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प्रेम की देवी के इस मंदिर में महिलाओं के जाने पर है पाबंदी, जानिए क्या है वजह

दंतेवाड़ा में भी मान्यताओं के चलते मुकड़ी मावली माता मंदिर में महिलाओं का प्रवेश सालों से वर्जित है।

By Arti YadavEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 08:11 AM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 08:59 AM (IST)
प्रेम की देवी के इस मंदिर में महिलाओं के जाने पर है पाबंदी, जानिए क्या है वजह
प्रेम की देवी के इस मंदिर में महिलाओं के जाने पर है पाबंदी, जानिए क्या है वजह

दंतेवाड़ा, योगेंद्र ठाकुर। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दे दी है। इधर दंतेवाड़ा में भी मान्यताओं के चलते एक मंदिर देवी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश सालों से वर्जित है। यह मंदिर गांव से दूर जंगल के एक टेकरी में जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है। जहां महिलाएं जाना तो चाहती हैं लेकिन मान्यताओं के चलते पास नहीं फटकती। कहा जाता है कि महिलाओं के मंदिर पहुंचने पर उसके परिवार और गांव में अनिष्ट होता है। जबकि मंदिर की देवी भी महिला है।

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यह मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर छिंदनार गांव के जंगल में है। इस मंदिर को मुकड़ी मावली माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां छिंदनार निवासी पुजारी मनोहर सिंह और उनका परिवार नियमित पूजा-अनुष्ठान के लिए पहुंचता है। साल में एक बार यहां मेला भी लगता है। जहां महिलाएं भी पहुंचती है पर मंदिर पहुंचने टेकरी में चढ़ना भी उनके लिए पाप माना जाता है।

यह है मंदिर की विशेषता
करीब 70 वर्षीय पुजारी मनोहर सिंह बताते हैं कि मंदिर की देवी मुकड़ी मावली माता है। जिसका एक हाथ नहीं है और चेहरा विकृत है। दांते भींचे और नाक सिकुड़ा हुआ है मानो किसी दर्द और क्रोध में हैं। पुजारी का कहना है मंदिर की ख्याति इलाके में ही नहीं अन्य प्रदेशों में भी है। लोग मन्न्त मांगने दूर-दूर से आते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है। विवाद, बीमारी से लेकर प्रेम प्रसंग के लोग पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा युवक अपने प्रेम पाने के लिए आते हैं, लेकिन युवतियां दूर ही रहती हैं। उनका मंदिर के करीब आना अपशगुन माना जाता है। युवतियों की ओर से चढ़ावा लेकर प्रेमी युवक ही मंदिर पहुंचता है। नगरीय इलाकों से पहुंचने वाले युवा इस माता को प्रेम की देवी भी कहते हैं।

प्रेतात्मा के रूप में है देवी की मान्यता
कहा जाता है कि गांव की एक गर्भवती महिला की मौत प्रसव पीड़ा के दौरान हो गई। परंपरानुसार उसका शव गांव के मरघट में नहीं दफनाकर इंद्रावती तट से लगे जंगल में फेंक दिया गया। उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलने से वह आसपास भटकते लोगों को परेशान करती थी। खासकर महिलाएं और युवतियों को। जिसे चरवाहों ने बांसुरी की धुन से अपने वस में किया और इसी टेकरी में रहने के निर्देश दिए थे। तब प्रेतात्मा ने कहा था कि उसके आश्रय स्थल पर कोई महिलाएं नहीं पहुंचे। उससे प्रेम करने वाले पुरुष ही आएं। तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस मंदिर में युवाओं की हमेशा मौजूदगी बनी रहती है।

ऐसी है मान्यता
छिंदनार गांव में रहने वाली महिला अनिता पटेल कहती है कि आसपास के कई मंदिरों में परिवार के साथ पूजा करने गई हैं, लेकिन मुकड़ी मावली माता मंदिर जाने के लिए परिवार और गांव वाले मना करते हैं। गांव की कोई भी महिला उस जंगल की ओर नहीं जाती। कहा जाता है कि उस ओर जाने वाली महिला या लड़कियों के साथ अनिष्ट होता है।


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