विश्व गुरु !
आखिर ज्ञान के केंद्रों और सरस्वती के मंदिरों की ऐसी हालात हुई कैसे? क्यों हमारे एक भी विश्वविद्यालय आज विश्व रैंकिंग में नहीं शामिल हैं? इन सवालों की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। सदियों से ज्ञान और अध्यात्म के मामले में भारत को विश्व गुरु कहा जाता रहा। हमारे नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षण संस्थानों ने दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। हमारी प्राचीनतम गुरुकुल शिक्षण प्रणाली दुनिया में कौतूहल का विषय बनी रही। तमाम सभ्यताएं पठन-पाठन के हमारे ही बताए रास्ते पर चलती दिखीं। आज तस्वीर बदल चुकी है। स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक की स्थिति बदहाल है। तभी तो विश्व स्तरीय शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग में हमारे कोई भी संस्थान शीर्ष सौ में जगह नहीं बना पाते हैं। जब से जागो तभी सवेरा। सरकार को भी इस बात्का अहसास हो चला है।
पिछले दिनों पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में इससे जुड़ा प्रधानमंत्री मोदी का दर्द छलक पड़ा। उन्होंने कहा कि विश्व गळ्रु के अपने उस गौरव को फिर से कायम करने के लिए नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमें फिर से बनाने हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पांच साल में दस हजार करोड़ रुपये अनुदान के साथ बीस विश्वविद्यालयों को वल्र्ड क्लास बनाने का भी एलान किया। आखिर ज्ञान के केंद्रों और सरस्वती के मंदिरों की ऐसी हालात हुई कैसे? क्यों हमारे एक भी विश्वविद्यालय आज विश्व रैंकिंग में नहीं शामिल हैं? इन सवालों की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।