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गर कसाब तो, अफजल गुरु, राजोआना, राजीव के हत्यारे क्यों नहीं!

मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी अजमल आमिर कसाब की बुधवार सुबह गुपचुप फांसी हो सकती है तो अन्य राजनीतिक हत्यारों या आतंकियों की फांसी पर जल्द फैसला क्यों नहीं लिया जा सकता। राजनीतिक हल्कों में तो यह भी माना जा रहा है कसाब की गुपचुप फांसी की सजा के पीछे गुजरात में अगले माह होने वाला विधानसभा

By Edited By: Published: Wed, 21 Nov 2012 03:25 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2012 09:06 PM (IST)
गर कसाब तो, अफजल गुरु, राजोआना, राजीव के हत्यारे क्यों नहीं!

नई दिल्ली। मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी अजमल आमिर कसाब की बुधवार सुबह गुपचुप फांसी हो सकती है तो अन्य राजनीतिक हत्यारों या आतंकियों की फांसी पर जल्द फैसला क्यों नहीं लिया जा सकता। राजनीतिक हल्कों में तो यह भी माना जा रहा है कसाब की गुपचुप फांसी की सजा के पीछे गुजरात में अगले माह होने वाला विधानसभा चुनाव भी है, जहां कांग्रेस भाजपा को बैकफुट पर भेजना चाहती है। दूसरा, संसद सत्र में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष की धार को धीमा करने की कोशिश भी हो सकती है। कसाब की फांसी कुछ इस तरह की राजनीतिक मजबूरियों को प्रदर्शित कर रही है।

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मुंबई आतंकी हमले में कसाब, पाकिस्तान का एकमात्र आतंकी था जिसे जिंदा पकड़ने में सफलता मिली थी। कसाब को फांसी की सजा भी सुनाई गई। सीमा पार से आए इस आतंकी की फांसी की सजा पर देश में कोई भी आंसू बहाने वाला नहीं है।

वहीं, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु का मामला ले लें। दिसंबर 2001 में संसद पर हुए हमले में अफजल को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। यदि यह हमला पूरी तरह से सफल हो गया होता तो देश को अपने शीर्ष राजनीतिज्ञों से हाथ धोना पड़ता। उसी आतंकी की दया याचिका अभी तक विचाराधीन पड़ी है, जिस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। अफजल गुरु अभी तक जिंदा है तो मात्र हमारे कमजोर राजनीतिक नेतृत्व की वजह से, जो किसी न किसी कारण से इस मामले में कठोर निर्णय नहीं ले पा रहा है।

पिछले साल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तीन हत्यारों की फासी की सजा पर मद्रास हाईकार्ट ने स्टे लगा दिया। तमिलनाडु विधानसभा ने इन हत्यारों की माफी के लिए एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया। सरकार ने एक बार फिर से अपनी अकर्मण्यता का परिचय दिया।

वहीं, 31 अगस्त 1995 को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआना की फासी की सजा भी अब तक लटकी हुई है। अदालत ने 31 जुलाई, 2007 को बलंवत सिंह को फासी की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ राजोआना ने हाईकोर्ट में कोई अपील दायर नहीं की थी। हाईकोर्ट से सजा की पुष्टि होने के बाद जिला अदालत ने पांच मार्च को पटियाला जेल अधीक्षक को एक्जीक्यूशन वारंट जारी किए थे। जेल अधीक्षक ने कई तरह के तर्क देते हुए राजोआना को फासी पर चढ़ाने से मना कर दिया था और यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आने का हवाला देते हुए डेथ वारंट वापस कर दिए। लेकिन अदालत ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के नियमों का हवाला देते हुए दोबारा से डेथ वारंट जारी कर दिए। इस मामले में खुद सरकार ही राजोआना की फासी की सजा को माफ करने को लेकर राष्ट्रपति के पास दया याचिका लेकर पहुंच गई। यह मामला भी अभी विचाराधीन है। मालूम हो कि पंजाब में शिअद-भाजपा की मिलीजुली सरकार है।

ऐसा क्या कारण है कि केंद्र सरकार ने कसाब को फांसी पर लटकाने की जल्दी दिखाई, परंतु अफजल गुरु या राजाओना जैसे आतंकियों के मामले में जल्दबाजी नहीं दिखा रही। इससे तो ऐसा ही महसूस होता है कि केंद्र सरकार फासी की सजा को राजनीतिक चश्मे से देखती है, किसको जल्दी फांसी देने उसका फायदा होगा और किसकी फांसी की सजा लटकाने से।

कसाब के मामले में, उसका पाकिस्तानी होना और उसको बचाए रखने में किसी का राजनीतिक दवाब न होना भी महत्वपूर्ण कड़ी हो सकती है। वहीं, उसकी मौत से कहीं न कहीं पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंच सकता है। क्योंकि कसाब को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के रूप में पेश किया जा रहा था।

अफजल गुरु, राजीव गांधी के हत्यारों और राजाओना मामलों में जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और पंजाब के राजनीतिक समीकरण आड़े आते हैं।

अफजल की फांसी का इंतजार बढ़ा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पिछले सात साल लंबित संसद हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी की सजा पर अमल में अभी वक्त लग सकता है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल समेत सात दोषियों की दया याचिका फाइलें गृह मंत्रालय को पुनर्विचार के लिए लौटा दी हैं। 2001 में संसद पर हमले में सुप्रीम कोर्ट में 2005 में अफजल को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन अब तक उसकी दया याचिका पर फैसला नहीं हो पाया है।

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अफजल समेत लगभग एक दर्जन आरोपियों की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित थी, लेकिन इनमें सात दया याचिकाएं उन्होंने गृह मंत्रालय को लौटा दी हैं। वैसे अधिकारी का कहना था कि नए गृह मंत्री के आने के बाद सामान्य तौर पर राष्ट्रपति दया याचिकाओं को दोबारा राय के लिए भेजते हैं।

फाइलें लौटाए जाने से अफजल की फांसी में देरी तय है। वैसे, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने साफ कर दिया है कि अफजल की फाइल उनके पास नहीं पहुंची है और फाइल पहुंचते ही 48 घंटे के अंदर वे इस पर फैसला ले लेंगे। जाहिर है शिंदे के फैसले के बाद फाइल एक बार फिर राष्ट्रपति के पास जाएगी।

दरअसल, पिछले साल अगस्त में गृह मंत्रालय ने अफजल की दया याचिका खारिज करने की अनुशंसा के साथ फाइल राष्ट्रपति भवन भेजी थी। माना जा रहा था कि 20 दिन के भीतर कसाब की दया याचिका पर फैसला लेने वाले राष्ट्रपति अफजल मामले में भी ऐसा ही कुछ करेंगे, लेकिन दया याचिका पुनर्विचार के लिए भेजकर उन्होंने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है।

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