त्वरित टिप्पणी: बदलते माहौल पर विश्व बैंक की मुहर
भारत सरकार ने हाल के वर्षो में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए जो कदम उठाए हैं वे सही दिशा में जा रहे हैं।
[ प्रशांत मिश्र ]। देश के दूरदराज क्षेत्रों में बैठे लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर विश्व बैंक की रिपोर्ट उनकी जिंदगी कैसे बदलेगी? जवाब उलटा है, उनके आसपास के बदले माहौल का असर ही है यह रिपोर्ट। जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाने वाले कारक बदल रहे हैं और विश्व पटल पर इसे महसूस किया जा रहा है। दरअसल, विश्व बैंक की रिपोर्ट इस बात की स्वीकारोक्ति है कि भारत सरकार ने हाल के वर्षो में भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए जो कदम उठाए हैं वे सही दिशा में जा रहे हैं। अब कारोबार करने के लिए बाबुओं की जेब गर्म करने की जरूरत नहीं है। फैक्टरी में बिजली-पानी के कनेक्शन के लिए महीनों इंतजार करने के दिन लद रहे हैं। स्वरोजगार और रोजगार के लिए राह थो़डी आसान हो रही है।
प्रधानमंत्री का नारा रहा है, 'देश बदल रहा है।' ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की नवीनतम रिपोर्ट ने इस पर मजबूती से मुहर लगा दी है। एक बार में 30 अंक की छलांग लगाकर भारत सौवें नंबर पर आ गया है। इस ब़़डी उपलब्धि का जाहिरा तौर पर भाजपा राजनीतिक इस्तेमाल करेगी और कांग्रेस समेत उन विपक्षी दलों को करारा जवाब भी देगी जो अर्थव्यवस्था की सुस्ती का हवाला देकर नीतियों पर सवाल ख़़डा कर रहे थे। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अभियानों में भी इसका असर दिखेगा।
राजनीति से परे हटकर भी देखें तो रिपोर्ट का सीधा संदेश है कि पारदर्शिता अब शासन-प्रशासन में दिखने भी लगी है। दरअसल, देश में कारोबार की प्रक्रिया सुगम बनाने के लिए मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही शुरुआत कर दी थी। औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग [ डीआइपीपी ] ने 98 बिंदुओं की एक कार्ययोजना तैयार कर सभी राज्यों को भेजी थी ताकि व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। प्रत्येक राज्य अपने यहां व्यवसाय के अनुकूल माहौल बनाए। इसके लिए राज्यों की रैंकिंग की व्यवस्था भी शुरू की गई।
सुधारों के मोर्चे पर मोदी सरकार ने राजनीतिक लाभ-हानि नहीं देखी। अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिए क़़डवे घूंट पिलाने से भी कभी परहेज नहीं किया। राजनीतिक तौर पर संवेदनशील माने जाने वाले आर्थिक क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोला, संसद में लंबित जीएसटी विधेयक और दिवालियापन पर विधेयकों को पारित कराया। फंसे कर्ज के संकट से जूझ रहे बैंकों को भी उबारने का उपाय किया। सबसे ब़़डी बात यह है कि मोदी सरकार ने लालफीताशाही को खत्म किया। लालफीताशाही से परेशान उद्यमियों के लिए रेड कारपेट कार्यशैली विकसित की, वही सुधार रिपोर्ट के रूप में सामने आया है।
रोजगार को विपक्ष ने हाल के चुनावों में भी मुद्दा बनाया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट उसका भी जवाब देती है। साथ ही यह आशा भी जगाती है कि भारत की रैंकिंग को और बेहतर करना हमारी क्षमता के दायरे में है। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार रोजगार मांगने वालों की बजाय रोजगार देने वाला बनने की अपील की है। मुद्रा से लेकर स्टार्टअप तक योजनाएं इसी दिशा में शुरूकी गई थीं। वहीं जाहिर है कि इस रिपोर्ट के बाद निवेशकों को लाने के लिए भी शायद मशक्कत कम करनी पड़े।