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107 करोड़ की लागत से इंदौर में बनेगा पहला वेस्ट टू एनर्जी प्लांट, तकनीक होगी काफी अलग

इंदौर में अपनी तरह का पहला वेस्‍ट टू एनर्जी प्‍लांट लगाया जाएगा। इसमें इस्‍तेमाल होने वाली तकनीक काफी अलग होगी। यहां के ट्रेंचिंग ग्राउंड में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनेगा। जानें कुछ और खास

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 22 Dec 2020 10:26 AM (IST)Updated: Tue, 22 Dec 2020 10:26 AM (IST)
107 करोड़ की लागत से इंदौर में बनेगा पहला वेस्ट टू एनर्जी प्लांट, तकनीक होगी काफी अलग
इंदौर में एनटीपीसी का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनेगा।

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के ट्रेंचिंग ग्राउंड में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट बनेगा। ट्रेंचिंग ग्राउंड पर आने वाला ऐसा कचरा, जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता और जो किसी काम का नहीं है, उससे प्लांट में कोयला (टोरीफाइड कोल) बनाया जाएगा। यही कोल खंडवा और आसपास के बिजली उत्पादन केंद्रों में जलाकर बिजली पैदा की जाएगी। प्लांट निर्माण और संचालन का पूरा खर्च एनटीपीसी उठाएगा। यह प्लांट वर्ष 2021 के अंत तक बनकर तैयार हो जाएगा। निर्माण इसी महीने शुरू करने की तैयारी है। इंदौर के अलावा भोपाल और बनारस में भी ऐसे प्लांट स्थापित किए जाएंगे। एनटीपीसी का दावा है कि फिलहाल देश में कहीं भी ऐसा प्लांट नहीं है। प्लांट निर्माण के लिए नगर निगम एनटीपीसी को जमीन उपलब्ध कराएगा। इस प्लांट से न तो निगम को कोई आय होगी, न ही कोई राशि एनटीपीसी को देनी होगी। इंदौर से अमित जलधारी की रिपोर्ट

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कचरे से बिजली बनाना क्यों हो जाता असफल

कचरे से बिजली बनाने का प्रोजेक्ट अधिकांश जगह असफल हो गया क्योंकि प्लांट की लागत ही नहीं निकल पाई। ये हैं वजह:- 

कचरे से बिजली बनाने के लिए गीला-सूखा कचरा अलगअलग नहीं किया जाता।

भारत में 50 फीसद गीला और 50 फीसद सूखा कचरा निकलता है।

50 फीसद गीले कचरे में लगभग 85 फीसद नमी होती है।

कचरे से बिजली बनाते वक्त इस नमी को खत्म करने में सूखे कचरे की ऊर्जा भी लग जाती है। जितनी ऊर्जा उत्पन्न होना चाहिए वो नहीं हो पाती है। इससे बिजली बनाना महंगा पड़ता है।

सिंगाजी प्लांट में भेजेंगे कोयला

खंडवा जिले में संत सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना में फिलहाल 600-600 मेगावाट क्षमता की दो इकाइयां संचालित हो रही हैं। एक इकाई यदि पूरी क्षमता के साथ 24 घंटे चलाई जाती है तो इसमें दस हजार टन कोयले की खपत होती है। परियोजना के लिए कोयले की आपूर्ति छत्तीसगढ़ की सीएल खदानों से हो रही है। इंदौर में प्लांट के शुरु हो जाने के बाद संत सिंगाजी विद्युत परियोजना को कोयला मिलने लगेगा।

इसलिए कर रहे हैं सफलता का दावा

कंपनी दावा कर रही है कि वेस्ट टू एनर्जी प्लांट इसलिए सफल होगा क्योंकि इसकी तकनीक अलग है। ये है वजह:-

इसमें सिर्फ सूखा कचरा ही इस्तेमाल होगा। सूखे कचरे में से भी उसी कचरे का इस्तेमाल होगा जो रिसाइकिल नहीं हो सकता है।

एनटीपीसी इस कचरे को कोयले में बदल देगी। प्रयोग के दौरान आए परिणाम अनुसार इस कोयले से 4000-5000 कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न होगी। जो अमूमन सामान्य कोयले के बराबर ही है।

एनटीपीसी कोयले के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करेगी।

कोल प्लांट में ऐसा प्लास्टिक, कपड़ा, झाड़ू, जूते-चप्पल और चमड़े आदि रिजेक्ट मटेरियल से कोयला बनाया जाएगा। अभी सीमेंट फैक्टरियों में जलाने के लिए भेजता है। मटेरियल के परिवहन पर सालाना खर्च होने वाले तीन से चार करोड़ रुपये की बचत होगी।

असद वारसी, वेस्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट, इंदौर नगर निगम

प्लांट निर्माण के लिए तैयारियां तेजी से की जा रही हैं। भूमिपूजन के बाद इसमें और तेजी आएगी। हमारा लक्ष्य है कि इसे वर्ष 2021 में ही तैयार कर लिया जाए। प्री-कास्ट मटेरियल से इसे तैयार किया जाएगा। यानि बीम, कॉलम सहित अन्य निर्माण सामग्री पहले से ही तैयार होगी इस वजह से यह समय सीमा में पूरा हो जाएगा।

संदीप सोनी, अपर आयुक्त, इंदौर ननि

एक नजर :-

  • 10-12 एकड़ जमीन पर बनेगा प्लांट विदेश में यह तकनीक इसलिए सफल हैं क्योंकि वहां 80 फीसद सूखा और 20 फीसद गीला कचरा होता है। इसमें बने कोयले से बिजली बनेगी।
  • देश में ऐसा एक भी प्लांट नहीं भोपाल और बनारस में भी स्थापित होंगे ऐसे प्लांट।

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