उपहार कांड: अंसल बंधु सुप्रीम कोर्ट से भी दोषी करार
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। उपहार सिनेमा अग्निकांड में 16 साल पहले अपने प्रियजनों को खो चुके लोगों के कलेजे में सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले से थोड़ी ठंडक जरूर पड़ी होगी। कोर्ट ने सिनेमाघर के मालिक देश के जाने-माने रियल स्टेट उद्योगपति सुशील अंसल और गोपाल अंसल को दोषी करार दिया है। कोर्ट ने दोनों भाइयों को घोर लापरवाही का जिम्मेदार मानते हुए कहा कि उनकी रुचि दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से ज्यादा पैसा बनाने में थी।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। उपहार सिनेमा अग्निकांड में 16 साल पहले अपने प्रियजनों को खो चुके लोगों के कलेजे में सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले से थोड़ी ठंडक जरूर पड़ी होगी। कोर्ट ने सिनेमाघर के मालिक देश के जाने-माने रियल स्टेट उद्योगपति सुशील अंसल और गोपाल अंसल को दोषी करार दिया है। कोर्ट ने दोनों भाइयों को घोर लापरवाही का जिम्मेदार मानते हुए कहा कि उनकी रुचि दर्शकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से ज्यादा पैसा बनाने में थी। हालांकि अंसल बंधुओं की कैद की अवधि को लेकर न्यायाधीशों में मतभिन्नता होने के कारण यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया गया है।
13 जून, 1997 को 'बॉर्डर' फिल्म के प्रदर्शन के दौरान दक्षिण दिल्ली स्थित उपहार सिनेमा घर में आग लग गई थी। इस अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस मामले में निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों ने अंसल बंधुओं को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। निचली अदालत ने 2-2 साल की कैद दी थी जिसे हाई कोर्ट ने घटा कर 1-1 साल कर दिया था।
अंसल बंधुओं ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उपहार विक्टिम एसोसिएशन व सीबीआइ ने भी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अंसल बंधुओं व अन्य सह अभियुक्तों की सजा बढ़ाने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर व न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए अंसल बंधुओं को घोर लापरवाही का दोषी मानने के निचली अदालत व हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने कहा कि वे सिनेमाघर के मालिक थे। ऐसे में सिनेमा देखने आने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनका दायित्व था।
पीठ ने सिनेमाघर की सीटें बढ़ाए जाने से बाहर निकलने के दरवाजे बंद होने की बात दर्ज करते हुए कहा कि आग लगने के बाद लोग बाहर नहीं निकल पाए और धुंए में दम घुटने से उनकी मौत हो गई। कोर्ट ने सिनेमाघर के रोजाना के कामकाज से अंसल का कोई लेना-देना न होने की वकील राम जेठमलानी की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि पेश दस्तावेजों और सुबूतों से पता चलता है कि अंसल सिनेमाघर के आर्थिक मामलों को देखते थे।
अंसल बंधुओं की सजा की अवधि पर दोनों न्यायाधीशों में मत भिन्नता थी। न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने दोनों भाइयों को 1-1 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई जबकि न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा ने सुशील अंसल की उम्र को देखते हुए ंउनकी सजा घटा कर काटी जा चुकी जेल कर दी और गोपाल अंसल के एक साल के कारावास को बढ़ाकर दो वर्ष कर दिया।
100 करोड़ के जुर्माने से बनेगा ट्रॉमा सेंटर
न्यायाधीश ज्ञान सुधा ने कहा कि दूसरे वर्ष के कारावास के बदले वे अंसल बंधुओं को सौ करोड़ का जुर्माना भरने का आदेश देती हैं। दोनो भाई 50-50 करोड़ रुपये जुर्माना अदा करेंगे और इस सौ करोड़ की रकम से दिल्ली के द्वारका में दुर्घटना पीड़ित के लिए एक ट्रॉमा सेंटर बनाया जाएगा। इसके लिए जमीन दिल्ली विद्युत बोर्ड देगा। ट्रॉमा सेंटर सफदरजंग अस्पताल का विस्तार माना जाएगा।
कब और क्या हुआ : - 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा में लगी आग के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी। हौज खास थाने में दर्ज एफआईआर में सुशील अंसल व गोपाल अंसल सहित 16 लोगों को आरोपी बनाया गया था। मामले की जांच अपराध शाखा को सौंपा गया।
-22 जुलाई 1997 को अपराध शाखा ने सुशील और प्रणव अंसल को मुंबई में गिरफ्तार किया। 24 जुलाई 1997 उपहार हादसे की जांच सीबीआई को सौंपी गई।
-15 नवंबर 1997 को सीबीआई ने सुशील अंसल और गोपाल अंसल सहित 16 आरोपियों के खिलाफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ब्रिजेश सेठी की अदालत में चार्जशीट दाखिल की। 4 जनवरी 1999 को केस की सुनवाई सत्र न्यायालय में स्थानांतरित।
-10 मार्च 1999 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एल डी मलिक की कोर्ट में सीबीआई की बहस खत्म हुई। 10 जनवरी 2000 को केस न्यायाधीश ममता सहगल की अदालत में स्थानांतरित हुआ।
-16 अगस्त 2000 को कोर्ट में बहस शुरू हुई।
-11 फरवरी 2004 को संयुक्त पुलिस आयुक्त आमोद कंठ को बतौर आरोपी बनाने की मांग की। 20 फरवरी 2004 को हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ दाखिल की गई सभी संशोधन याचिका के आवेदनों को खारिज कर दिया।
-5 मई 2006 को हाई कोर्ट ने निचली अदालत के रेकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ और कुछ दस्तावेजों के गायब होने के संबंध में पुलिस को केस दर्ज करने के निर्देश दिए। 17 मई 2006 को दिल्ली पुलिस ने विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की। 2 अगस्त 2006 को बचाव पक्ष की गवाही खत्म।
-14 फरवरी 2007 को बचाव पक्ष ने एमसीडी और दिल्ली विद्युत बोर्ड के पांच अधिकारियों के खिलाफ जिरह खत्म की। हाई कोर्ट ने 2 जुलाई 2007 से उपहार हादसे की हर रोज सुनवाई के निर्देश दिए। हाई कोर्ट ने निचली अदालत को 40 तारीखों में 31 अगस्त 2007 तक केस खत्म करने के भी निर्देश दिए।
-20 नवंबर 2007 को निचली अदालत ने बंसल बंधुओं सहित 12 लोगों को सजा सुनाई।
-19 दिसंबर 2008 को हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा दो साल से घटाकर एक साल की। पांच आरोपियों की सजा 7 साल से घटाकर दो-दो साल की, चार आरोपियों को बरी भी किया। उपहार पीड़ित एसोसिएशन ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। फिलहाल अंसल बंधु सहित सभी आरोपी जमानत पर है।
-5 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा। लेकिन सजा को लेकर अलग-अलग राय के कारण मामले को तीन सदस्यीय खंडपीठ के हवाले कर दिया।