क्या रंग लाएगी भारत-सेशेल्स के बीच कछुआ कूटनीति?
दो देशों के बीच जानवरों का आदान-प्रदान एक सामान्य बात है लेकिन सेशेल्स बहुत ही कम देशों को अलडाबरा कछुआ देता है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। सेशेल्स के राष्ट्रपति डैनी फौरे फिलहाल भारत को अपने देश के एक छोटे से द्वीप एजम्पसन आइजलैंड को सौंपने का वादा तो पूरा नहीं कर पाये हैं लेकिन उन्होंने कूटनीतिक भाषा में एक ऐसा संकेत दिया है जिस पर भारत फिलहाल संतोष व्यक्त कर सकता है। शुक्रवार को भारत की छह दिवसीय यात्रा पर पहुंचे फौरे ने अपने देश से लाये दो विशालकाय अलडाबरा कछुए को बतौर तोहफा भेंट किया है जो शनिवार को देर शाम हैदराबाद चिड़ियाघर पहुंचा दिए गए। दो देशों के बीच जानवरों का आदान-प्रदान एक सामान्य बात है लेकिन सेशेल्स बहुत ही कम देशों को अलडाबरा कछुआ देता है। माना जा रहा है कि इस भेंट के जरिए फौरे ने यह जताने की कोशिश की है कि वह भारत-सेशेल्स रिश्ते को इन कछुओं की तरफ ही दीर्घायु होने की कामना करते हैं। 250 किलोग्राम तक के वजनी अलडाबरा कछुए 150 वर्षो तक जीवित रहते हैं। इन्हें विश्व में गालोपोगस कछुओं के बाद आकार व उम्र में दूसरा सबसे बड़ा व सबसे ज्यादा दिनों तक जिंदा रहने वाला कछुआ माना जाता है।
विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत में अलडाबरा कछुओं का एक दिलचस्प इतिहास है। सबसे पहले कुछ ब्रिटिश नाविकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राबर्ट क्लाइव को इस प्रजाति के एक कछुए को बतौर गिफ्ट दिया था। उसका नाम अद्वैता रखा गया और इसे बाद में वर्ष 1875 में कोलकाता चिड़ियाघर को दे दिया गया। माना जाता है कि अद्वैता तकरीबन 255 वर्ष की आयु तक जिंदा रही। इसका निधन मार्च, 2006 में हुआ। बाद में सेशेल्स से दो और अलडाबरा कछुए कोलकाता चिड़ियाघर लाये गये। राष्ट्रपति फौरे की तरफ से दिया गया नया अलडाबरा उपहार अब हैदराबाद के चिड़ियाघर में देखे जा सकेंगे। फौरे का यह उपहार इसलिए भी खास है कि भारत और सेशेल्स के रिश्ते फिलहाल बेहद उत्साहजनक दौर से नहीं गुजर रहे। एजम्पसन आइजलैंड में एक नौ सैन्य अड़्डा बनाने की कोशिशों को वहां की संसद ने जोरदार धक्का दिया है।
दोनों देशों के बीच वर्ष 2015 में एक समझौता हुआ था कि किस तरह से वे संयुक्त तौर पर इस द्वीप को सुरक्षा वजहों के लिए इस्तेमाल करेंगे। लेकिन बाद में इसको लेकर वहां जबरदस्त राजनीति शुरु हो गई है। सेशेल्स संसद में इस बारे में प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिलने के बाद भारत आने से पहले राष्ट्रपति फौरे को यह घोषणा करनी पड़ी कि एजम्पसन आइडलैंड हमेशा सेशेल्स के पास ही रहेगा और इसे भारत को नहीं सौंपा जाएगा। उन्होंने यहां तक कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के साथ वार्ता में यह मुद्दा नहीं रहेगा। वैसे उन्हें समझाने की कोशिश भारत की तरफ से लगातार हो रही है। हाल ही में राष्ट्रमंडल बैठक के दौरान लंदन में पीएम मोदी ने उनसे बात भी की थी। उसके पहले विदेश सचिव विजय गोखले ने सेशेल्स की यात्रा की थी। लेकिन लगता है कि भारत को फिलहाल कुछ वर्षो तक इसके लिए इंतजार करना होगा।
बताते चलें कि सेशेल्स के एजम्पसन आइजलैंड को अहमियत भारत की भावी सैन्य सुरक्षा के लिए काफी है। भारत इसके अलावा इंडोनेशिया, ईरान, ओमान, मारीशस, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी बंदरगाह को विकसित करने संबंधी योजनाओं को अमली जामा पहनाने में लगा है। भारत की यह रणनीति चीन की 'स्टि्रंग ऑफ पर्ल्स' नीति के जवाब में है जिसके तहत वह पूरे हिंद महासागर में एक के बाद एक छह बंदरगाह विकसित कर रहा है।