सड़क किनारे गुमटी रख करते थे ट्रकों की मरम्मत, बेटी ने मेडिकल फील्ड में हासिल किया गोल्ड मेडल
शहर के किला बाजार स्थित सैयद राजन मुहल्ला निवासी अबू सईद पेशे से ट्रक मिस्त्री है उनकी बेटी ने किंगचार्ज मेडिकल कालेज से एमडी की और गोल्ड मेडल हासिल किया।
रायबरेली [रसिक द्विवेदी]। बेटियां मान-सम्मान और अभिमान हैं। बस, बेटे जैसे नजरिए से उन्हें भी देखने की जरूरत है। पारिवार की हर ख्वाहिश को वे सबसे पहले पढ़ लेती है। जान जाती है कि उनसे कैसी-कैसी उम्मीदें रखीं जा रही हैं। फिर अपनों के सपनों को सच करने में ऊर्जा खपा देती हैं। बहुत सारे नाम हैं जिन्होंने बुलंदी के झंडे गाड़े हैं। रायबरेली में एक ट्रक मिस्त्री की बेटी ने भी ऐसी ही सफलता की कहानी गढ़ी है। पिता की तरह वह भी काबिल मिस्त्री बन गई मगर किसी मशीन की नहीं...इंसानी शरीर की।एम्स में डॉक्टर होने का रुतबा पाया है।
शहर के किला बाजार स्थित सैयद राजन मुहल्ला निवासी अबू सईद (52) पेशे से ट्रक मिस्त्री हैं। वे शहर के सिविल लाइंस स्थित प्रयागराज-लखनऊ राजमार्ग किनारे गुमटी रखे हैं। यही इनके परिवार के भरण पोषण का जरिया भी रहा। इनके एक बेटी अर्जुमंद जहां व बेटा आमिर सुहैल है। पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रही, लेकिन उसने बेटी को बेटे जैसा प्यार-दुलार देते हुए अच्छी शिक्षा दीक्षा का पूरा प्रबंध किया। मां शमीम जहां ने भी अपने शौहर से मिलकर सपना सजाया कि बेटी डॉक्टर बनें।
इंटर के बाद बेटी अर्जुमंद ने कोङ्क्षचग की। पहली दफा रैंक कमजोर हुई। निजी कॉलेज में दाखिला दिलाने के आर्थिक हालात नहीं बने। ऐसे में बिटिया ने फिर से हिम्मत बांधी और दूसरी बार बेहतर रैंक लाई। उसे झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में दाखिल मिला। जहां से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एमडी में ङ्क्षकग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ में प्रवेश मिला। जहां वह गोल्डमेडलिस्ट बनी। अब रायबरेली में एम्स नियुक्तियां निकली तो अर्जुमंद ने फार्म भरा और यहां रेडियो डाइग्नोसिस की नौकरी पा गई।
टीवी और मोबाइल से बनाए रखी दूरी
अर्जुमंद जब एमबीबीएस की कोङ्क्षचग को कानपुर जाने लगी तो तब पिता ने उसे मोबाइल दिया, ताकि बिटिया संपर्क में रहे। उसके पहले बच्चों को यह सुविधा नहीं मिली थी। घर में टेलीविजन जो है वह बिटिया ही ईनाम में लेकर आई थी। जब उसने कॉलेज में हाईस्कूल टॉप किया तब गिफ्ट मिला था।
बेटी को मिला सम्मान, पिता को खुशी
बेटी जब-जब सफलता के झंडे गाड़ती, सम्मान के खातिर उसके माता-पिता स्कूलों में बुलाए जाते। शहरवासी तो उस ट्रक मिस्त्री को जानते पहचानते थे। लेकिन विद्यालयों में भी जब-जब सम्मान होता पिता रो देता। वे खुशी के आंसू होते थे।
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