सांसद और उद्यमी अच्युत सामंत की मां की कहानी से आप भी सीख सकते हैं सफलता के गुर
अच्युत सामंत की यह सरलता उनकी रचना में भी झलकती है। सहज शैली और प्रवाहमयी भाषा पाठकों को बांधे रखती है। हर पाठक को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। इससे उन्हें अपने जीवन को संयमित सुव्यवस्थि और सफल तरीके से जीने में मदद मिलेगी।
ब्रजबिहारी, नई दिल्ली। पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती है। मां होती ही ऐसी है। मां ही है जिसे अपना कुरुप बेटा भी चांद का टुकड़ा नजर आता है। उस पर वह अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर रहती है। इसलिए, हर इंसान के दिल में मां के लिए खास जगह होती है, लेकिन अपनी मां की कहानी पूरी दुनिया को सुनाने का मौका विरले लोगों को मिलता है।
सबसे पहले तो आपको उस योग्य होना पड़ता है कि दुनिया आपकी कहानी सुने। उद्यमी, शिक्षाविद, समाजसेवी और बीजू जनता दल से लोकसभा सदस्य डा. अच्युत सामंत उन खुशनसीब शख्सियतों में हैं जिन्हें यह अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने `माइ मदर माइ हीरो` शीर्षक से अपनी सद्य प्रकाशित रचना में अपनी मां नीलिमारानी के प्रेरणादायी और ममतामयी चरित्र का चित्रण किया है।
भारतीय साहित्य में मां को केंद्र में रखकर बहुत कम लिखा गया है। वैसी कोई कृति याद नहीं आती है, जिसे वह स्थान मिला हो, जैसा रूसी साहित्यकार मैक्सिम गोर्की की बहुचर्चित और कालजयी रचना `मां` को मिला है। उनके इस उपन्यास का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसके केंद्र में एक बूढ़ी मां है जो अन्याय और असमानता के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकती है और पुलिस एवं गुप्तचरों को चकमा देते हुए क्रांतिकारियों की मदद करती है। नीलिमारानी भी क्रांति का वाहक बनती हैं, लेकिन उनका प्रयास हिंसक न होकर अहिंसक है।
ओडिसा के एक दूरदराज के गांव में खुशहाल परिवार में जन्मी नीलिमारानी को बचपन में यह अनुभूति नहीं हुई कि बुनियादी सुविधाओं की कमी किसे कहते हैं। किस्मत देखिए कि शादी हुई तो एक सामान्य परिवार में। उस पर ज्यादा दिन तक पति का सुख नहीं मिला। जब वह महज 40 साल की थीं तो उनके पति की एक ट्रेन हादसे में मृत्यु हो गई। पास में धेला नहीं और सात बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी, लेकिन उन्होंने दृढ़ता और दूरदर्शिता के साथ इस संकट का सामना किया और बच्चों को पढ़ा-लिखाकर इस योग्य बनाया कि वे समाज में सिर ऊंचा कर चल सकें। उनके एक बेटे अच्युत सामंत ने तो इतना नाम कमाया कि किसी भी मां को उस पर गर्व होगा।
कलिंग इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (किट) और कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस (किस) के जरिए अच्युत सामंत ने ओडिशा के हजारों आदिवासियों के जीवन को उजियारों से भर दिया है। दो वक्त के भोजन के संघर्ष में जीवन खपा देने वाले आदिवासियों के बच्चे इंजीनियर और डाक्टर बनकर अपने और समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इन सब के पीछे उनकी मां की ही प्रेरणा रही है। जीवन में इतना कुछ हासिल करने के बाद भी अच्युत सामंत की मां कभी उसकी चकाचौंध से प्रभावित नहीं हुईं और न ही अपने बच्चों को होने दिया। बच्चों के अपने-अपने करियर में स्थापित होने के बाद भी वे रुकी नहीं। अपने प्रयासों से उन्होंने दूरदराज के अपने गांव को स्मार्ट विलेज में तब्दील कर दिया।
नीलिमारानी ताउम्र साधारण जीवन जीती रहीं। बच्चों की जिद के बावजूद उन्होंने अपने गांव के घर को नहीं छोड़ा और दशकों तक वही रहीं। इसका असर अच्युत सामंत पर भी पड़ा। इतने बड़े संस्थान के स्वामी होने के बावजूद उनका रहन-सहन बहुत सामान्य है। उनकी यह सरलता उनकी रचना में भी झलकती है। सहज शैली और प्रवाहमयी भाषा पाठकों को बांधे रखती है। हर पाठक को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। इससे उन्हें अपने जीवन को संयमित, सुव्यवस्थि और सफल तरीके से जीने में मदद मिलेगी।
पुस्तक का नामः माइ मदर, माइ हीरो
लेखकः डा. अच्युत सामंत
प्रकाशकः रूपा पब्लिकेशंस
मूल्यः 295