दो साल पहले ग्वालियर में बना वीडियो YouTube पर किया था अपलोड, पाक के स्कूल ने किया फॉलो
ग्वालियर की मेघा गुप्ता ने साइन लैंग्वेज में तैयार कर उन बच्चों के लिए यूट्यूब पर अपलोड किया जो लाख जतन के बाद भी अपनी बात को बयां नहीं कर पाते हैं।
कुलदीप यादव, ग्वालियर। आपको जानकर अच्छा लगेगा कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मूक बधिर बच्चों के लिए बनाए गए वीडियो से इन दिनों पाकिस्तान के बच्चे एबीसीडी सीख रहे हैं। लगभग दो मिनट के वीडियो को ग्वालियर की मेघा गुप्ता ने साइन लैंग्वेज में तैयार कर उन बच्चों के लिए यूट्यूब पर अपलोड किया, जो लाख जतन के बाद भी अपनी बात को बयां नहीं कर पाते हैं। इस वीडियो से पाकिस्तान के ओकरा कैंट स्थित स्पेशल चिल्ड्रन स्कूल के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
वीडियो को स्कूल प्रबंधन ने फेसबुक पेज अलनूर स्पेशल चिल्ड्रन स्कूल ओकरा कैंट पेज पर 28 मई को अपलोड किया, जिसे अभी तक 673 यूजर शेयर कर चुके हैं और 32 हजार बार देखा जा चुका है। इसमें मेघा बच्चों को साइन लैंग्वेज में पढ़ा रही हैं। मेघा बताती हैं कि अल्फाबेट इन इंडियन साइन लैंग्वेज वीडियो को उन्होंने दो साल पहले यूट्यूब पर अपलोड किया था। उन्हें खुशी है कि पड़ोसी देश के जरूरतमंद बच्चों को भी इससे मदद मिल रही है। उनके मुताबिक, उन्होंने इस वीडियो को जब तैयार किया था, तब यह नहीं सोचा था कि इससे इतने ज्यादा बच्चों को मदद मिलेगी।
‘रीड एंड साइन वर्ड’ को भी किया पसंद
मेघा के इस वीडियो के अलावा उनका ‘रीड एंड साइन वर्ड’ वीडियो भी पाकिस्तान के बच्चों को खासा पसंद आया, जिसे उन्होंने काफी समय पहले यूट्यूब पर अपलोड किया था। खास बात यह है कि मेघा के वीडियो को पाक के अन्य यूजर भी फॉलो भी करते हैं।
2013 से शुरू किए प्रयास
मेघा ने साल 2013 में एक रजिस्टर्ड सोसायटी बनाई, जिसे उन्होंने डेफ एजुकेशन एंड मल्टी टास्क सोसायटी नाम दिया। इसके साथ उन्होंने ‘बाइलिंगुअल स्कूल फॉर द डेफ’ नाम से स्कूल भी शुरू किया। इसके माध्यम से मेघा ने ऐसे बच्चों को चुना, जो सुनने और बोलने में असमर्थ हैं। उन्हें पढ़ाने के लिए मेघा ने हिंदी और अंग्रेजी भाषा में साइन लैंग्वेज को चुना। जब उन्हें सफलता मिली तो ग्वालियर के साथ-साथ अन्य शहरों में होने वाली एक्टिविटी में भी उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा, जहां उन्होंने दिव्यांगों को साइन लैंग्वेज में पढ़ाया।
माता-पिता दिव्यांग, इसलिए सीखी साइन लैंग्वेज
मेघा के साइन लैंग्वेज के प्रति आकर्षण के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, उन्होंने होश संभालने के बाद अपने माता-पिता को मूक बधिर ही देखा। उनके माता-पिता एक दूसरे से साइन लैंग्वेज में बात किया करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने भी साइन लैंग्वेज को सीखना शुरू कर दिया। वे घर पर अपने माता-पिता से इसी लैंग्वेज में बात किया करती थीं, लेकिन टूटी-फूटी लैंग्वेज में। खुद को परिपक्व बनाने के लिए मेघा ने मुंबई जाकर साइन लैंग्वेज का कोर्स किया, जिससे वे शहर के मूक बधिरों को शिक्षित कर सकें, क्योंकि इस वर्ग के लोगों को कितनी परेशानी होती है यह उन्हें अच्छे से पता था।
मैं अभी तक कई मूक बधिरों को साइन लैंग्वेज सिखा चुकी हैं। इसमें हाथों के इशारों से बात करनी पड़ती है। कई इशारे ऐसे होते हैं, जिन्हें कोई भी आसानी से समझ सकता है। मेरी कोशिश अंतिम सांस तक मूक बधिरों को शिक्षित करने की रहेगी। खुशी की बात तो यह है मेरा वीडियो से ऐसे देश के बच्चों को दिशा मिल
रही है, जो हमें अपना दुश्मन मानता है।
- मेघा गुप्ता तिवारी