क्या है 'वेज एंड मींस एडवांस'?
क्या है 'वेज एंड मींस एडवांस'? आरबीआइ को यह सीमा बढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ी?
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। हाल में आपने पढ़ा होगा कि रिजर्व बैंक ने सरकार के लिए चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 'वेज एंड मींस एडवांस' के रूप में उधार लेनी की सीमा बढ़ाकर 70,000 करोड़ रुपये कर दी है जबकि अप्रैल-जून तिमाही में यह 60,000 करोड़ रुपये थी।
क्या है 'वेज एंड मींस एडवांस'? आरबीआइ को यह सीमा बढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ी? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।
सरकार पूरे वित्त वर्ष का बजट बनाती है। उस समय वह अनुमान लगाती है कि हर माह लगभग कितनी राशि खर्च होगी और कितनी खजाने में आएगी। लेकिन कभी-कभी बीच में ऐसी स्थिति बन जाती है जब खजाने में राशि कम आती है और खर्च ज्यादा होता है। हालांकि ऐसा थोड़े समय के लिए होता है। लेकिन ऐसी स्थिति से निपटने को सरकार बाजार से उधार उठाने के बजाय आरबीआइ से कर्ज ले लेती है जिसे 'वेज एंड मींस एडवांस' कहते हैं। यह कॉलेटरल फ्री लोन होता है।
इसका मतलब यह है कि 'वेज एंड मींस एडवांस' लेने के लिए सरकार को आरबीआइ के पास कुछ भी गिरवी रखने की जरूरत नहीं होती। जब भी सरकार को जरूरत पड़ती है, उसे यह राशि उधार मिल जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 17(5) के तहत केंद्र व राज्य सरकार दोनों को आरबीआइ से इस तरह का लोन लेने का अधिकार है।
देश की आर्थिक स्थिति और सरकार की जरूरत के मद्देनजर आरबीआइ समय-समय पर 'वेज एंड मींस' के तहत उधार लेने की सीमा में बदलाव करता रहता है। मसलन, अस्सी के दशक में देश में जब भयंकर सूखा पड़ा तो कई राज्यों को खजाना भरने में दिक्कत आने लगी थी। उस समय आरबीआइ ने दो बार राज्यों के लिए 'वेज एंड मींस एडवांस' के रूप में लोन लेने की सीमा बढ़ायी।
दरअसल केंद्र सरकार 'वेज एंड मींस एडवांस' के रूप में कितनी राशि और किस अवधि के लिए उधार ले सकती है यह आरबीआइ के साथ मिलकर तय किया जाता है। मसलन चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाह में सरकार 70,000 करोड़ 'वेज एंड मींस एडवांस' के रूप में उधार ले सकती है।
इससे अधिक राशि एडवांस ली जाए तो फिर यह ओवर ड्राफ्ट हो जाएगा और इसके लिए उसे ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा। सरकार को 90 दिन के 'वेज एंड मींस एडवांस' पर आरबीआइ रेपो रेट के बराबर ब्याज दर वसूलता है। यानी आरबीआइ जिस दर पर बैंकों को अलपावधि उधार देता है उसी दर पर सरकार को भी धनराशि उपलब्ध कराता है।
अगर सरकार 90 दिन तक 'वेज एंड मींस एडवांस' नहीं चुका पाती तो उसके बाद रेपो दर के साथ-साथ अतिरिक्त एक प्रतिशत ब्याज भी देना पड़ता है। हालांकि जब सरकार ओवर ड्राफ्ट लेती है तो ब्याज दर बढ़ जाती है और उसे प्रचलित रेपो दर से दो प्रतिशत अंक अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। ओवरड्राफ्ट 10 कार्यदिवस से ज्यादा नहीं रह सकता।
जहां तक राज्य सरकारों के लिए 'वेज एंड मींस एडवांस' की सीमा का सवाल है तो यह प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग है। आरबीआइ ने सुमित बोस की अध्यक्षता वाली एडवाइजरी कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर जनवरी 2016 में राज्यों के लिए यह सीमा तय की थी। वैसे राज्य सरकारों को 'वेज एंड मींस एडवांस' के अलावा स्पेशल ड्रॉइंग फैसिलिटी (एसडीएफ) के जरिए भी उधार लेने की सुविधा प्राप्त है।
एसडीएफ लोन लेने के लिए राज्य सरकार को सरकारी प्रतिभूति (गवर्नमेंट सिक्योरिटी) आरबीआइ के पास गिरवी रखनी होती है। इसलिए इस पर उन्हें ब्याज दर भी रेपो रेट से एक प्रतिशत अंक कम ही चुकानी पड़ती है। यही वजह है कि राज्य सरकारों की जब एसडीएफ के जरिए उधार लेने की सीमा खत्म हो जाती है तब वे 'वेज एंड मींस एडवांस' का सहारा लेती हैं। राज्य सरकारों को 14 दिन के ओवरड्राफ्ट की सुविधा होती है।