योजनाकारों की भारी कमी से जूझ रहे देश के शहरी निकाय, जन जीवन बुरी तरह प्रभावित
देश का शहरी क्षेत्र योजनाकारों की किल्लत से गुजर रहा है। इसके चलते शहरी क्षेत्रों का विकास बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। देश का शहरी क्षेत्र योजनाकारों की भारी किल्लत से गुजर रहा है। इसके चलते शहरी क्षेत्रों का विकास बेतरतीब और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा है। लिहाजा समूचा शहरी क्षेत्र गंभीर संकट के दौर में है, जिसके चलते शहरी जन जीवन पर विपरीत असर पड़ रहा है। शहरी योजनाकारों की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर से मुश्किलें बढ़ी हैं। देश में तकरीबन आठ हजार से अधिक छोटे-बड़े शहर और कस्बे हैं, लेकिन शहरी योजनाकारों (टाउन प्लानर) की संख्या साढ़े पांच हजार तक ही सीमित है। बीस फीसद निकायों में तो टाउन प्लानर हैं ही नहीं।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय से संबंधित स्थायी संसदीय समिति की पिछली बैठक में शहरी योजनाकारों की कमी को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। शहरी विकास सचिव की ओर से समिति को लिखित जवाब भेजा गया, जिसके मुताबिक देशभर में कुल 5500 योजनाकार (टाउन प्लानर) हैं। उन्होंने बताया कि योजनाकारों की उपलब्धता व इनकी संख्या बढ़ाने को लेकर राज्यों से बातचीत चल रही है।
शहरी नियोजन की सख्त जरूरत के बावजूद संतोषजनक बंदोबस्त न होने की वजह से ये शहरी व कस्बाई क्षेत्र बेतरतीब तरीके से झुग्गी झोपडि़यों में तब्दील हो रहे हैं। यहां जीवन जीने की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के इंतजाम तक नहीं हैं।
पश्चिमी और अन्य एशियाई देशों में भी भारी बारिश होने से बाढ़ आती है। शहरी जनजीवन कुछ समय के लिए प्रभावित जरूरत होता है, लेकिन बेहतर शहरी नियोजन से मुश्किलें कम होती है। भारत में शहरी विकास में योजनाकारों की कमी हमारी मुश्किलों व चुनौतियों को और बढ़ा देती हैं। बारिश के पानी की निकासी तो दूर देश के ज्यादातर शहरों में सीवर प्रणाली ही नहीं है।
शहरी नियोजन में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते योजनाओं पर अमल नहीं हो पाता है। हाल के वर्षो में देश में चक्रवात, भारी बारिश और बेमौसम बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के झोंके ने शहरी क्षेत्रों में जबरदस्त नुकसान किया है। इसमें खतरनाक पर्यावरण प्रदूषण और सड़कों के गढ्डों के चलते होने वाली दुर्घटनाओं से नागरिकों की मौत इसे और गंभीर बना रही है।
इस तरह की शहरी आपदाएं कोई रातों-रात नहीं आने लगी हैं, बल्कि साल दर साल की जाने वाली लापरवाही का नतीजा हैं। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक शहरी निकायों में धन की कमी, उपयुक्त कुशल मानव संसाधनों का अभाव है। ज्यादातर शहरी निकायों में समय पर वेतन तक नहीं बंटता है। ऐसे में उनकी उत्पादकता और मनोबल में जबरदस्त गिरावट आई है। शहरी विकास की बुनियादी आवश्यकताओं को बदलती प्रौद्योगिकी के अनुकूल पूरा करने की जरूरत है।