पाकिस्तान सेना प्रमुख बाजवा का भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण के क्या हैं मायने? क्या रावलपिंडी-इस्लामाबाद के बीच दूरी बढ़ी- एक्सपर्ट व्यू
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय और राजनीति सत्ता का केंद्र इस्लामाबाद के बीच दूरी बढ़ गई है? उनके बयान के आखिर निहितार्थ क्या हैं? कहीं उनके बयान के पीछे बाजवा की राजनीतिक महत्वकांक्षा तो नहीं?
नई दिल्ली, जेएनएन। पाकिस्तान में राजनीतिक संकट के बीच सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है। बाजवा ने कहा कि भारत इच्छा जताए तो पाकिस्तान कश्मीर समेत सभी विवादित मुद्दों का वार्ता व कूटनीति के जरिए समाधान निकालने के लिए तैयार है। बाजवा का यह बयान ऐसे समय आया है, जब पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है। इमरान खान की सरकार संकट में है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा का यह बयान काफी मायने रखता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय और राजनीति सत्ता का केंद्र इस्लामाबाद के बीच दूरी बढ़ गई है? उनके बयान के आखिर निहितार्थ क्या हैं? कहीं उनके बयान के पीछे बाजवा की राजनीतिक महत्वकांक्षा तो नहीं? आइए जानते हैं कि इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने भारत के साथ संबंधों में उदार दृष्टिकोण दिखाकर दूर की चाल चली है। उन्होंने कहा कि बाजवा ने एक तीर से कई निशानों को साधने की कोशिश की है। उनके इस बयान का पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति और कूटनीतिक पहलू है। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान में इमरान सरकार संकट से गुजर रही है। वह विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही है। भारत की आंतरिक राजनीति में भी भारत एक अहम पहलू रहा है। वहीं दूसरी ओर इस बयान के बाद वह अमेरिका को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि वह भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते कायम करना चाहते हैं। उनके देश की विदेश नीति स्वतंत्र है। वह चीन के इशारे पर नहीं संचालित होती है। यह कहीं न कहीं अमेरिका को खुश करने की चाल हो सकती है।
2- प्रो. पंत ने कहा कि बाजवा का यह बयान ऐसे समय आया है, जब पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध बड़े कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इमरान सरकार का चीन और रूस के साथ मधुर संबंध और अमेरिकी से बढ़ती दूरी ने पाकिस्तानी सेना को चिंता में डाल दिया है। पाकिस्तान सेना के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते अहम है। सेना अमेरिका व पश्चिमी देशों को नाराज नहीं करनी चाहती। रूस यूक्रेन संघर्ष में पाकिस्तान सरकार के स्टैंड से भी अमेरिका व पश्चिमी देश काफी नाखुश है। पाकिस्तान सेना अब भी अपने हथियारों के लिए काफी हद तक अमेरिका पर निर्भर है। इसलिए वह अमेरिका से संबंधों को बेहद खराब नहीं करना चाहता।
3- उन्होंने कहा कि बाजवा का यह बयान दर्शाता है कि रावलपिंडी और इस्लामाबाद के बीच दूरी बढ़ी है। बाजवा का यह बयान ऐसे समय आया है जब नेशनल असेंबली में अल्पमत में आ चुकी इमरान खान सरकार विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही है। पाकिस्तान में महंगाई चरम पर है। वहां की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है। ऐसे में बाजवा ने यह बयान देकर कहीं न कहीं यह संदेश दिया है कि इमरान सरकार कूटनीतिक मोर्चे पर भी विफल रही है। इस बयान के जरिए उन्होंने यह सिद्ध करना चाहा है कि भारत के साथ तल्ख रिश्तों के लिए इमरान खान सरकार दोषी है।
4- श्रीलंका व नेपाल के साथ भारत के करीब होते रिश्तों से पाकिस्तान ने भी सबक लिया है। श्रीलंका और नेपाल के आर्थिक संकट में भारत सरकार ने जिस तरह आगे बढ़कर मदद की वह पड़ोसी देशों के लिए एक नजीर है। संकट काल में श्रीलंका और नेपाल के साथ चीन ने दूरी बना ली है और भारत में मोदी सरकार के 'नेबरहुड फर्स्ट' की नीति के तहत पड़ोसी मुल्कों को मदद की है। हाल में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर की श्रीलंका की यात्रा और नेपाल के प्रधानमंत्री का भारत आगमन इसी कड़ी के रूप में देखना चाहिए। इसलिए वह भारत से एक सामान्य संबंध बनाने के इच्छुक हैं। प्रो पंत बाजवा के इस बयान को भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखते हैं।
5- बाजवा के इस बयान का सामरिक मायने भी है। पाकिस्तानी सेना यह कतई नहीं चाहती कि रूस यूक्रेन जंग के दौरान अमेरिका से रिश्ते और खराब हो। दोनों देशों के संबंध एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं। सेना इमरान की अमेरिका विरोधी नीति से नाराज है। प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका महाशक्ति है। पाकिस्तानी सेना यह जानती है कि रावलपिंडी के लिए अमेरिका और पश्चिम देश बहुत जरूरी हैं। सेना को विश्वास है कि इमरान खान के सत्ता से हटने के बाद अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होगा। चीन के साथ पाकिस्तान के रिश्ते जैसे हैं वैसे ही रहेंगे। इसमें कोई बदलाव होने वाला नहीं है। पाकिस्तानी सेना के लिए अमेरिका अब भी बेहद खास है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पाकिस्तानी सेना के पास ज्यादातर हथियार अमेरिका निर्मित हैं। इसलिए पाकिस्तान की सेना अमेरिका से बेहतर राजनीतिक संबंध चाहती है।
इमरान के राजनीतिक भविष्य का फैसला आज
इमरान खान के राजनीतिक भविष्य के लिए आज का दिन बेहद खास है। इमरान की सरकार नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली वोटिंग का सामना करेगी। इमरान ने अपने सभी सांसदों, और सरकार समर्थित सांसदों को वोटिंग के दौरान नेशनल असेंबली में मौजूद रहने को कहा है। इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि इमरान अपनी कुर्सी को नहीं बचा सकेंगे। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि वो अपनी ही पार्टी के करीब 50 सदस्यों का समर्थन खो चुके हैं। इसके अलावा एमक्यूएम-पी ने पीपीपी से डील कर ली है। इस पार्टी ने पहले इमरान सरकार को अपना समर्थन दिया हुआ था। वहीं बलूचिस्तान आवामी पार्टी भी इमरान खान की पार्टी से समर्थन वापस ले चुकी है। बीएपी ने नेशनल असेंबली के स्पीकर से अपने सदस्यों के लिए विपक्ष में बैठने की जगह तक मांगी है। वहीं इमरान खान देश की सेना का समर्थन पूरी तरह से खो चुकी है। पाकिस्तान के सियासी हालात पर पाकिस्तान सेना की पैनी नजर है।