रॉबर्ट वाड्रा पर नरम पड़ी भाजपा
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा मंगलवार को संसद पर भारी पड़े। जमीन घोटाले पर उग्र मुख्य विपक्ष भाजपा ने दोनों सदनों में इसकी जांच की मांग की लेकिन कांग्रेस की आपत्ति और शोरशराबे में कार्यवाही स्थगित हो गई। दोपहर होते-होते भाजपा जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाने के अपने इरादे से पीछे हट गई। पार्टी के इस रुख ने कई भाजपा नेताओं को भी चकित कर दिया। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कुछ घंटों की औपचारिकता निभाकर पार्टी ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा मंगलवार को संसद पर भारी पड़े। जमीन घोटाले पर उग्र मुख्य विपक्ष भाजपा ने दोनों सदनों में इसकी जांच की मांग की लेकिन कांग्रेस की आपत्ति और शोरशराबे में कार्यवाही स्थगित हो गई। दोपहर होते-होते भाजपा जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाने के अपने इरादे से पीछे हट गई। पार्टी के इस रुख ने कई भाजपा नेताओं को भी चकित कर दिया। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कुछ घंटों की औपचारिकता निभाकर पार्टी ने इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया।
कांग्रेस का दबाव रहा हो या पार्टी के अंदर का मतभेद या फिर अपने नेताओं की करनी का डर, रॉबर्ट वाड्रा के कथित जमीन घोटाले पर भाजपा ने एक कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे खींच लिए। लगातार दो दिन लोकसभा में नोटिस दिया और मंगलवार को फिर कुछ देर के लिए शोर-शराबे में ही भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर इससे किनारा कर लिया। खुद भाजपा के अंदर भी कई सांसदों के लिए पार्टी का यह रुख 'आश्चर्यजनक' है। भाजपा का अंदरूनी असमंजस सांसदों के बीच चर्चा का विषय रहा। तय हुआ था कि पार्टी वाड्रा के जरिये कांग्रेस अध्यक्ष को भी कठघरे में खड़ा करेगी। यशवंत सिन्हा, निशिकांत दुबे और अनुराग ठाकुर ने प्रश्नकाल स्थगित कर चर्चा कराने का नोटिस दिया था। मौका मिला तो यशवंत ने वाड्रा के रिश्तों का हवाला देते हुए जमीन घोटाले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष दल गठित करने की मांग भी कर डाली। कांग्रेस सदस्यों के भारी विरोध के बीच चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि वाड्रा ने नियमों का उल्लंघन करते हुए जिस तरह कौड़ियों को करोड़ों में बदल दिया, उसके बाद तो वित्तमंत्री चिदंबरम को भी उनसे सीख लेनी चाहिए। सदन की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित भी हुई, लेकिन दोपहर से पहले ही भाजपा ने इस मुद्दे को भुला दिया।
इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिस वाड्रा मामले को पार्टी बड़ा मुद्दा बनाने जा रही थी, कुछ देर बाद ही उसके प्रवक्ता उनका नाम लेने से भी हिचक रहे थे। सर्वदलीय बैठक के बाद भाजपा की ओर से किसी ने इस मुद्दे को हवा नहीं दी। सांसदों के बीच यह बदलाव चर्चा का विषय था। सूत्रों की मानें तो इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर मतभेद हैं और अपने भूतकाल का डर भी। दरअसल, कांग्रेस की ओर से यह संकेत दिया जाने लगा था कि अगर वाड्रा पर चर्चा का दबाव बनाया जाएगा तो फिर डंपर घोटाला, खनन घोटाला जैसे कई विषय भी उठेंगे, जिनमें कुछ भाजपा नेताओं पर अंगुली उठी है। पर बात सिर्फ इतनी नहीं है। पार्टी के रुख से असहमत एक नेता का कहना था, 'वाड्रा के मुद्दे पर हम अक्सर ऐसा ही करते हैं। पहले आगे बढ़ते हैं और फिर पैर खींच लेते हैं।' उनका कहना है कि अब जब गुड़गांव के कांग्रेस सांसद भी जांच की मांग कर रहे हैं तो फिर भाजपा के रुख में बदलाव से गलत संदेश जाएगा। बहरहाल, पार्टी के स्तर पर यह तय हो चुका है कि अब सदन में वाड्रा का मुद्दा नहीं उठेगा।
किसने, क्या कहा
'चूंकि वाड्रा ने देश के सामने अनोखा बिजनेस मॉडल पेश किया है। इसलिए लोकसभा में मुझे बोलने से रोकने वाली कांग्रेस पार्टी को मैं वाड्रा स्कूल ऑफ मैनेजमेंट खोलने का सुझाव देता हूं।'
- यशवंत सिन्हा, भाजपा नेता
'यह राज्य का मसला है और संसद राज्य के मुद्दों पर चर्चा नहीं करती। अगर वे (विपक्ष) इस पर चर्चा चाहते हैं तो फिर कांग्रेस नेता कर्नाटक में खनन घोटाला, मध्य प्रदेश के खनन माफिया और गुजरात पर चर्चा की मांग करेंगे।'
- कमलनाथ, संसदीय कार्य मंत्री
संसद में बदलते रहते हैं मुद्दे: यशवंत सिन्हा
प्र. रॉबर्ट वाड्रा के मुद्दे पर आपकी पार्टी ढुलमुल क्यों है?
-ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम लगातार दो दिनों से लोकसभा में चर्चा के लिए नोटिस दे रहे थे। मौका मिला तो हमने अपनी बात भी रखी। पूरी पार्टी चाहती है कि वाड्रा मामले की पूरी जांच हो।
प्र. लेकिन जिस तरह कुछ देर में पार्टी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया उससे लगता है कि सिर्फ औपचारिकता निभाई गई?
-देखिए हमें जितना अवसर मिलेगा उतना ही कर सकते हैं। कांग्रेस तो हमें सुनने के लिए ही तैयार नहीं थी। पार्टी की ओर से अनुराग ठाकुर और निशिकांत दुबे को नोटिस देने को कहा गया था। लेकिन मैंने भी नोटिस दे दिया। क्या यह साबित नहीं करता है कि भाजपा इस मुद्दे को लेकर उद्वेलित है।
प्र. तो क्या अपनी मांग मनवाने तक पार्टी इसे संसद में उठाएगी?
-मानता हूं कि पूरी बात नहीं हो सकी। कांग्रेस के भी एक सांसद ने जांच की मांग की है, ऐसे में हमारी मांग को और भी बल मिलता है। लेकिन संसद में मुद्दे बदलते रहते हैं। आगे क्या होगा हम नहीं कह सकते हैं।
प्र. वामदलों का आरोप है कि कांग्रेस और भाजपा मे डील हो गई है?
-उन्हें ऐसा महसूस होता है तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। बैठकें होती हैं तो कई विषयों पर ध्यान देना होता है। हमने अपनी बात रखी, आगे की बात आगे देखेंगे।
प्र. वाड्रा एक निजी व्यवसायी हैं। फिर उन्हें लेकर भाजपा इतनी आक्रामक क्यों है?
-कांग्रेस का यह तर्क मैंने भी सुना है। लेकिन वाड्रा को महज निजी व्यवसायी नहीं कहा जा सकता है। वह सत्ताधारी कांग्रेस से जुड़े ऊंचे ओहदे के व्यक्ति हैं, जिन्होंने एक साथ बैंकिंग, कंपनी और आयकर कानून का उल्लंघन किया है। क्या उसकी जांच नहीं होनी चाहिए। खास तौर पर तब जबकि सभी जानते हैं कि उन्होंने अपने संबंधों का फायदा उठाते हुए किस तरह कमाई की है।
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