बाजीगरी से पैदा होती आंकड़ों की महामारी, चीनी दबाव में है विश्व स्वास्थ्य संगठन?
कोविड-19 से हुई मौतों के आकलन पर डब्ल्यूएचओ का यह कहना न्यायसंगत है कि महामारी में हुई मौतों की संख्या जानने से इसके असर को व्यापक तौर पर समझा जा सकता है। इससे सभी देशों में लचीला स्वास्थ्य तंत्र बनाने के लिए निवेश को बढ़ावा देने की समझ पैदा होगी।
डा. संजय वर्मा। महामारियां प्राय: अपने पीछे दुखद इतिहास ही छोड़ती हैं। बात सिर्फ आंकड़ों की नहीं है, बल्कि जो परिवार अपने प्रियजन खोते हैं और जिन देशों का विकास पूरी तरह पटरी से उतर जाता है-उन्हें संभालना भी बहुत बड़ी चुनौती साबित होती है। हालांकि महामारी से मिले सबक याद रखे जाएं और सेहत को प्राथमिकता में लिया जाए तो आने वाले संकटों से पार पाया जा सकता है।
आमतौर पर सबक के ऐसे मामलों में आंकड़े काम आते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि महामारी कितना बड़ा प्रकोप साबित हुई। कितनी मौतें हुईं और कितनों की रक्षा दवाओं और टीकों ने की। कितने लोग सही समय पर इलाज मिलने से बच गए और कितनों को अस्पतालों में आक्सीजन तक मुहैया नहीं कराई जा सकी, लेकिन इधर जब कोरोना वायरस से पैदा महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया में वर्ष 2020 और 2021 में हुई मौतों के आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जारी किए तो कुछ शंकाएं और सवाल उठ खड़े हुए। हमारी सरकार ने इन पर यह कहते हुए एतराज प्रकट किया कि भारत के बारे में ये आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जा रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ का आकलन : कोविड-19 से बीते दो वर्षो में हुई मौतों के बारे में डब्ल्यूएचओ ने हाल में जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक दुनिया में औसतन 1.5 करोड़ (1.33 से 1.66 करोड़ के बीच) लोगों की जान इस अवधि यानी एक जनवरी, 2020 से तीन दिसंबर, 2021 के दौरान गई है। इसमें महामारी और उसके कारण पैदा हुई स्थितियों के चलते हुई मौतों की संख्या शामिल है। जैसे आक्सीजन सिलेंडर नहीं मिलने के कारण मौत हो जाना। महामारी के असर जानने के उद्देश्य से किए गए इस आकलन में भारत के बारे में जो अनुमान पेश किए हैं, उसने बहुतों को हैरान कर दिया है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि भारत में कोविड-19 के कारण 47 लाख लोगों की मौत हुई, जो भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़े (5 लाख 23 हजार 889 मौतों) से करीब 10 गुना ज्यादा है।
डब्ल्यूएचओ के मत में भारत में 33-65 लाख लोगों की मौत दर्ज ही नहीं हुई। इस तरह कोविड-19 से दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही हुई मानी जा रही हैं। डब्ल्यूएचओ ने भारत में मृतकों की जो संख्या बताई है वह संख्या दुनियाभर में हुई मौतों की एक तिहाई है। डब्ल्यूएचओ का यह भी मानना है कि भारत ही नहीं, कई अन्य देशों ने भी कोविड-19 से हुई मौतों की कम गिनती की है। इस तरह दुनिया में सिर्फ 54 लाख मौतों को सरकारी दस्तावेजों में लिया गया है, ताकि कई देश कोविड-19 के प्रबंधन में रह गई खामियों-लापरवाहियों की जिम्मेदारी से बच सकें।
इसमें संदेह नहीं कि भारत समेत कई अन्य विकासशील और गरीब देशों का स्वास्थ्य तंत्र कई वजहों से चर्चा में रहा है। अक्सर ये आरोप लगते रहे हैं कि अव्वल तो ये देश अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं और अपने बजट का बहुत कम हिस्सा नागरिकों की सेहत पर खर्च करते हैं। इन देशों में गरीबों को नाममात्र की सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल हैं और मध्य वर्ग को भी इलाज के लिए निजी अस्पतालों में सैकड़ों गुना ज्यादा रकम चुकानी पड़ रही है। इन समस्याओं से शायद ही किसी को इन्कार हो, लेकिन कोविड-19 नामक महामारी का किस्सा इससे जरा अलग है। टीकों के विकास से पहले इस महामारी के खिलाफ प्रतिरक्षा का कोई ठोस उपाय हमारे पास नहीं था। मास्क, सैनिटाइजर और दो गज दूरी बरतने आदि सावधानियों के बावजूद कोई गारंटी नहीं थी कि इसकी चपेट में आया व्यक्ति जीवित बचेगा या नहीं।
यही वजह है कि अमेरिका आदि जिन विकसित देशों में बेहद मजबूत स्वास्थ्य तंत्र है, वहां भी कोविड-19 ने अपना अत्यधिक प्रकोप दिखाया। अमेरिका हो, ब्राजील हो या भारत, कोविड-19 से हुई मौतों के आकलन पर डब्ल्यूएचओ का यह कहना न्यायसंगत है कि महामारी में हुई मौतों की संख्या जानने से इसके असर को व्यापक तौर पर समझा जा सकता है। इससे सभी देशों में ज्यादा लचीला स्वास्थ्य तंत्र बनाने के लिए निवेश को बढ़ावा देने की समझ पैदा होगी। इसके अलावा महामारी जैसे संकटकालीन दौर में जरूरी स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिए स्वास्थ्य सूचनाओं का मजबूत तंत्र बनाया जा सकेगा, लेकिन क्या इसके लिए जरूरी है कि मौतों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए।
आंकड़ों की कारस्तानी : असल में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोविड-मौतों की विशालकाय संख्या जारी होने के तुरंत बाद भारत सरकार ने जो सवाल उठाए हैं, उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि डब्ल्यूएचओ की ओर से ये आंकड़े आने से एक दिन पहले ही भारत ने अपनी तरफ से भी आंकड़े जारी किए थे, जिसमें कुल मिलाकर पांच लाख 23 हजार 889 मौतों को स्वीकार किया गया था। इसके बाद जिस तरह से डब्ल्यूएचओ ने भारत में 10 गुना मौतों की बात कही, उसे लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रलय की इस बात में वजन लगने लगा कि डब्ल्यूएचओ का विश्लेषण और आंकड़े जुटाने का तरीका ‘संदिग्ध’ है। भारत सरकार ने आकलन के लिए इस्तेमाल में लाए गए डब्ल्यूएचओ के माडल की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है।
हमारी सरकार का कहना है कि डब्ल्यूएचओ ने भारत की आपत्ति के बावजूद अतिरिक्त मृत्यु दर के आधार पर अपने अनुमान जारी किए, जो सही नहीं हैं। ध्यान रखें कि हमारे देश में कोविड-19 के कारण सबसे ज्यादा मौतें दूसरी लहर के दौरान हुई थीं, जब डेल्टा वैरिएंट के कारण बड़ी संख्या में लोग महामारी की चपेट में आ गए। डब्ल्यूएचओ ने अपने इस आकलन के लिए उसी अवधि का इस्तेमाल किया है। अतिरिक्त मृत्यु माडल में यह देखा जाता है कि महामारी से पहले किसी क्षेत्र की मृत्यु दर क्या थी। यानी उस क्षेत्र में सामान्य रूप से कितने व्यक्तियों की मौत होती है और महामारी के बाद उस क्षेत्र में कितने लोगों की मौत हुई। इस आधार पर एक अनुमान लगाया जाता है, जो गणना का सही तरीका नहीं हो सकता। यह भी उल्लेखनीय है कि डब्ल्यूएचओ के आंकड़े में उन लोगों को भी शामिल किया गया है, जिनकी मृत्यु की सीधा वजह कोविड नहीं थी। अधिक मौत के मामले में भारत के अलावा रूस, इंडोनेशिया, अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको और पेरू आदि शामिल हैं। रूस के लिए मौतों की संख्या देश के सरकारी रिकार्ड में दर्ज मौतों से साढ़े तीन गुना है। हैरानी की बात है कि जिस देश पर कोरोना फैलाने के कथित आरोप हैं, उस देश यानी चीन को डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कम मृत्यु दर वाले देशों में शामिल किया गया है। इसके लिए दावा किया जा रहा है कि चीन अभी भी ‘जीरो कोविड’ की नीति का पालन कर रहा है और वहां बड़े पैमाने पर टेस्टिंग और क्वारंटाइन जैसे उपाय आजमाए जा रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों को संदिग्ध बताने वालों में भारत अकेला नहीं है। पड़ोसी पाकिस्तान ने भी इस पर सवाल खड़े किए हैं। पाकिस्तान के सरकारी दस्तावेजों में कोविड से हुई मौतों की संख्या सिर्फ 30,369 दर्ज है, लेकिन डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों में यह संख्या दो लाख 60 हजार बताई गई है, जो कि आठ गुना ज्यादा है। पाकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल कादिर पटेल के मुताबिक उनके देश ने यह आकलन स्वयंसेवकों द्वारा जांच-परखकर किया है, जिसमें किसी फेरबदल की संभावना कुछ सौ की संख्याओं तक हो सकती है, न कि लाखों का अंतर आ सकता है। यह कहकर कादिर पटेल ने डब्ल्यूएचओ द्वारा आंकड़ा संग्रहण की तकनीक और साफ्टवेयर से उन आंकड़ों के विश्लेषण में भारी गलती होने का संकेत किया है। कुछ ऐसी ही गलती भारत के संदर्भ में भी हो सकती है।
भारत में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया (आरजीआइ) द्वारा सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) में किया जाता है। जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत आरजीआइ बड़े पैमाने पर शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और विज्ञानियों की मदद से ये आंकड़े तैयार करता है। ऐसे में आरजीआइ द्वारा सालाना आधार पर जारी किए जाने वाले आंकड़े ज्यादा भरोसेमंद माने जा सकते हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने गैर-आधिकारिक आंकड़ों को गणितीय माडल की मदद से प्रोसेस कर जो अनुमान निकाले हैं, उन्हें विश्वसनीय मानना टेढ़ी खीर है। यही नहीं, इन आंकड़ों के संदर्भ में भारत ने डब्ल्यूएचओ से पूछा है कि उसने भारत के जिन 17 राज्यों के आंकड़े जिन कुछ मीडिया रिपोर्ट और वेबसाइटों की मदद से जुटाए हैं, उनका आधार क्या है। डब्ल्यूएचओ ने इस बाबत पूछे गए सवालों का फिलहाल कोई जवाब नहीं दिया है। इससे इस संस्था द्वारा आंकड़ा संग्रहण की प्रक्रिया संदिग्ध हो जाती है और आंकड़े भरोसा करने लायक नहीं रह जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए आंकड़ों पर विवाद के बीच उसके अनुमानों के गलत होने की संभावना भी उभर रही है। एक चर्चा यह उठी है कि जो डब्ल्यूएचओ कोरोना वायरस की पैदावार और उसके प्रसार के लिए जिम्मेदार माने गए चीन के प्रति नरमी दर्शाता रहा है, उसने भारत आदि को आंकड़ों के जरिये घेरने का प्रयास कर चीनी मंसूबों को सफल बनाने का काम किया है। दावा किया जा रहा है कि जब नवंबर-दिसंबर 2019 में चीन के वुहान में कोरोना संक्रमण फैला हुआ था, तब विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बीमारी की पैदावार और प्रसार के बारे में बिल्कुल खामोश रहा। मौजूदा हालात देखें तो चीन कोविड-19 के संक्रमण और इस महामारी से हुई मौतों के मामले में कोई पारदर्शिता नहीं बरत रहा है, लेकिन तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन उसकी यह तारीफ करने से नहीं चूक रहा है कि वहां कोविड-19 से हुई मौतें काफी कम रही हैं।
ऐसा अंदेशा भी है कि चूंकि बदले भू-राजनीतिक माहौल में चीन का मुकाबला करने के लिए भारत और अमेरिका एक तरफ हो गए हैं, इसलिए डब्ल्यूएचओ चीन के इशारे पर भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है। उसका उद्देश्य भारत के साथ अमेरिका को भी साध लेना है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों पर भरोसा नहीं होने की एक बड़ी वजह यह है कि इस वैश्विक संस्था ने शुरू से ही चीन के प्रति नरम रुख अख्तियार कर रखा है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन को लगता है कि उसके कार्यो और उसके जारी किए आंकड़ों पर दुनिया का भरोसा कायम हो तो इसकी फिक्र खुद उसे करनी होगी। भारत आदि को घेरने के बजाय वह ऐसा चीन के प्रति अपने बेहद नरम रुख में तब्दीली लाकर कर सकता है।
[एसोसिएट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी]
अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन