टसर सिल्क की ड्रेसिंग पट्टी और जेल से सूखेगा घाव, संक्रमण का डर नहीं
यह अनुसंधान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) रायपुर के बायो मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अरिंदम बिट और रिसर्च स्कालर शारदा गुप्ता ने किया है। तीन साल के शोध के बाद टसर सिल्क और उसके कीड़े से आविष्कार करके ड्रेसिंग सामग्री बनाई है।
रायपुर [संदीप तिवारी]। अब टसर सिल्क से बनी प्राकृतिक ड्रेसिंग पट्टी और प्राकृतिक जेल से शरीर के चोट के घाव जल्द सूखेंगे। यह ड्रेसिंग पट्टी और जेल सामान्य लोगों में 14 दिनों और मधुमेह रोगियों में 21 दिनों में घाव भरने में कारगर है। इसमें किसी रसायनिक तत्व का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक दवाई होगी। इससे चोट लगने पर संक्रमण का खतरा कम हो जाएगा। चूहों पर इसका प्रयोग सफल रहा है।
यह अनुसंधान राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) रायपुर के बायो मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अरिंदम बिट और रिसर्च स्कालर शारदा गुप्ता ने किया है। तीन साल के शोध के बाद टसर सिल्क और उसके कीड़े से आविष्कार करके ड्रेसिंग सामग्री बनाई है। प्राकृतिक तरीके से मलहम-पट्टी करने के लिए यह ड्रेसिंग सामग्री कारगर होगी। उन्होंने बताया कि टसर सिल्क के कीड़े से दो तरह के प्रोटीन फाइब्रोइन और सेरिसिन निकलते हैं। इसमें सिल्क फाइब्रोइन के प्राकृतिक रूप को ही दवा के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
फाइब्रोइन में मौजूद तत्व त्वचा की कोशिकाओं के विकास में सहायक रहता है। टसर सिल्क केकीड़े का आकार बढ़ता जाता है। अपने विकास के अंतिम चरण तक आने के बाद यह कोकून बनाता है। इस दौरान कीड़ों के मुंह से जो लार निकलती है, वह फाइबर के रूप में रहती है। उबालने पर सेरिसिन हट जाता है और सिल्क फाइब्रोइन मिलता है।
डा. आंबेडकर अस्पताल रायपुर के प्रोफेसर डा. आरएल खरे ने बताया, चोट लगने पर कोशिकाओं में पहले से मौजूद फाइब्रिन नेटवर्क की प्रक्रिया शुरू होती है। फाइब्रिन नेटवर्क थक्कों में प्राथमिक प्रोटीन घटक है। अगर टसर सिल्क में मौजूद फाइब्रोइन भी इसी तरह का प्रोटीन है तो घाव को भरने में यह प्रभावी हो सकता है।