जानिये, क्या है रेमिटेंस? अर्थव्यवस्था के लिए इसका क्या महत्व है?
यदि अनिवासी भारतीय रेमिटेंस के रूप में विदेशी मुद्रा न भेजें तो भारत भी तुर्की और अर्जेंटीना जैसे देशों की क़तार में खड़ा होता।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। सरकार ने चालू खाते के घाटे को नियंत्रित रखने के लिए हाल में कई क़दम उठाए हैं। ग़ैर-ज़रूरी आयात को कम करने के लिए कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाया गया है। वहीं कुछ अन्य चीज़ों पर भी कस्टम ड्यूटी बढ़ायी गई है, लेकिन इन सब उपायों के बीच एक वर्ग ऐसा है जो देश से बाहर रह कर इस समस्या के समाधान में मदद कर रहा है। यह वर्ग है विदेशों में बसे क़रीब 2 करोड़ प्रवासी भारतीय जो हर साल अरबों डालर रेमिटेंस के रूप में स्वदेश भेज रहे हैं। रेमिटेंस क्या हैं? अर्थव्यवस्था के लिए इसका क्या महत्व है? जागरण पाठशाला के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।
::: जागरण पाठशाला :::
जब एक प्रवासी अपने मूल देश को बैंक, पोस्ट ऑफि़स या ऑनलाइन ट्रांसफर से धनराशि भेजता है तो उसे रेमिटेंस कहते हैं। उदाहरण के लिए खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीय कामगार या अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में डॉक्टर और इंजीनियर की नौकरी कर रहे प्रवासी भारतीय जब भारत में अपने माता पिता या परिवार को धनराशि भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं।
जो देश रेमिटेंस प्राप्त करता है उसके लिए यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का ज़रिया होता है और वहाँ की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। ख़ासकर छोटे और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने में रेमिटेंस ने अहम भूमिका निभाई है।
कई देश ऐसे हैं जिनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में रेमिटेंस से प्राप्त राशि का योगदान अन्य क्षेत्रों के मुक़ाबले काफ़ी अधिक है। मसलन, नेपाल, हैती, ताजिकिस्तान और टोंगा जैसे देश अपने जीडीपी के एक चौथाई के बराबर राशि रेमिटेंस के रूप में प्राप्त करते हैं।
दुनिया में सर्वाधिक रेमिटेंस प्राप्त करता है भारत
वैसे राशि के हिसाब से देखें तो दुनिया भर में सर्वाधिक रेमिटेंस भारत प्राप्त करता है। विश्र्व बैंक के अनुसार 2017 में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने 69 अरब डॉलर रेमिटेंस के रूप में स्वदेश भेजे। यह राशि भारत के जीडीपी की 2.7 प्रतिशत है और पिछले साल देश में आए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई ) से काफ़ी अधिक है। रेमिटेंस प्राप्त करने के मामले में भारत ने पड़ोसी देश चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
एक समय था जब सबसे ज्यादा रेमिटेंस चीन में ही आते थे। हालाँकि 2017 में चीन को रेमिटेंस से 64 अरब डॉलर, फिलीपींस को 33 अरब डॉलर, मैक्सिको को 31 अरब डॉलर, नाइजीरिया को 22 अरब डॉलर और मिस्त्र को 20 अरब डॉलर प्राप्त हुए। कुल मिलाकर पूरी दुनिया में 613 अरब डॉलर राशि का रेमिटेंस के रूप में आदान - प्रदान हुआ।
इस तरह पता चलता है कि रेमिटेंस के रूप में कितनी बड़ी राशि का आदान प्रदान की वैश्रि्वक स्तर पर विभिन्न देशों के मध्य होता है। हालाँकि प्रवासियों को अपने मूल देश रेमिटेंस भेजने में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। सबसे बड़ी कठिनाई रेमिटेंस भेजने की लागत है। विश्र्व बैंक के अनुसार लगभग 200 डॉलर भेजने पर 7.1 प्रतिशत लागत आती है जो सतत् विकास लक्ष्यों में तय किये गए 3 प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में दोगुनी से ज्यादा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में रेमिटेंस की महत्वपूर्ण भूमिका है। फि़लहाल भारत का चालू खाते का घाटा जीडीपी के दो प्रतिशत के बराबर है। चालू खाते का घाटा देश के भीतर आने वाली विदेशी मुद्रा और देश से बाहर जाने वाली विदेशी मुद्रा की राशि के अंतर को दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अनिवासी भारतीय रेमिटेंस के रूप में विदेशी मुद्रा न भेजें तो हैं तो यह पाँच प्रतिशत के आसपास होता और भारत भी तुर्की और अर्जेंटीना जैसे देशों की क़तार में खड़ा होता।