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जजों के नाम पर घूस लेने की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुआ हंगामा

दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने जजों के नाम पर घूसखोरी का मामला सुनवाई के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने का दो न्यायाधीशों का गुरुवार का आदेश रद कर दिया।

By Manish NegiEdited By: Published: Sat, 11 Nov 2017 12:24 AM (IST)Updated: Sat, 11 Nov 2017 12:24 AM (IST)
जजों के नाम पर घूस लेने की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुआ हंगामा
जजों के नाम पर घूस लेने की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुआ हंगामा

माला दीक्षित, नई दिल्ली। जजों के नाम पर घूसखोरी के मामले की सुनवाई ने सुप्रीम कोर्ट में खलबली मचा दी है। शुक्रवार को इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जोरदार हंगामा हुआ। अभूतपूर्व सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने जजों के नाम पर घूसखोरी का मामला सुनवाई के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने का दो न्यायाधीशों का गुरुवार का आदेश रद कर दिया। इतना ही नहीं भविष्य के लिए व्यवस्था भी तय कर दी कि कोई भी न्यायाधीश स्वयं से अपने सामने कोई मामला सुनवाई के लिए नहीं लगाएगा। कौन सा मामला कौन पीठ सुनेगी यह तय करने का अधिकार सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को है और वे ही इसे तय करेंगे।

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मालूम हो कि न्यायिक अनुशासन की अनदेखी कर गुरुवार को दो न्यायाधीशों मुख्य न्यायाधीश के बाद वरिष्ठता में नंबर दो पर आने वाले न्यायाधीश जे.चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने जजों के नाम पर घूसखोरी के मामले की एसआइटी से जांच कराने की मांग वाली वकील कामिनी जायसवाल की याचिका सीधे पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दी थी इतना ही नहीं सुनवाई की तिथि और पीठ के न्यायाधीश भी तय कर दिये।

कोर्ट ने आदेश दिया था कि मामले को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगाया जाए। न्यायिक अनुशासन के मुताबिक दो न्यायाधीशों की पीठ स्वयं सीधे कोई मामला पांच न्यायाधीशों की पीठ को नहीं भेजती। सामान्य तौर दो न्यायाधीश मामले को बड़ी पीठ यानी तीन न्यायाधीशों को भेजते हैं। कई बार मुद्दा संवैधानिक महत्व का होने पर मामले पर संविधान पीठ के विचार करने की राय प्रकट करते हैं और संविधान पीठ के गठन का निर्णय लेने के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष लगाए जाने का आदेश देते हैं। लेकिन गुरुवार को ऐसा नहीं हुआ था।

यूं हुई सुनवाई

ठीक तीन बजे मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, आरके अग्रवाल, अरुण मिश्रा, अमिताव राय और एएम खानविल्कर की पीठ मामले पर फिर सुनवाई करने के लिए बैठी। अदालत खचाखच भरी थी। प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि उन्हें 15 मिनट पहले ही इस सुनवाई का नोटिस मिला है। उन्हें नहीं मालूम कि ये सुनवाई किस मुद्दे पर है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आपके मामले में अभी जो दो न्यायाधीशों की पीठ ने आदेश दिया है उस पर ही सुनवाई है। केन्द्र सरकार की ओर से एएसजी पीएस नरसिम्हा कोर्ट में मौजूद थे।

जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि कहा कि दो न्यायाधीशों की पीठ ने आज मामला मुख्य न्यायाधीश को पीठ का गठन करने के लिए भेजा है जबकि गुरुवार को एक अन्य पीठ ने ऐसे ही मामले को सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों को भेज दिया है और सुनवाई की पीठ भी तय कर दी। इस परिस्थिति में यह बेंच यह तय करने के लिए बैठी है कि मुख्य न्यायाधीश के क्या अधिकार हैं और किसी मामले की सुनवाई के लिए पीठ कैसे गठित की जाएगी। तभी मुख्य न्यायाधीश ने कहा दो जजों की पीठ सीधे किसी मामले को संविधान पीठ को नहीं भेज सकती। यह मेरा (मुख्य न्यायाधीश का) विवेकाधिकार है।

मैने कालेज को इजाजत नहीं दी थी

जस्टिस मिश्रा ने मेडिकल कालेज की मान्यता के बारे में अपने पूर्व आदेश का जिक्र करते हुए प्रशांत भूषण से कहा कि आपको नहीं मालूम कि हमने क्या आदेश दिया था। कोर्ट ने भूषण को आदेश की प्रति पढ़कर सुनाने को कहा। आदेश पढ़े जाने के बाद जस्टिस मिश्रा ने कहा कि उन्होंने कालेज को 2017-18 के सत्र के लिए इजाजत नहीं दी थी। उन्होंने किसी भी कालेज को इसकी इजाजत नहीं दी थी। जस्टिस मिश्रा ने कोर्ट में मौजूद वकील अजीत सिन्हा से कहा कि आप तो मेडिकल के मैटर में थे आप बताइये क्या आदेश हुआ था। सिन्हा ने कहाकि कोर्ट ने किसी भी कालेज को अनुमति नहीं दी थी।

भूषण की दलील पर सन्न रह गई पीठ

तभी प्रशांत भूषण ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को ये मामला नहीं सुनना चाहिए। उन्हें मामले से अलग हो जाना चाहिए। उनके खिलाफ एफआइआर है। तेज आवाज में प्रशांत भूषण की इस दलील पर पीठ सन्न रह गई।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा क्या बकवास कर रहे हो

मुख्य न्यायाधीश ने कहा उनके खिलाफ कौन सी एफआईआर है। क्या बकवास कर रहे हो। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि पढ़कर सुनाओ एफआइआर (ये उस एफआइ आर की बात हो रही थी जो सीबीआइ ने जजों के नाम पर घूस लेने के आरोपों में दर्ज की है और जिसमें उड़ीसा हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज आइएम कुद्दुसी को अभियुक्त बनाया गया है।)। प्रशान्त ने एफआइआर का कुछ अंश पढ़ा लेकिन वे मुख्य न्यायाधीश का नाम उसमें नहीं बता पाए।

भूषण के खिलाफ कार्रवाई की उठी मांग

तभी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन(एससीबीए) के अध्यक्ष आर एस सूरी खड़े हुए और उन्होंने कहा कि ये कोर्ट की अवमानना है। इस तरह कोर्ट को आतंकित कर कोई मनमाफिक आदेश नहीं ले सकता। पी. नरसिम्हा ने स्थिति साफ करते हुए कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि कई लोग दूसरों का नाम लेकर फेवर कराने की बात करते हैं इसका मतलब यह नहीं कि वह व्यक्ति भी उसमें शामिल है।

तभी जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि इस मामले में किसी भी जज को शामिल नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि सिटिंग जज के खिलाफ तो ऐसे एफआइआर हो ही नहीं सकती। जजों को कुछ छूट मिली हुई है। इसके लिए विशेष प्रक्रिया है।

ऐसे तो जज काम नहीं कर पाएंगे

जस्टिस अरुण मिश्रा ने भूषण से कहा कि वे भ्रष्टाचार खत्म करने में उनके साथ हैं। लेकिन उन्हें इस तरह के आरोप लगाते समय देखना चाहिए कि जज अपनी बात नहीं रख सकते। क्या न्यायपालिका को इस तरह से लिया जाना चाहिए। ऐसे को न्यायपालिका काम ही नहीं कर पाएगी। इस दौरान जस्टिस मिश्रा का सुर विनम्र था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर कोई ऐसे सोचने लगेगा तो न्यायपालिका काम नहीं कर पायेगी।

उठी प्रशांत भूषण पर कार्रवाई की मांग

कोर्ट में बड़ी संख्या में मौजूद वकील प्रशांत भूषण के आचरण पर सवाल उठाते हुए उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की मांग कर रहे थे। इस तरह के व्यवहार पर कड़ाई से रोक लगाने की बात कह रहे थे। उनका कहना था कि इससे न्यायपालिका की छवि को धक्का लगा है। वकीलों ने कोर्ट के समक्ष पूर्व आदेश पेश किये जिनमें कहा गया था कि पीठ निर्धारण का अधिकार मुख्य न्यायाधीश का ही होता है। मुख्य न्यायाधीश ने प्रशांत भूषण से कहा कि आपने हम पर आरोप लगाए हैं कोई बात नहीं। आप कोर्ट में आपा खो बैठते हैं कोई बात नहीं। हम ऐसा नहीं कर सकते। तब तक कोर्ट में चारो तरफ से प्रशांत भूषण पर कार्रवाई की मांग उठने लगी।

प्रशांत भूषण ने खोया आपा

भूषण खड़े हुए उन्होंने कहा कि उन्हें भी पक्ष रखने का मौका दिया जाये। कोर्ट उनका पक्ष सुने बगैर आदेश कैसे दे सकता है। उनकी बात को गलत समझा जा रहा है। अचानक प्रशांत ने आपा खो दिया और वे जोर जोर से चिल्लाने लगे। भूषण ने कहा कि अगर मुझे बगैर सुने आदेश देना है तो जो मन में आये आदेश दे दीजिए। क्रोधित प्रशांत कोर्ट छोड़ कर चले गए। हालांकि उनके साथियों ने उन्हे रोकने की कोशिश की। इसके बाद कोर्ट ने आदेश लिखाया जिसमें मामला पांच न्यायाधीशों को भेजने का दो न्यायाधीशों का आदेश रद कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि कोई भी न्यायाधीश स्वयं से अपने सामने कोई केस नहीं लगाएगा।

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