Move to Jagran APP

सोच-समझकर करें आरओ का इस्तेमाल, सिर्फ टीडीएस का मापदंड मानना सही नहीं

सिर्फ टीडीएस को पानी की गुणवत्ता का मापदंड मानकर आरओ खरीदना सही नहीं है। पानी की गुणवत्ता कई जैविक और अजैविक मापदंडों से मिलकर निर्धारित होती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 09:44 AM (IST)Updated: Wed, 14 Aug 2019 09:47 AM (IST)
सोच-समझकर करें आरओ का इस्तेमाल, सिर्फ टीडीएस का मापदंड मानना सही नहीं

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। पीने के पानी को साफ करने के लिए आरओ वाटर प्यूरीफायर की जरूरत के बारे में पड़ताल किए बिना जल शोधन के लिए इसका उपयोग तेजी से बढ़ा है। अधिक मात्रा में पानी में घुले खनिजों (टीडीएस) की मात्रा का डर दिखाकर कंपनियां और डीलर्स धड़ल्ले से आरओ प्यूरीफायर बेच रहे हैं। जल शोधन की तकनीकों पर केंद्रित शोध एवं विकास से जुड़े विशेषज्ञों ने बताया कि आरओ का विकास ऐसे क्षेत्रों के लिए किया गया है, जहां पानी में घुले खनिजों (टीडीएस) की अत्यधिक मात्र पाई जाती है। इसलिए, सिर्फ टीडीएस को पानी की गुणवत्ता का मापदंड मानकर आरओ खरीदना सही नहीं है।

loksabha election banner

टीडीएस 68 मापदंडों में से सिर्फ एक
इंडिया वाटर क्वालिटी एसोसिएशन से जुड़े विशेषज्ञ वीए राजू ने बताया कि पानी की गुणवत्ता कई जैविक और अजैविक मापदंडों से मिलकर निर्धारित होती है। टीडीएस पानी की गुणवत्ता निर्धारित करने वाले 68 मापदंडों में से सिर्फ एक मापदंड है। पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले जैविक तत्वों में कई प्रकार के बैक्टीरिया तथा वायरस हो सकते हैं। वहीं, अजैविक तत्वों में क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, जिंक, शीशा, कैल्शियम, मैग्नीज, सल्फेट, नाइट्रेट जैसे खनिजों के साथ-साथ पानी का खारापन, पीएच मान, गंध, स्वाद और रंग जैसे गुण शामिल हैं।

कहां लगाया जा सकता है आरओ
नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के वैज्ञानिक डॉ. पवन लभसेत्वार ने बताया कि जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है, वहां रिवर्स ओस्मोसिस (आरओ) की जरूरत नहीं है। जिन जगहों पर पानी में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (टीडीएस) की मात्र 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहां घरों में सप्लाई होने वाले नल का पानी सीधे पिया जा सकता है। आरओ का उपयोग अनावश्यक रूप से करने पर सेहत के लिए जरूरी कई महत्वपूर्ण खनिज तत्व भी पानी से अलग हो जाते हैं। इसीलिए, पानी को साफ करने के लिए सही तकनीक का चयन करने से पहले यह निर्धारित करना जरूरी है कि आपके इलाके में पानी की गुणवत्ता कैसी है।

एनजीटी ने भी जताई थी चिंता
कुछ समय पूर्व आरओ के उपयोग को लेकर दिशा निर्देश जारी करते हुए नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने सरकार से इस पर नीति बनाने के लिए कहा है। एनजीटी ने कहा है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रलय ऐसे स्थानों पर आरओ के उपयोग पर प्रतिबंध लगा सकता है, जहां पीने के पानी में टीडीएस की मात्र 500 मिलीग्राम से कम है।

70 फीसद पानी हो जाता है बर्बाद
आरओ के उपयोग से करीब 70 प्रतिशत पानी बह जाता है और सिर्फ 30 प्रतिशत पीने के लिए मिलता है। एनजीटी ने यह भी कहा है कि 60 फीसदी से ज्यादा पानी देने वाले आरओ सिस्टम को ही मंजूरी दी जानी चाहिए। इसके अलावा, प्रस्तावित नीति में आरओ से 75 फीसदी पानी मिलने और रिजेक्ट पानी का उपयोग बर्तनों की धुलाई, फ्लशिंग, बागवानी, गाड़ियों और फर्श की धुलाई आदि में करने का प्रावधान होना चाहिए। 

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.