स्टार्ट अप के प्याले में पीजिए 110 तरह की लाजवाब चाय
एक से बढ़कर एक स्वाद, इतने जायके कि आप गिन न सकें और भूल भी न सकें, जबकि पंचतारा होटलों में मिलती केवल छह तरह की चाय।
रायपुर, दीपक अवस्थी। अगर आप चाय के शौकीन हैं मगर चाय का मतलब आपके लिए ढाक के वही तीन पात है, तो यह खबर बस आपके लिए है। दूध-पानी-चीनी और चायपत्ती के घोल से कहीं हट कर, यहां आपको मिलेंगे पूरे 110 फ्लेवर।
रायपुर, छत्तीसगढ़ का चुस्कीला और बेहद जायकेदार स्टार्टअप चर्चा में है। अलग-अलग 110 जायकों वाली चाय इस अनोखे टी-स्टॉल में परोसी जा रही है। यहां हर तरह के जायके वाली चाय उपलब्ध है। मसलन, केला, संतरा से लेकर आम और गुलाब की सुगंध-स्वाद वाली चाय। इतना ही नहीं, चूल्हे के साथ-साथ तंदूर वाली भी। कड़क गरम के अलावा ठंडी चाय भी। गरज यह कि आपको मानना पड़ेगा कि आप चाय की दुकान पर नहीं, चाय पर अनुसंधान करने वाले किसी अविष्कारक की प्रयोगशाला में मौजूद हैं।
स्टार्ट अप को साधन बनाकर रायपुर के चार हुनरमंदों इरफान अहमद, प्रियांश, काजल वर्मा और उमेश ने राजधानी में चार अलग-अलग स्थानों पर टी स्टॉल लॉन्च किया है। यहां छात्रों, बुजुर्गों के अलावा शाम को परिवार के साथ आने वालों की खासी भीड़ जुटती है। ऐसा नहीं है कि यह कमाल किन्हीं बहुत बड़े होटलों द्वारा किया जा रहा है। ये तो हो रहा है शहर की चार छोटी-छोटी दुकानों में। कीमत भी कुछ खास नहीं। बस, जेब में अधिकतम 70 रुपये हों तो आप 110 में से किसी भी फ्लेवर की चाय का आनंद उठा सकते हैं। जिज्ञासावश यदि तुलना भी की जाए तो रायपुर स्थित एक पांच सितारा होटल में महज छह प्रकार की चाय परोसी जाती है। इनकी कीमत 50 रुपये से शुरू होकर 350 रुपये तक होती है। दूसरी ओर इन दुकानों पर चाय की कीमत 15 रुपये से शुरू होकर अधिकतम 70 रुपये तक जाती है।
चाय में अलग-अलग फ्लेवर के लिए रासायनिक एसेंस नहीं बल्कि फलों का छिलका डाला जाता है। समता कालोनी में 110 फ्लेवर वाली छोटी मगर प्यारी सी चाय की दुकान चलाने वाले प्रियांश बताते हैं कि हम सभी फूल और फल आसपास खेती करने वाले उन किसानों से खरीदते हैं, जो आर्गेनिक पद्धति का इस्तेमाल करते हैं। प्रियांश के अनुसार फलों को खरीदने के बाद उनके छिलके को अलग किया जाता है, सुखाया जाता है। इसके बाद ग्राहक जिस फ्लेवर की मांग करता है, उसे वही उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए बाकायदा मेन्यू कार्ड भी बनवाया गया है।
इरफान बताते हैं कि हमारे यहां ताजे गुलाब की पत्तियों को खौलाकर चाय बनाई जाती है। सुंगध ऐसी मानों हम चाय नहीं, गुलाब की पत्तियों का रस पी रहे हैं। इसके अलावा मिंट चाय, तंदूर चाय, कश्मीरा खाबा की भी खूब मांग है, सभी की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। यहां दहकती भट्ठी के भीतर कुल्हड़ को डाल दिया जाता है। कुल्हड़ जब लाल हो जाता है, तब उसमें डाली जाती है ठंडी चाय। संचालक उमेश बताते हैं कि कुल्हड़ में पड़ते ही चाय में सोंधी मिट्टी का पूरा फ्लेवर उतर जाता है। युवाओ के इस स्टार्ट अप से न केवल इनकी गाड़ी चल पड़ी है बल्कि कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।