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किसी देश के विकास में रिसर्च एंड डेवलेपमेंट की अहम भूमिका होती है, जानें- कहां आता है इसमें भारत

किसी भी देश की तरक्‍की की राह वहां पर होने वाला विकास खोलता है। इसमें शोध और नवाचार की खासी भूमिका होती है। जहां इस पर अधिक ध्‍यान दिया जाता है वो देश आगे बढ़ता ही रहता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 08:25 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 08:25 AM (IST)
किसी देश के विकास में रिसर्च एंड डेवलेपमेंट की अहम भूमिका होती है, जानें- कहां आता है इसमें भारत
रिसर्च डेवलेपमेंट से होकर गुजरती है विकास की राह

डॉ. सुशील कुमार सिंह। शोध और नवाचार को लेकर मानस पटल पर दो प्रश्न उभरते हैं। प्रथम यह कि क्या विश्व परिदृश्य में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच उच्चतर शिक्षा, शोध और ज्ञान के विभिन्न संस्थान स्थिति के अनुसार बदल रहे हैं। दूसरा क्या अर्थव्यवस्था, दक्षता और प्रतिस्पर्धा के मामले में तकनीक के इस दौर में नवाचार का पूरा लाभ आम जनमानस को मिल रहा है। गौरतलब है कि किसी भी देश का विकास वहां के लोगों के विकास से जुड़ा होता है और इसमें शोध की अहम भूमिका होती है। शोध और अध्ययन-अध्यापन के बीच न केवल गहरा नाता है, बल्कि शोध ज्ञान-सृजन और ज्ञान को परिष्कृत करने के काम भी आता है।

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मौजूदा समय में देश में सभी प्रारूपों के कुल 998 विश्वविद्यालय हैं, जिनके ऊपर न केवल ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डॉक्टरेट की डिग्री देने की जिम्मेदारी है, बल्कि भारत विकास एवं निर्माण के लिए अच्छे शोधार्थी भी निर्मित करने का दायित्व है। यह कितनी ईमानदारी से निभाया जा रहा है यह पड़ताल का विषय है। ऐसे में शोध कार्यों और नवाचार का बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में तो होना ही चाहिए। यह अच्छी बात है कि मौजूदा बजट में सरकार ने इस पर काफी बल दिया गै। इससे भारत को शोध और नवाचार की दुनिया में नया मुकाम मिल सकता है।

वैसे एक सच्चाई यह भी है कि उच्च शिक्षा में शोध को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता, क्योंकि यह एक समय साध्य और धैर्यपूर्वक अनुशासन में रहकर किया जाने वाला उपक्रम है, जिसके लिए मन का तैयार होना जरूरी है। पीएचडी की थीसिस यदि मजबूती से विकसित की गई हो तो यह देश के नीति-निर्माण में भी काम करती है, पर यह मानो अभी दूर की कौड़ी है। कुछ उच्च शिक्षण संस्थाओं में शोध कराने वाले और शोध करने वाले दोनों ज्ञान की खामियों से जूझते देखे जा सकते हैं। इसकी एक बड़ी वजह डिग्री और धन का नाता होना भी है।

द टाइम्स विश्व यूनिवíसटी रैंकिंग 2020 के अनुसार इंग्लैंड की यूनिवíसटी ऑफ ऑक्सफोर्ड शीर्ष पर है, जबकि दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालय में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। यह देश की उच्च शिक्षा की कमजोर तस्वीर है। ऐसे में शोध का स्वत: कमजोर होना लाजमी है। शिक्षाविद् प्रो. यशपाल ने कहा था कि जिन शिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता, वे न तो शिक्षा का भला कर पाती हैं और न ही समाज का।

एक समस्या यह भी है कि देश में युवा शोध और नवाचार को लेकर करियर बनाने के प्रति बहुत उत्सुक नहीं हैं। क्योंकि अभी सिविल सेवा एवं अन्य प्रशासनिक पदों में जो मान-सम्मान है वह शोध में नहीं। साथ ही आíथक तंगी भी इसका प्रमुख कारण है। शोध से ही ज्ञान के नए क्षितिज विकसित होते हैं। शायद इसी वजह से भारत में शोध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही चिंतनीय हैं।

पड़ताल बताती है कि अनुसंधान और विकास में सकल व्यय वित्तीय वर्ष 2007-08 की तुलना में 2017-18 तक यह लगभग तीन गुने की वृद्धि लिए हुए है। फिर भी अन्य देशों की तुलना में भारत का शोध विन्यास और विकास कमतर ही रहा है। भारत शोध एवं नवाचार पर अपनी जीडीपी का 0.7 फीसद ही व्यय करता है, जबकि चीन 2.1 और अमेरिका 2.8 फीसद खर्च करते हैं। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया और इजरायल जैसे देश इस मामले में चार फीसद से अधिक खर्च के साथ कहीं अधिक आगे हैं।

हालांकि केंद्र सरकार ने देश में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए आम बजट साल 2021-22 में आगामी पांच वर्षो के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के लिए 50 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। साथ ही कुल शिक्षा बजट में से उच्च शिक्षा के लिए भी 38 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च की बात देखी जा सकती है, जो शोध और उच्च शिक्षा के लिहाज से एक सकारात्मक और मजबूत पहल है।

इसी दिशा में राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति (एसटीआइपी) 2020 का मसौदा भी इस दिशा में बड़ा कदम है, जो 2013 की ऐसी ही नीति का स्थान लेगी। उपरोक्त बिंदु शोध और शिक्षा की दृष्टि से सजग भारत की तस्वीर पेश करते हैं।जीवन के हर पहलू में ज्ञान-विज्ञान, शोध और शिक्षा की अहम भूमिका होती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय विज्ञानियों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास के साथ राष्ट्र निर्माण का शानदार उदाहरण है।

बीते वर्षो में भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देश में मल्टीनेशनल रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब यह 1150 तक पहुंच गई है। साथ ही वैश्विक नवाचार के मामले में भी यह 57वें स्थान पर है। भारत में प्रति मिलियन आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या साल 2000 में जहां 110 थी वहीं 2017 तक 255 हो गई। भारत वैज्ञानिक प्रकाशन वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर है। पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में 9वें स्थान पर है।

भारत में कई अनुसंधान केंद्र हैं और प्रत्येक केंद्र का अपना कार्यक्षेत्र है। चावल, गन्ना, चीनी से लेकर पेट्रोलियम, सड़क और भवन निर्माण के साथ पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष केंद्र तक देखे जा सकते हैं। ऐसे केंद्रों के शोध एवं अनुसंधान और नवाचार पर देश के नागरिकों की प्रगति टिकी हुई है। भारत में नई शिक्षा नीति 2020 तथा उच्च शिक्षा में सुधार के लिए आयोग बनाने की पहल और एसटीआइपी 2020 जैसे मसौदे शोध एवं नवाचार के लिए मील का पत्थर सिद्ध हो सकते हैं। बशर्ते समर्पण में कमी न हो तो।

(निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन)


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