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देश के सामान्य निवासियों का दस्तावेज है NPR, जानें- जनगणना से कितना अलग है एनपीआर

जनगणना और एनपीआर में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। आइए समझते हैं दोनों की विशेषताएं मकसद और अंतर क्या है ।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 24 Dec 2019 08:13 PM (IST)Updated: Wed, 25 Dec 2019 12:18 AM (IST)
देश के सामान्य निवासियों का दस्तावेज है NPR, जानें- जनगणना से कितना अलग है एनपीआर
देश के सामान्य निवासियों का दस्तावेज है NPR, जानें- जनगणना से कितना अलग है एनपीआर

नई दिल्ली, प्रेट्र। मोदी सरकार अगले साल और दो बड़े काम करने जा रही है। देश भर में जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का विवरण होगा। जनगणना और एनपीआर में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। आइए समझते हैं दोनों की विशेषताएं, मकसद और अंतर क्या है और किस कानून के तहत ये प्रक्रियाएं पूरी की जाती हैं। एनपीआर देश के सभी सामान्य निवासियों का रजिस्टर है। इसे नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियमों, 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव/मोहल्ला/वार्ड/कस्बा), तहसील (उप-जिला), जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है।

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कौन है सामान्य निवासी?

कोई भी निवासी जो छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है या छह महीने या उससे अधिक समय तक वहां रहने का इरादा रखता है, वह सामान्य निवासी है। कानून के मुताबिक हर सामान्य निवासी को एनपीआर में अनिवार्य रूप से पंजीकरण करना होता है और उसे राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने का प्रावधान भी है।

कब शुरू होगी एनपीआर की प्रक्रिया ?

असम के अलावा पूरे देश में जनगणना के लिए घर-घर गणना के साथ एक अप्रैल 2020 से एनपीआर की प्रक्रिया शुरू होगी। असम को इससे इसलिए अलग रखा गया है क्योंकि वहां पहले से ही राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू है। 30 सितंबर 2020 तक चलने वाली एनपीआर की प्रक्रिया में स्थानीय रजिस्ट्रार के दायरे में रहने वाले सभी निवासियों के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी।

एनपीआर का क्या है मकसद ?

एनपीआर का मकसद देश में रहने वाले सभी सामान्य लोगों के बारे में पहचान के साथ पूरी जानकारी जुटाना है। इस डाटाबेस में जनसांख्यिकीय विवरण लिए जाएंगे।

एनपीआर में क्या होगा विवरण?

एनपीआर में सामान्य निवासी का नाम, घर के स्वामी के साथ उसका संबंध, पिता का नाम, माता का नाम, पति या पत्नी का नाम (विवाहित होने पर), लिंग, जन्मतिथि, वैवाहिक स्थिति, जन्मस्थान, राष्ट्रीयता (घोषित), स्थायी और अस्थायी पता, अस्थायी पता पर निवास की अवधि, पेशा और शैक्षणिक योग्यता जैसी जानकारी होगी।

क्या है जनगणना?

जनगणना में भी देश के लोगों के बारे में विभिन्न जानकारियां एकत्र की जाती हैं। एक निश्चित अंतराल पर चलने वाली यह प्रक्रिया लोगों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए इकलौता सबसे वृहद स्त्रोत है। यह प्रक्रिया जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत पूरी की जाती है।

जनगणना में क्या जानकारी होती है?

जनगणना में देश की जनसंख्या, आर्थिक गतिविधि, साक्षरता और शिक्षा, आवास और आवासीय सुविधाओं, शहरीकरण, जन्म और मृत्यु दर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, भाषा, धर्म, पलायन, दिव्यांगता इत्यादि के बारे में विस्तृत और सटीक जुटाई जाती है। इसके आधार पर ही सरकारी योजनाएं लागू की जाती हैं। इसी के आधार पर पिछले दस साल में देश की प्रगति का पता चलता है और आगामी सरकारी योजनाओं का खाका तैयार किया जाता है। जनगणना-2021 दो चरणों में पूरी की जाएगी।

पहले चरण में एक अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 के बीच केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे। वहीं दूसरे चरण में जनसंख्या की गणना की काम नौ फरवरी से 28 फरवरी 2021 के बीच पूरा होगा। संशोधन की प्रक्रिया एक मार्च से पांच मार्च, 2021 के बीच होगी। जनगणना का संदर्भ दिन एक मार्च, 2021 की मध्य रात्रि होगी। जिन राज्यों में बर्फबारी होती है, जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में जनगणना का संदर्भ दिन एक अक्टूबर, 2020 होगा।

पहली जनगणना कब हुई ?

जनगणना का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। देश के अलग-अलग हिस्सों में पहली बार 1872 में जनगणना कराई गई थी। हर 10 साल में जनगणना कराई जाती है। 1949 के बाद से यह प्रक्रिया लगातार चल रही है। इसमें व्यवस्थित रूप से देश के लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। जनगणना कराने की जिम्मेदारी भारत सरकार के गृहमंत्रालय के अधीन भारत के महापंजीयन कार्यालय और जनगणना आयुक्त की है। 


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