Move to Jagran APP

Video: यूपीए सरकार ने नहीं दी थी 'मिशन शक्ति' को अनुमति: पूर्व DRDO प्रमुख वीके सारस्वत

पूर्व डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्‍वत ने कहा कि अगर मिशन शक्ति कार्यक्रम की उस वक्त यह मंजूरी दी गई होती तो वर्ष 2015 तक हम एंटी सैटेलाइट मिसाइल क्षमता हासिल कर लिये होते।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 05:44 PM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 10:08 PM (IST)
Video: यूपीए सरकार ने नहीं दी थी 'मिशन शक्ति' को अनुमति: पूर्व DRDO प्रमुख वीके सारस्वत

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। नीति आयोग के मौजूदा सदस्य वी के सारस्वत रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व प्रमुख हैं। उन्हीं के कार्यकाल में एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीकी पर काम शुरू हुआ था। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन के साथ बातचीत में उन्होंने बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से राष्ट्रीय प्रसारण में ऐलान किये गये मिशन शक्ति से जुड़ी कुछ जानकारी साझा की।

loksabha election banner

प्रश्न - मिशन शक्ति का भारतीय रणनीति में क्या महत्व है?
उत्तर : भारत के लिए मिशन शक्ति उसी तरह का महत्व है जैसा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की तरफ से किया गया परमाणु परीक्षण था। यह दुनिया को भारत की तकनीकी क्षमता से अवगत कराता है साथ ही हमारी रणनीतिक क्षमता को मजबूत करता है। यह अंतरिक्ष विज्ञान में हमारी असीमित क्षमता को बताता है जिसका असर बाद में दिखाई देगा। यह भारत को इंटर कंटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल बनाने की क्षमता को मजबूत करता है साथ ही यह कूटनीतिक तौर पर भारत को बेहतर तरीके से अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने हितों की रक्षा करने की क्षमता देता है।

Image result for vk saraswat

आपको बता दूं जब भारत ने पहली बार अग्नि मिसाइल का परीक्षण किया था तो हमारे ऊपर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाये गये थे। भारत के लिए छोटे-छोटे मिसाइल को हासिल करना मुश्किल हो गया था।

लेकिन अब हमारे पास इस क्षेत्र की सबसे आधुनिक तकनीक है। मिशन शक्ति यह भी बताता है कि अब दूसरा कोई भी देश भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियों (स्पेस एसेट्स) को नुकसान पहुंचाने की हिम्मत नहीं कर सकता क्योंकि उसे मालूम होगा कि हम भी उसे उतना ही भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन यह याद रखना चाहिए कि इस तरह की तकनीकी का इस्तेमाल तभी होता है जब कोई देश हमारे सैटेलाइट को नुकसान पहुंचाए।

प्रश्न : क्या यह बात सच है कि जब आप डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन) के प्रमुख थे तब आपने इसी तकनीकी के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार से अनुमति मांगी थी और आपको अनुमति नहीं दी गई थी?

उत्तर : हां, हमने इस बारे में तत्कालीन सरकार के संबंधित मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से बात की थी। अपना निवेदन रखा था। हमें अतिरिक्त वित्तीय संसाधन और सरकार की मंजूरी की जरूरत थी। जो किसी वजह से हमें नहीं दी गई। अगर उस वक्त यह मंजूरी दी गई होती तो वर्ष 2015 तक हम एंटी सैटेलाइट मिसाइल क्षमता हासिल कर लिये होते।

मुझे लगता है कि पीएम नरेंद्र मोदी और मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने इस तकनीकी की जरूरत समझी कि यह भारत के लिए कितना जरूरी है। पीएम मोदी पहले ही कह चुके हैैं कि रक्षा क्षेत्र में जो भी तकनीकी की जरूरत है उस हासिल किया जाना चाहिए और उसमें देरी नहीं होनी नहीं चाहिए। इस तरह की किसी भी बड़े तकनीकी उन्नयन के लिए सरकार के उच्च स्तर पर मंजूरी की जरूरत होती है।

प्रश्न - क्या इस तरह के मिसाइल परीक्षण से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता?
उत्तर- निश्चित तौर पर इस तरह के किसी भी मिसाइल परीक्षण से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। लेकिन आपको याद रखना होगा कि अंतरिक्ष के कारोबार में जो भी देश हैैं वह नुकसान पहुंचा रहे हैैं। बड़े अंतरिक्ष सैटेलाइट की तुलना में मिशन शक्ति से हुआ नुकसान बहुत कम होगा। मेरा मानना है कि यह वैसा ही है जैसे समुद्र में पानी के कुछ बूंद। मेरा अनुमान है कि इससे कुछ टुकड़े अंतरिक्ष में फैलेंगे, इससे ज्यादा कुछ नहीं। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.