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Vikram-S ने Space Sector में रचा इतिहास, अब प्राइवेट स्पेस कंपनी के राकेट लांचिंग में कायम होगा भारत का दबदबा

Vikram S News आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष क्षेत्र में खासकर निजी कंपनियों को शामिल करने की क्‍या योजना है। इसके लिए सरकारी स्‍तर पर किस तरह से प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। भारत की अंतरिक्ष सेक्‍टर में कितनी हिस्‍सेदारी है। भारत की पहली निजी अंतरिक्ष कंपनी स्‍काईरूट क्‍या है

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 18 Nov 2022 12:30 PM (IST)Updated: Fri, 18 Nov 2022 12:41 PM (IST)
Vikram-S ने Space Sector में रचा इतिहास, अब प्राइवेट स्पेस कंपनी के राकेट लांचिंग में कायम होगा भारत का दबदबा
Vikram-S ने Space Sector में रचा इतिहास। एजेंसी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Vikram S News: भारत का पहला प्राइवेट राकेट विक्रम एस हैदराबाद की एक प्राइवेट कंपनी स्‍टार्टअप स्‍काईरूट (Startup Skyroot) ने बनाया है। इसे श्रीहरिकोटा में इसरो के लांचिंग केंद्र सतीश धवन स्‍पेस सेंटर से लांच किया गया है। इसके साथ ही भारत दुनिया के उन मुल्‍कों में शामिल हो गया है, जहां निजी कंपनियां भी अपने बड़े राकेट लांच कर सकती है। आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष क्षेत्र में खासकर निजी कंपनियों को शामिल करने की क्‍या योजना है। इसके लिए सरकारी स्‍तर पर निजी कंपनियों को किस तरह से प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। अभी भारत की अंतरिक्ष सेक्‍टर में कितनी हिस्‍सेदारी है। इसके साथ यह जानेंगे कि भारत की पहली निजी अंतरिक्ष कंपनी स्‍काईरूट क्‍या है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसका क्‍या एजेंडा है।

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विक्रम स‍िरीज में तीन तरह के राकेट

इसरो के संस्‍थापक डा विक्रम साराभाई की याद में विक्रम एस का नाम दिया गया है। विक्रम स‍िरीज में तीन तरह के राकेट लांच किए जाने हैं। इनको छोटे आकार के सैटेलाइट्स ले जाने के मुताबिक विकसित किया गया है। विक्रम-1 इस स‍िरीज का पहला राकेट है। विक्रम-2 और और विक्रम-3 भारी वजन को पृथ्‍वी की निचली कक्षा में पहुंचा सकते हैं। विक्रम एस तीन सैटेलाइन को पृथ्‍वी की निचली कक्षा में पहुंचा सकता है। इन तीनों में एक विदेशी कंपनी का जबकि दो भारतीय कंपनियों के उपग्रह हैं।

अंतरिक्ष सेक्टर में भारत की हिस्‍सेदारी महज दो फीसद

1- भारत में वर्ष 2020 से भारतीय अंतरिक्ष सेक्‍टर में सार्वजनिक और निजी कंपनियों की सहभागिता की शुरुआत हुई थी। भारत इस अंतरिक्ष बाजार में जगह बनाने के लिए आतुर दिख रहा है। अभी तक इस उद्योग में भारत की हिस्‍सेदारी महज दो फीसद है। जून, 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी। इसके बाद भारत में निजी कंपिनयों के लिए राह आसान हुई। इसके लिए अनुमान है कि वर्ष 2040 तक अंतरराष्‍ट्रीय स्‍पेस उद्योग का आकार एक ट्रिलियन डालर तक पहुंच जाएगा। भारत नई स्‍पेस टेक्‍नोलाजी के लिए निजी कंपनियों को बढ़ावा दे रहा है।

2- अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की यात्रा 1960 के दशक में शुरू हुई थी। डा विक्रम साराभाई के नेतृत्‍व में इंडियन नेशनल कमेटी फार स्‍पेस रिसर्च की स्‍थापना की गई थी। भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को तत्‍कालीन सोवियत संघ के आस्‍त्राखान ओब्‍लास्‍ट से लांच किया गया था। भारतीय अंत‍रिक्ष सेक्‍टर के इतिहास में यह मील का पत्‍थर माना जाता है। भारत की धरती पर पहला राकेट 21 नवंबर, 1963 को सफलतापूर्वक लांच किया गया था। इसे तिरुअनंतपुरम से निकट थुम्‍बा से लांच किया गया था। इस राकेट का वजन 715 किग्रा था।

3- भारत में स्‍काईरूट पहली स्‍टार्ट अप कंपनी है। इसने इसरो के साथ राकेट लांचिंग के लिए पहले एमआयू पर हस्‍ताक्षर किए हैं। स्‍काईरूट को पक्‍का भरोसा है कि वह भविष्‍य में अत्‍याधुनिक तकनीक की मदद से बड़ी तादाद में और क‍िफायती राकेट बना सकेगी। इसके तहत कंपनी का दस वर्षों में बीस हजार छोटे सैटेलाइट छोड़ने का लक्ष्‍य है। खास बात यह है कि कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि 'अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना अब टैक्‍सी बुक करने जैस तेज, सटीक और सस्‍ता हो जाएगा। इसमें राकेट्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे 24 घंटे के अंदर असेम्‍बल कर किसी भी केंद्र से छोड़ा जा सकता है।

4- गौरतलब है कि हाल में अरबपति एलन मस्‍क की अंतरिक्ष X कंपनी अमेरिका में राकेट लांचिंग के लिए अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर सुर्खियों में थी। इसके बाद यह चलन काफी तेजी से बढ़ा है। अब यह ट्रेंड भारत में भी पहुंच गया है। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पवन कुमार चंदन के मुताबिक इस अभियान के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की ओर से कई तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराई गई है। इसके लिए इसरो ने बहुत मामूली फीस वसूली है।

क्‍या है विक्रम S की खूबियां

विक्रम-एस आठ मीटर लंबा सिंगल स्टेज स्पिन स्टेबलाइज्ड सालिड प्रोपेलेंट राकेट है। इसका वजन 546 किग्रा और डायामीटर 1.24 फीट है। इसमें 4 स्पिन थ्रस्टर्स दिए गए हैं। इसकी पेलोड क्षमता 83 किग्रा को 100 किमी ऊंचाई तक ले जाने की है। पीक विलोसिटी 5 मैक (हाइपरसोनिक)। इस राकेट को कंपोजिट मटेरियल से बनाया गया है। 200 इंजीनियरों की टीम ने इसे रिकार्ड दो वर्ष के टाइम में तैयार किया है। फ्लाइट के दौरान स्पिन स्टेबिलिटी के लिए इसे 3D प्रिंटेड इंजन से लैस किया गया है।

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