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जल संरक्षण को बनाएं अभियान, मौसम की विषम घटनाओं के चलते घट रही पानी की मात्रा

Water Conservation जलवायु परिवर्तन और मौसम की विषम घटनाओं के चलते भी पानी की मात्र और गुणवत्ता लगातार घटती जा रही है। पर्यावरण असंतुलन और जल संसाधनों के क्षय के कारण पेयजल स्नेतों की संख्या घट रही है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 10:29 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 10:29 AM (IST)
जल संरक्षण को बनाएं अभियान, मौसम की विषम घटनाओं के चलते घट रही पानी की मात्रा
नदियों का देश होने के बावजूद आज भारत के तमाम इलाके शुद्ध पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं।

[देवेंद्रराज सुथार] प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जनभागीदारी से जल संरक्षण की बात कही है। यह बहुत आवश्यक भी है, क्योंकि नदियों का देश होने के बावजूद आज भारत के तमाम इलाके शुद्ध पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं। पर्यावरण असंतुलन और जल संसाधनों के क्षय के कारण पेयजल स्नेतों की संख्या घट रही है। वनों के विनाश और हिमनदों के सिकुड़ने आदि से जल की मात्र और गुणवत्ता घटने लगी है। इस अंधी दौड़ में हम यह भूल रहे हैं कि जैसे-जैसे पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन समाप्त होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलन बढ़ता जा रहा है।

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जल एक प्राकृतिक और असीमित संसाधन अवश्य है, परंतु पेयजल की मात्र सीमित है। पृथ्वी की सतह का 71 प्रतिशत जल से ढका हुआ है, जिसका 97 प्रतिशत भाग लवणीय जल के रूप में तथा शेष तीन प्रतिशत भाग अलवणीय जल के रूप में विद्यमान है। इस तीन प्रतिशत का का अधिकांश भाग भी ग्लेशियरों में बर्फ के रूप में जमा है। इसी कारण पीने योग्य पानी की मात्र अत्याधिक सीमित है। भारतीय संदर्भ में बात करें तो यहां विश्व जनसंख्या का 17 से 18 प्रतिशत भाग रहता है तथा जल संसाधनों की मात्र केवल 4 प्रतिशत है। उसमें भी अधिकांश भाग मानव के अविवेकपूर्ण क्रियाकलापों के कारण सीमित होता जा रहा है।

भारत में करीब 9.14 करोड़ बच्चे गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। आबादी और जरूरतों के बढ़ने के साथ-साथ पानी की मांग भी लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि संसाधन कम होते जा रहे हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, पानी की बर्बादी और कुप्रबंधन के अलावा जलवायु परिवर्तन और मौसम की चरम घटनाओं के चलते भी पानी की मात्र और गुणवत्ता गिरती जा रही है। इससे जल संकट और उससे उपजा तनाव भी बढ़ता जा रहा है।

यूनिसेफ के अनुसार वर्ष 2040 तक दुनिया भर में हर चार में से एक बच्चा उन क्षेत्रों में रहने को मजबूर होगा जो जल संकट के कारण उच्च तनाव में होंगे।इसलिए आज जल संरक्षण की दिशा में प्रत्येक मानव को आगे आना होगा। जल संरक्षण एवं विकास वर्षा की बूंद का पृथ्वी पर गिरने के साथ ही करना चाहिए। इसके लिए नदी मार्गो पर बांधों एवं जलाशयों का निर्माण करना होगा ताकि भविष्य में हमें पीने को शुद्ध पेयजल, सिंचाई, मत्स्य पालन एवं औद्योगिक कार्यो हेतु जल सुगमता से उपलब्ध हो सके। इसके साथ ही बाढ़ से मुक्ति मिले एवं कम वर्षा, निचले जल स्तर, सूखा ग्रस्त एवं अकालग्रस्त क्षेत्रों में नहरों आदि में जल की पूर्ति हो सके। साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के प्रयास भी करने होंगे। इस समस्या को दूर करने के लिए न केवल हमें प्रयास करने हैं, बल्कि स्थिति को बिगड़ने से भी रोकना है और यह तभी हो सकता है जब हम सब मिलकर इस दिशा में काम करें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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