आरक्षण कोटे से नौकरी नहीं चाहती हैं महिलाएं, पत्र लिखकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लगाई गुहार
अभ्यर्थियों के ई-मेल के बाद राष्ट्रपति सचिवालय के अंडर सेक्रेटरी (पिटीशन) अशोक कुमार ने प्रदेश के मुख्य सचिव को मामले की जांच कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
लोकेश सोलंकी, इंदौर। मध्य प्रदेश की करीब 200 महिला अभ्यर्थियों ने मध्य प्रदेश लोग सेवा आयोग (MPPSC) की विभिन्न परीक्षाओं में महिला आरक्षण खत्म करने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से गुहार लगाई है। ई-मेल के जरिये यह मांग राष्ट्रपति तक पहुंचाई है। ये सभी महिलाएं पीएससी की परीक्षाओं में अभ्यर्थी रह चुकी हैं। इनका आरोप है कि 30 प्रतिशत महिला आरक्षण की विसंगति की वजह से महिलाओं को लाभ मिलने के बजाय उनके चयनित होने के अवसर सीमित हो गए हैं। अभ्यर्थियों के ई-मेल के बाद राष्ट्रपति सचिवालय के अंडर सेक्रेटरी (पिटीशन) अशोक कुमार ने प्रदेश के मुख्य सचिव को मामले की जांच कर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
इस मामले को लेकर हाई कोर्ट तक लड़ाई लड़ चुकीं और मामले का नेतृत्व कर रहीं रतलाम की सुनीता जैन राज्यसेवा परीक्षा में साक्षात्कार के दौर से बाहर हो गई थीं। उन्हें मुख्य परीक्षा में 1249 अंक मिले थे, जबकि पुरुष अभ्यर्थी आशीष मिश्र को 1240 अंक आने के बाद भी साक्षात्कार के लिए चयनित किया गया था। पीएससी ने इसका कारण महिला आरक्षण के लिए अपनाए गए क्षैतिज फॉर्मूला को बताया था।
आरक्षण प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग से मांगा था निर्देश
दरअसल, 1997 में महिला आरक्षण लागू करने के बाद पीएससी ने आरक्षण पर प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग से निर्देश मांगा था। विभाग ने पीएससी को पत्र लिख निर्देश दिया था कि जो महिलाएं प्रावीण्य सूची में चयनित हों, उन्हें भी आरक्षित सीटों पर गिन लिया जाए। इस नियम को गलत बताते हुए सुनीता जैन कहती हैं कि आरक्षण का सामान्य फॉर्मूला है कि प्रावीण्य सूची में आने वाले अभ्यर्थियों को अनारक्षित सीटों पर चयनित किया जाता है। फिर शेष अभ्यर्थियों का वर्ग और अंकों के अनुसार उनकी श्रेणी की आरक्षित सीटों पर चयन होता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, लेकिन महिलाओं के मामले में प्रावीण्य सूची में आने पर भी आरक्षित सीट में स्थान देने की व्यवस्था कर दी गई है। इसके बाद महिलाओं के कटऑफ भी अलग दिए जाते हैं।
ऐसे में महिलाओं के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है और वे अनारक्षित सीटों के लिए जारी होने वाली प्रावीण्य सूची से भी ज्यादा अंक लाने पर भी नौकरी से महरूम रह जाती हैं। इसके विपरीत सिविल जज परीक्षा में आरक्षण नहीं है। वहां 50 फीसद महिलाओं का चयन हो रहा है। इस मामले में मप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष भास्कर चौबे से संपर्क किया गया तो उन्होंने टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया।
सामान्य प्रशासन विभाग के राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार ने बताया कि एमपीपीएससी में महिला आरक्षण के फॉर्मूले पर विसंगतियों को लेकर कुछ महिलाएं मिली थीं। आरक्षण के कई मामले न्यायालय में लंबित हैं। कभी एक पक्ष तो कभी दूसरा पक्ष असंतुष्ट होता है। फिर भी परीक्षण करवा रहे हैं।