Move to Jagran APP

अब अाप जैसा चाहोगे वैसा बच्चा पैदा होगा, वैज्ञानिकों ने तैयार की तकनीक

कौन नहीं चाहता कि उसका बच्चा दुनिया में सबसे बढि़या हो और अपनी प्रतिभा से वह लोगों के बीच छा जाए। इसके लिए माता-पिता हर जतन करते हैं। बच्चा उनके मन के अनुरूप नहीं हो पाता, तो वे मन मसोसकर रह जाते हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2015 06:02 PM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2015 06:10 PM (IST)
अब अाप जैसा चाहोगे वैसा बच्चा पैदा होगा, वैज्ञानिकों ने तैयार की तकनीक

जागरण डेस्क, नई दिल्ली। कौन नहीं चाहता कि उसका बच्चा दुनिया में सबसे बढि़या हो और अपनी प्रतिभा से वह लोगों के बीच छा जाए। इसके लिए माता-पिता हर जतन करते हैं। बच्चा उनके मन के अनुरूप नहीं हो पाता, तो वे मन मसोसकर रह जाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही वैज्ञानिक अब डिजाइनर बच्चे जन्म देने की तकनीक विकसित करने की कोशिश में हैं।

loksabha election banner

ऐसा नहीं है कि यह अभी सोच के स्तर पर ही है। जानवरों में इस तरह के प्रयोग सफल होने के बाद आदमी में भी इस तरह का प्रयोग करने पर बातें हो रही हैं। यह मानव जीन को इच्छानुसार संपादित करने की तकनीक है। इसे क्रिस्पआर नाम दिया गया है। पिछले हफ्ते वाशिंगटन में इस पर वैज्ञानिकों का सम्मेलन भी हुआ।

जेनेटिक रोग के लिए अच्छा

इस दिशा में कदम बढ़ाने से पहले वैज्ञानिक इस पर बातचीत दो कारणों से कर रहे हैं। दरअसल, मानव भ्रूण में डीएनए में बदलाव से अच्छी चीजें संभव हैं तो कई तरह की आशंकाएं भी हैं। अच्छा यह है कि इससे कई किस्म के रोगों पर पहले ही नियंत्रण पाना संभव होगा। थैलेसीमिया और कुछ खास कोशिकाओं तक रक्त पहुंचने में बाधा वाले रोगों से बचने के लिए यह तकनीक लगभग वरदान की तरह है। जो भी रोग जेनेटिक हैं, उन पर इस तकनीक से जन्म से पहले ही सुधार संभव हो सकता है।

लेकिन खतरे भी हैं

वैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धिमान होने के लिए 'सही जीन्स' और 'सही वातावरण' की ही जरूरत नहीं होती, बल्कि 'जीन्स के सही सम्मिलन' की भी जरूरत होती है। किस जीन की क्या विशेषता है, इस पर पिछले दस साल में अलग-अलग काफी जानकारियां जुटाई गई हैं। फिर भी वैज्ञानिक इस पर एक राय नहीं हो पाए हैं कि इनके सम्मिलन से क्या होता है या क्या कुछ हो सकता है।

अभी और बात करेंगे

वाशिंगटन सम्मेलन में मानव जीन में बदलाव के मेडिकल, सामाजिक, पर्यावरणीय और नैतिक परिणामों पर वैज्ञानिकों ने और बात करने पर जोर दिया। यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय जैवनैतिकता समिति ने भी इसे 'संवेदनशील' मामला बताया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.