World Refugee Day 2019: लम्हा-लम्हा करता सवाल- कब तक यूं हीं भटकूं, वो वक्त आए मैं भी घर लौटूं
World Refugee Day 2019 रिफ्यूजी वो होते हैं जो किसी न किसी मजबूरी में अपना घर छोड़ देते हैं और उन्हें तलाश होती है एक अच्छी जिंदगी की। उनका लम्हा-लम्हा दुनिया से सवाल करता है...
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। पंछी, नदिया, पवन के झौंके... कोई सरहद न इन्हें रोके... सरहद इंसानों के लिए है, सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान होके... Film Refugee का यह गाना तो आपको याद ही होगा। गीतकार जावेद अख्तर और संगीतकार अनू मलिक ने शरणार्थियों के दिल के दर्द को बयां करते हुए यह खूबसूरत गाना लिखा है। यह गाना हमें बताता है कि किस तरह से हम इंसानों ने अपने लिए सीमाएं बना ली हैं, जबकि पक्षी, हवा और नदी को कोई सरहद नहीं रोक पाती। रिफ्यूजी को हम इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि गुरुवार 20 जून को World Refugee Day 2019 है।
शरणार्थी, रिफ्यूजी, मुहाजिर चाहे जिस नाम से पुकार लें। लेकिन ये वे लोग हैं जिन्हें किसी न किसी कारणवश अपना देश, अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर दूसरों के रहम-ओ-करम पर जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। किसी न किसी मजबूरीवश अपनी धरती को छोड़कर भागे हुए ये वो अभागे लोग हैं, जिन्हें कोई भी पूरे दिल से स्वीकार नहीं करता। जेपी दत्ता की फिल्म 'रिफ्यूजी' में दर्शाया गया था कि आखिर रिफ्यूजी की जिन्दगी कैसी होती है, फिल्म में जितनी कठिन इनकी जिंदगी दर्शायी गई थी, असल में उससे कहीं ज्यादा मुश्किलें उन्हें झेलनी पड़ती हैं।
कौन होते हैं रिफ्यूजी?
रिफ्यूजी वे लोग होते हैं जो कभी युद्ध तो कभी उत्पीड़न और कभी आतंकवाद या प्राकृतिक आपदा आदि के कारण अपना सब कुछ पीछे छोड़कर किसी दूसरे देश में शरण लेने को मजबूर होते हैं। ये वे लोग हैं जो अपनी जिंदगी की दुश्वारियों से पार पाने की उम्मीद से अपना घर व देश छोड़कर किसी अन्य देश में शरण मांगने पहुंचते हैं। दुनियाभर के रिफ्यूजियों के बारे में बात करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस का कहना है, 'मैं बहुत से ऐसे लोगों से मिला हूं, जिन्होंने बहुत कुछ खोया है। लेकिन उन्होंने कभी अपने बच्चों के लिए अपने सपने और बेहतर दुनिया की उम्मीद नहीं खोई।' यानि उन्होंने अपना सबकुछ भले खो दिया हो, लेकिन उम्मीद का दामन थामे रखा है।
रिफ्यूजी दिवस क्यों?
साल 2001 से हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जा रहा है। इन लोगों के साहस, संकल्प और शक्ति के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। असल में यह एक ऐसा दिन भी है, जो हमें याद दिलाता है कि दुनिया में हमारे जैसे ही लाखों-करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो जिंदगी जीने के लिए हरपल जद्दोजहद करते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने किसी मजबूरी में अपना घर तो छोड़ दिया है, लेकिन जिस दूसरे घर में हैं वहां के लोगों ने अभी तक उन्हें दिल से गले नहीं लगाया है। असल में रिफ्यूजी के रूप में हमारे सामने वे चेहरे होते हैं, जो दयनीय होते हैं। जिनकी आंखों में सपनों से ज्यादा सवाल होते हैं और जो गुमसुम रहकर भी दुनिया से पूछ रहे होते हैं कि ये हालात कब बदलेंगे?
मौत के साए में जिंदगी
सीरिया, इराक, लीबिया, सूडान, अफगानिस्तान जैसे युद्धग्रस्त देशों से लाखों-करोड़ों की संख्या में लोग शरणार्थी बनकर दूसरे देशों में पनाह लिए हुए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में हर मिनट करीब 20 लोग घर छोड़कर रिफ्यूजी बनने को मजबूर होते हैं। दुनियाभर में 7 करोड़ से ज्यादा लोग रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं। एक अच्छी जिंदगी की चाह में यह लोग बड़े से बड़े खतरे को भी तिनकाभर मानकर आगे बढ़ते जाते हैं। यह किसी समुद्र की भी परवाह नहीं करते।
भूमध्य सागर को पार करके यूरोप में शरण लेने की चाहत में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। 2 सितंबर 2015 को समुद्र किनारे उल्टे पड़े सीरिया के एक बच्चे 'आयलान कुर्दी' की एक तस्वीर ने दुनिया को झकझोरकर रख दिया था। लेकिन आयलान तो एक उदाहरणभर है। ऐसे हजारों लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन एक अच्छी व सुकूनभरी जिंदगी की चाह में कदम-कदम पर बिछी मौत को नजरअंदाज कर लोग रिफ्यूजी बनने को मजबूर हैं।
सरकारें फेल हुईं और रिफ्यूजी बन गए लाखों
साल 2017 में रिफ्यूजी डे के अवसर पर ही दैनिक जागरण ने विदेश मामलों के जानकार कमर आगा से खास बात की थी। उस वक्त उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से लेकर मोरक्को तक सरकारें फेल हो रही हैं। इसके बाद इन देशों में अराजकता फैलती चली जा रही है। ऐसे में इन देशों से लाखों-करोडों की संख्या में लोग देश छोड़ रहे हैं। यह शरणार्थी जिन देशों में जाते हैं वहां भी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, क्योंकि उनके संसाधन भी सीमित होते हैं। जैसे सीरिया से निकलकर लोग पड़ोसी देश जॉर्डन जा रहे हैं, जॉर्डन में भी मानवाधिकार जैसी चीजें नहीं हैं। वहां पर भी तानाशाही है। वहां वे अपने लोगों को सुविधाएं नहीं दे पा रहे तो फिर शरणार्थियों को क्या देंगे?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा शरणार्थी संकट
दुनियाभर में 7 करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों में से 50 फीसद से ज्यादा लोग सीरिया, अफगानिस्तान और दक्षिण सूडान के हैं। डराने वाली बात यह है कि इस समय दुनिया का शरणार्थी संकट काफी बड़ा हो गया है और यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा है। तमाम शरणार्थी यूरोप या ऐसे देशों में पहुंचना चाहते हैं, जहां उन्हें सुकून की जिंदगी जीने को मिले। इस बारे में कमर आगा ने कहा, जो शरणार्थी यूरोप पहुंच जाते हैं, उनकी स्थिति ठीक होती है। इसलिए ज्यादातर लोग यूरोप में शरण लेना चाहते हैं। वहां पहुंचकर इन्हें पैसे और सुविधाएं मिलने लगती हैं। वहां इनके रहने का भी अच्छा इंतजाम कर दिया जाता है। इनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। वहां इन लोगों को छोटी-मोटी नौकरियां भी मिल जाती हैं, खासकर जर्मनी जैसे देशों में। लेकिन ज्यादातर देशों में शरणार्थियों की स्थिति बहुत बुरी होती है।
मुसीबत भी बन जाते हैं रिफ्यूजी
ऐसा नहीं है कि जो लोग रिफ्यूजी बनकर दूसरे देश में जाते हैं उन्ही की स्थिति दयनीय है। पिछले कुछ सालों में म्यांमार से आए शरणार्थियों की वजह से भारत और बांग्लादेश में कानून व्यवस्था की समस्या होने लगी। यहां के लोगों को रिफ्यूजियों की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। जिन इलाकों में रोहिंग्या आकर बसे, वहां आपराधिक गतिविधियों में इजाफा हुआ है।
जो भी हो, लाखों-करोड़ों लोगों का रिफ्यूजी हो जाना एक वैश्विक समस्या है और इससे निपटने के लिए प्रयास भी वैश्विक ही होने चाहिए। युद्ध, आकाल, आभाव और अन्य वजहों से रिफ्यूजी बने लोगों को वापस उनके घरों में पहुंचाना ही हमारा प्रयास होना चाहिए, ताकि अपनी धरती पर जाकर वो भी खुश हों और हम सभी भी।
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