंह का विरोध नहीं किया होता तो शायद ही सांसद बन पाते बैंदा

Lok Sabha Elections 2024 1991 में कर्नल राम सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर महेंद्रगढ़ से चुनाव जीता और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बने। किंतु साल 1995 के बाद से ही हरियाणा सहित उत्तर भारत में कांग्रेस के विरुद्ध हवा बहने लगी थी। भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी गैर कांग्रेसी दलों के नेता के रूप में देशभर में लोकप्रिय हो गए थे।

By Jagran News Edited By: Pooja Tripathi Published: Thu, 28 Mar 2024 11:33 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2024 11:33 AM (IST)
Lok Sabha Elections 2024: कर्नल राम सिंह का विरोध नहीं किया होता तो शायद ही सांसद बन पाते बैंदा
राम सिंह, रामचंद्र बैंदा और अवतार सिंह भड़ाना। फोटो में बाएं से दाएं

बिजेंद्र बंसल, नई दिल्ली। दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल की राजनीति में पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह के बाद पूर्व सांसद और केंद्र में मंत्री रहे कर्नल राम सिंह का नाम भी काफी अहम है।

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ये दोनों दिग्गज नेता यूं तो रिश्तेदार थे, लेकिन इनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी मरते दम तक बरकरार रही। दोनों ने एक-दूसरे के विरुद्ध कई चुनाव लड़े।

1991 में कर्नल राम सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर महेंद्रगढ़ से चुनाव जीता और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बने। किंतु साल 1995 के बाद से ही हरियाणा सहित उत्तर भारत में कांग्रेस के विरुद्ध हवा बहने लगी थी।

भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी गैर कांग्रेसी दलों के नेता के रूप में देशभर में लोकप्रिय हो गए थे। 1996 का लोकसभा चुनाव आते ही कांग्रेस के सांसदों को अपने क्षेत्रों के राजनीतिक मौसम बदलने का आभास होने लगा था।

1996 में सुषमा से मिलकर कर्नल राम सिंह ने प्रशस्त किया भाजपा में जाने का मार्ग

भाजपा भी तब जिताऊ और सशक्त उम्मीदवार ढूंढ रही थी। ऐसे में 1996 में जब लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया था, पार्टियां अपने प्रत्याशी तय करने में जुटी थीं, तब कर्नल राम सिंह ने भाजपा की बड़ी नेता सुषमा स्वराज से गोपनीय रूप से मुलाकात की और अपना भाजपा में शामिल होने का मार्ग प्रशस्त किया।

इतना ही नहीं, सुषमा ने पार्टी की ओर से कर्नल को महेंद्रगढ़ से टिकट देने का भी भरोसा दिलाया। जब बात बन गई तो सुषमा स्वराज और कर्नल राम सिंह कुछ समर्थकों के साथ पैदल ही दिल्ली में 11 अशोक रोड स्थिति भाजपा के तत्कालीन मुख्यालय पर पहुंचे।

तब बैंदा को नहीं जानते थे ज्यादा लोग

केंद्रीय मंत्री के रूप में कर्नल का सरकारी निवास तब अशोक रोड पर ही था। भाजपा मुख्यालय के समक्ष फरीदाबाद सहित अन्य कई लोकसभा क्षेत्रों से भाजपा का टिकट मांगने के लिए टिकटार्थी अपने समर्थकों के साथ पहुंचे हुए थे।

तब फरीदाबाद से टिकट रामचंद्र बैंदा भी मांग रहे थे और अपने समर्थकों के साथ दिल्ली में ही भाजपा मुख्यालय के मुख्य दरवाजे के समक्ष डटे हुए थे। बैंदा को तब पार्टी में कोई ज्यादा लोग नहीं जानते थे।

हां, उस समय उनके साथ एनआइटी फरीदाबाद से पूर्व विधायक रहे चंदर भाटिया भी समर्थक के रूप में मौजूद थे।

अवतार भड़ाना से मुलाकात की सूचना मिलते ही शुरू हो गया था विरोध

भाजपा के वरिष्ठ नेता रणबीर सिंह चंदीला बताते हैं कि कर्नल के बाद सुषमा स्वराज को फरीदाबाद से कांग्रेस सांसद अवतार भड़ाना से भी मुलाकात करनी थी।

इस पक्की सूचना की चर्चा होते ही फरीदाबाद से 11 अशोक रोड पहुंचे कार्यकर्ता उत्तेजित हो गए और उन्होंने सुषमा के सामने बाहरी नेताओं को पार्टी में नहीं लाओ-नहीं लाओ के नारे लगाने शुरू कर दिए।

इस नारेबाजी की चर्चा तब पूरे भाजपा मुख्यालय में हो गई। सुषमा भी कर्नल राम सिंह को पार्टी की सदस्यता दिलवाकर लौट गईं। इस तरह अवतार भड़ाना के भाजपा में शामिल होने की चर्चा भी खत्म हो गई।

फरीदाबाद भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष गोपाल शर्मा बताते हैं कि उस दिन यदि यह घटनाक्रम नहीं होता तो सुषमा स्वराज केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से भी अचानक उठकर नहीं जातीं और संभवतया अपने कुछ और समर्थकों को टिकट दिलवा पातीं।

फरीदाबाद लोस सीट से रामचंद्र बैंदा को मिला था टिकट

बाद में 1996 में फरीदाबाद लोकसभा सीट से रामचंद्र बैंदा को भाजपा का टिकट मिला और बैंदा ने 51 हजार मतों से कांग्रेस के दिग्गज नेता अवतार भड़ाना पर जीत दर्ज की।

बैंदा ने इस सीट से 1998 और 1999 के तीन चुनाव लगातार जीतकर हैट्रिक लगाई थी। हालांकि कर्नल राम सिंह 1996 का चुनाव तो भाजपा के टिकट पर जीते, लेकिन 1998 का चुनाव अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी राव बीरेंद्र सिंह के पुत्र राव इंद्रजीत सिंह से हार गए थे।


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