नई दिल्ली, जेएनएन। परवेज मुशर्रफ भारत के खिलाफ लगातार बयान देते रहे हैं। उन्होंने इसके लिए झूठ का भी सहारा लिया। अपनी पुस्तक इन द लाइन ऑफ फायर में भी उन्होंने भारत के खिलाफ आग उगला, लेकिन उन्हें इसका माकूल जवाब मिला। मुशर्रफ के इन बयानों पर उस समय भारतीय राजनेताओं और शीर्ष नौकरशाहों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने कहा था कि कारगिल युद्ध को लेकर वह जो कुछ भी कह रहे हैं वह और कुछ नहीं बल्कि झूठ का पुलिंदा है। उन्होंने हम पर हमला किया और फिर हार गए। मुशर्रफ को वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। यही हकीकत है। कुछ अनुमानों के पाकिस्तानी सेना के 1,000 से 2,000 जवान मारे गए।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने कहा था कि किताब में जिन बातों का जिक्र किया गया है वह बहुत कुछ मनगढ़ंत है। अपनी पुस्तक में मुशर्रफ डरपोक जनरल प्रतीत होते हैं और ऐसा लगता है कि सारा दोष नवाज शरीफ पर डाल रहे हैं। कारगिल में जीत का मुशर्रफ का दावा हास्यास्पद है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता चौधरी एहसान इकबाल ने कहा कि अगर जनरल मुशर्रफ कारगिल के नायक हैं तो इस पर आयोग क्यों नहीं बनाते?
'आगरा शिखर सम्मेलन की असफलता के लिए मुशर्रफ जिम्मेदार'
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आगरा वार्ता को लेकर जनरल मुशर्रफ की किताब में आगरा में हमारी वार्ता की विफलता पर उनकी टिप्पणियों ने मुझे चौंका दिया। किसी ने जनरल का अपमान नहीं किया और निश्चित रूप से किसी ने मेरा अपमान नहीं किया। सीमा पार आतंकवाद को समाप्त किए जाने तक भारत-पाक संबंधों में सामान्य स्थिति नहीं आ सकती थी।
उन्होंने कहा था कि जब पाकिस्तान में सरकार बदली तो जनरल मुशर्रफ को आगरा आमंत्रित करने का फैसला किया। लेकिन आगरा में मुशर्रफ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हो रही हिंसा को 'आतंकवाद' नहीं कहा जा सकता। उन्होंने इसे आजादी के लिए लड़ाई बताया।
उन्होंने कहा था कि मुशर्रफ के इस रुख को भारत स्वीकार नहीं कर सकता। यही आगरा शिखर सम्मेलन की असफलता के लिए जिम्मेदार था। यदि मुशर्रफ हमारी स्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार होते, तो आगरा शिखर सम्मेलन सफल हो जाता।
आडवाणी ने कहा था, मुझे मुशर्रफ पर आती है दया
तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जम्मू कश्मीर को लेकर मुशर्रफ के बयान को बेतुका बताते हुए वर्ष 2001 में देहरादून में कहा था कि मैं इस तरह के बयान से स्तब्ध हूं। यह बेतुका हास्यास्पद है। मुझे मुशर्रफ पर दया आती है।
उन्होंने कहा था कि अगर मुशर्रफ उनकी हालत दो आपराधिक साजिशकर्ताओं की तरह है। जब एक को पकड़ा जाता है, जबकि दूसरा सरकारी गवाह बन जाता है। अगर कश्मीर में आतंकियों पर हमारी कार्रवाई को मुशर्रफ आतंक का राज बताते हें तो अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई को क्या कहेंगे।
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