Parliament Session 2022: प्रदूषण को लेकर शहरों की रैकिंग के लिए क्या है व्यवस्था? केंद्र सरकार ने बताया- इसके लिए नहीं है कोई...
केंद्र सरकार ने लोकसभा में प्रदूषण को लेकर शहरों की रैकिंग के लिए क्या व्यवस्था है। इसके बारे में अहम जानकारी दी। केंद्र सरकार ने बताया कि प्रदूषण के मामले में शहरों की रैंकिंग के लिए कोई स्थापित तंत्र नहीं है।
नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि प्रदूषण के मामले में शहरों की रैंकिंग के लिए कोई स्थापित तंत्र नहीं है। सरकार ने कहा कि निजी संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपग्रह डेटा को उचित जमीनी सच्चाई से मान्य नहीं किया जाता है। केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में कांग्रेस सांसद ज्योत्सना चरणदास महंत के एक सवाल के जवाब में यह बात कही।
शहरों की रैंकिंग के लिए नहीं है कोई स्थापित तंत्र- अश्विनी चौबे
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में कहा कि प्रदूषण के मामले में शहरों की रैंकिंग के लिए कोई स्थापित तंत्र नहीं है। इसके लिए प्रामाणिक डेटा और उचित सहकर्मी समीक्षा की भी आवश्यकता होती है। सरकार को पता है कि कई निजी संस्थान और विश्वविद्यालय अलग-अलग तरीकों, अलग-अलग डेटासेट और मापदंडों के लिए अलग-अलग वेटेज का उपयोग करके शहरों की रैंकिंग कर रहे हैं। रैंकिंग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला डेटा मुख्य रूप से सैटेलाइट इमेजरी से निकाला जाता है, जिसे उचित ग्राउंड ट्रुथिंग द्वारा मान्य नहीं किया जाता है।
वायु प्रदूषण और जीवन प्रत्याशा के बीच नहीं है कोई रैखिक संबंध
बता दें कि 18 जुलाई को सरकार ने लोकसभा में बताया था कि द एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट शिकागो विश्वविद्यालय (EPIC) द्वारा प्रकाशित वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (AQLI) में माना गया वायु प्रदूषण और जीवन प्रत्याशा के बीच कोई रैखिक संबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि विशेष रूप से वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु का सीधा संबंध स्थापित करने के लिए कोई निर्णायक डेटा उपलब्ध नहीं है।
भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है वायु प्रदूषण
द एनर्जी पालिसी इंस्टीट्यूट शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा जून में जारी AQLI की वार्षिक अपडेट रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है और यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नए दिशानिर्देश को पूरा नहीं किया गया तो औसत भारतीय निवासी पांच साल की जीवन प्रत्याशा खो देंगे। पिछले साल जारी WHO की नई गाइडलाइन के अनुसार, औसत वार्षिक पीएम 2.5 एकाग्रता पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। पहले यह 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था
केंद्रीय मंत्रालय ने खारिज किया था पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक
इससे पहले जून में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 को खारिज कर दिया था। जिसने भारत को 180 देशों की सूची में सबसे नीचे स्थान दिया। मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 में निराधार धारणाओं के आधार पर कई संकेतक हैं। प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले इनमें से कुछ संकेतक अनुमानों और अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं।