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बेकार पत्थर से बना देते हैं रॉक वूल, इसका इस्तेमाल मॉल, एयरपोर्ट, ग्रीन हाउस कारखानों में

स्टील प्लांटों से फेंके गए अवशिष्ट से बना रहे हैं रॉक वूल, तापरोधक के तौर पर मेट्रो, मॉल, एयरपोर्ट, ग्रीन हाउस, कारखानों में होती है इस्तेमाल

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 09:49 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 10:00 AM (IST)
बेकार पत्थर से बना देते हैं रॉक वूल, इसका इस्तेमाल मॉल, एयरपोर्ट, ग्रीन हाउस कारखानों में
बेकार पत्थर से बना देते हैं रॉक वूल, इसका इस्तेमाल मॉल, एयरपोर्ट, ग्रीन हाउस कारखानों में

धनबाद [विनय झा]। पत्थरों से रुई बनाना। यह जादू सा लगता है। लेकिन है सच। दरअसल यह हाथ की सफाई नहीं, री-साइकिलिंग का कमाल है। रिड्यूस, री-यूज एवं री-साइकिल का मंत्र अपना कर धनबाद, झारखंड के कुछ युवा उद्यमी स्टील प्लांट से निकले अवश्ष्टि से सफेद रुई यानी रॉक वूल तैयार कर रहे हैं। दरअसल, देश के स्टील प्लांटों में लोहा व स्टील बनाने के दौरान ब्लास्ट फर्नेस (भट्टी) से बड़ी मात्रा में अवशिष्ट (स्लैग) पत्थर निकलता है। इसका विशाल अंबार जमा है, जो बेकार पड़ा रहता है। डंपिंग व प्रदूषण की समस्या भी रहती है।

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धनबाद निवासी दिनेश हेलीवाल, पुरुषोत्तम हेलीवाल व सचिन हेलीवाल इसी स्लैग से रॉक वूल नामक रुई बना रहे हैं। माटी से भी सस्ते मोल वाले (100-200 रुपये प्रति टन) इन पत्थरों को कारखाने में री-साइकिल कर बहुमूल्य रॉक वूल (18,000 रुपये प्रति टन तक) बनाते हैं। अभी वे सालाना औसतन 12,000 टन पत्थर को 10,000 टन रुई में तब्दील करते हैं।

क्या है रॉक वूल

यह रुई तापरोधक (इंसुलेशन) के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाती है। यह गर्म को गर्म और ठंडे को ठंडा रखती है। यानी किसी पदार्थ की गर्मी को बाहर जाने से रोकना हो अथवा किसी जगह को ठंडा रखने के लिए बाहर की गर्मी को आने रोकना है तो बीच में यह रुई दीवार का काम करती है। इसे रॉक वूल इंसुलेटर (ऊष्मारोधी रुई) कहते हैं। यह ऊर्जा व बिजली बचाती है।

दिनेश हेलीवाल बताते हैं कि दिल्ली की मेट्रो, काठमांडू, बेंगलुरु, चंडीगढ़ और रांची एयरपोर्ट की छत, रांची हाई कोर्ट की छत-दीवार, देश के कई मॉल-मल्टीप्लेक्स, कोल्ड स्टोरेज, ग्रीन हाउस, कई कारखानों में धनबाद की ऊष्मारोधी इस रुई का ही इस्तेमाल हुआ है। देश-विदेश में इसकी इतनी मांग है कि वे अपने कारखाना से इसे पूरी नहीं कर पाते।

जैसी जरूरत, वैसा इस्तेमाल

लूज रॉक वूल सफेद रुई की तरह होती है, जिसका इस्तेमाल कोल्ड स्टोरेज, स्टील प्लांट, रासायनिक कारखानों में ऊष्मारोधी के रूप में होता है। वहीं एलआरबीएम (लाइट रेजिन ब्रांडेड मैट्रेस) तापरोधक गद्दे की परत के तौर पर पावर प्लांट, स्टील प्लांट व खाद कारखानों में प्रयुक्त होती है। आरबी (रेजिन ब्रांडेड) स्लैब मेट्रो, एयरपोर्ट, मॉल, मल्टीप्लेक्स, ग्रीन हाउस को ठंडा रखने को छत-दीवार में प्रयुक्त होता है। चौथे उत्पाद का उपयोग कारखानों व रिफाइनरी के पाइप पर आवरण के रूप होता है।

ऐसे बनती है पत्थर से रुई

आपने बचपन में फेरीवाले को ठोस चीनी से बिल्कुल हल्की रेशेदार हवाई मिठाई बनाते देखा होगा। सचिन हेलीवाल बताते हैं कि लगभग इसी सिद्धांत पर पत्थर से यह रुई बनती है। कारखाने की विशेष भट्ठी में हार्ड कोक से 1100 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान पैदा किया जाता है। इस तापमान पर पत्थर पिघल कर पूरी तरह तरल पदार्थ बन जाता है। इस तरल को बहुत तेज गति से घूमते स्पिनर टायर्स पर गिराया जाता है। जहां यह सेमी लिक्विड व रेशेदार पदार्थ की शक्ल ले लेता है। फिर कई कांप्रेशर के जरिए पैदा तेज एयर प्रेशर में यही रेशेदार पदार्थ बिल्कुल हल्की सफेद रुई में तब्दील होकर कन्वेयर बेल्ट के जरिए बाहर आ जाता है।

स्टील प्लांट से निकलने वाले स्लैग पत्थर में मुख्य रूप से सिलिका रहता है। इसके अलावा कम मात्रा में लौह अयस्क, मैगनेशियम ऑक्साइड व सल्फर रहता है। जमीन पर इसके अंबार से वायु व जल प्रदूषण होता है। 


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