Move to Jagran APP

महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन जो उन्हें मानती गृहिणी : कोर्ट

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा समय-समय पर जारी किए गए कार्यालय ज्ञापनों (ओएम) ने माना है कि राज्य के कार्यस्थल में महिलाओं को समानता और समान अवसर प्रदान करने के मद्देनजर सरकार के लिए नीतियों को अपनाना आवश्यक हो जाता है!

By Monika MinalEdited By: Published: Fri, 11 Mar 2022 04:14 AM (IST)Updated: Fri, 11 Mar 2022 05:45 AM (IST)
महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन जो उन्हें मानती गृहिणी : कोर्ट

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन हैं, जो उन्हें प्राथमिक देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में मानती है और इस तरह उन पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का एक असमान दायित्व आ पड़ता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के कार्यस्थल पर पहुंचने के बाद उनके साथ भेदभाव के तरीकों को पहचानने में राज्य द्वारा वास्तविक समानता प्राप्त करने का सही उद्देश्य पूरा किया जाना चाहिए। कोर्ट ने उल्लेख किया कि पति-पत्नी की पोस्टिंग के लिए जो प्रविधान किया गया है, वह मूल रूप से महिलाओं के लिए विशेष प्रविधानों को अपनाने की आवश्यकता पर आधारित है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 15 (3) द्वारा मान्यता प्राप्त है।

loksabha election banner

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, 'जिस तरह से राज्य द्वारा एक विशेष प्रविधान अपनाया जाना चाहिए वह एक नीति विकल्प है, जिसका इस्तेमाल संवैधानिक मूल्यों और प्रशासन की जरूरतों को संतुलित करके किया जाना चाहिए।' पीठ ने कहा, 'लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि राज्य को संवैधानिक मानदंडों के अधीन एक आदर्श नियोक्ता के साथ-साथ एक संस्था के रूप में अपनी भूमिका में वास्तविक समानता के मौलिक अधिकार को ध्यान में रखना चाहिए, जब वह अपने कर्मचारी के लिए नीति तैयार करता है।'

पीठ ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें अंतर-आयुक्तालय स्थानान्तरण (आइसीटी) को वापस लेने वाले एक परिपत्र की वैधता को बरकरार रखा गया था। यह कहा गया कि केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क आयुक्तालय निरीक्षक (केंद्रीय उत्पाद, निवारक अधिकारी और परीक्षक) समूह 'ख' पदों की भर्ती नियम 2016 में ऐसा कोई प्रविधान नहीं है।

पीठ ने कहा, 'महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन हैं जो उन्हें देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में मानती है और इस प्रकार, वे पारिवारिक जिम्मेदारियों के असमान बोझ से दब जाती हैं।' पीठ ने कहा कि इस कोर्ट ने कार्यस्थल पर लिंगभेद के कारण व्यवस्थागत भेदभाव के बारे में बात की है, जो पितृसत्तात्मक ढांचे में समाहित है। पीठ ने कहा, 'कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा समय-समय पर जारी किए गए कार्यालय ज्ञापनों (ओएम) ने माना है कि राज्य के कार्यस्थल में महिलाओं को समानता और समान अवसर प्रदान करने के मद्देनजर सरकार के लिए नीतियों को अपनाना आवश्यक हो जाता है, जो कार्यस्थल में महिलाओं के लिए औपचारिक समानता से अलग अवसर की वास्तविक समानता पैदा करता है।'

पीठ ने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव के तरीकों (पैटर्न) को पहचानने में राज्य द्वारा वास्तविक समानता प्राप्त करने का सही उद्देश्य पूरा किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनौती का जो दूसरा आधार उठाया गया है वह यह है कि लागू परिपत्र राज्य के कार्यबल में दिव्यांग लोगों की जरूरतों को ध्यान में नहीं रखता। पीठ ने कहा, 'दिव्यांग लोगों के अधिकार कानून, 2016 समाज के दिव्यांग सदस्यों के लिए उचित व्यवस्था के सिद्धांत को मान्यता देने के लिए एक वैधानिक आदेश है।' पीठ ने कहा, इसलिए नीति के निर्माण में उस आदेश को ध्यान में रखना चाहिए, जो संसद दिव्यांगों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार के आंतरिक तत्व के रूप में लागू करता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.