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सच्ची समृद्धि तभी आएगी जब चरित्र और प्रकृति को कायम रखते हुए समर्पित भाव से लोग राष्ट्र निर्माण में जुटेंगे

निश्चित तौर पर यह चिंता की बात है कि इस तरह के विभिन्न इंडेक्स में भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। हर सचमुच देश के हर व्यक्ति को समृद्धि से लैस करना है तो हमें सामूहिक स्तर पर इन मानकों पर अपना प्रदर्शन सुधारना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 02:18 PM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 02:22 PM (IST)
सच्ची समृद्धि तभी आएगी जब चरित्र और प्रकृति को कायम रखते हुए समर्पित भाव से लोग राष्ट्र निर्माण में जुटेंगे
असली समृद्धि को हासिल करने का संकल्प लें और इसकी प्राप्ति के लिए एक दीया जलाएं।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। दीपावली आने को है। इस बार त्योहार का सभी को बेसब्री से इंतजार है। पिछले साल महामारी के चलते सतर्कता और एहतियात के बीच मंद पड़ी अर्थव्यवस्था से थोड़ा नैराश्य छाया था, लेकिन इस बार तस्वीर गुलाबी होने की ओर है। हमने खुद के दम से महामारी को थाम दिया है तो आर्थिक विकास के चक्र को भी तेज कर दिया है। बदलती तस्वीर के बीच आ रहे इस त्योहार को लेकर अबकी बार हर कोई उल्लास से आह्लादित है। अंतस समेत बाहरी अंधियारे को इस प्रकाश पर्व से रौशन करने और अपनी समृद्धि की कामना के तहत इस त्योहार की हम साल भर से राह ताकते हैं। देवी लक्ष्मी की कृपा भी बरस रही है। लोगों की समृद्धि में उत्तरोतर वृद्धि दिखने भी लगी है, लेकिन एक तो अभी यह समृद्धि असंतुलित है और दूसरी बात दलिद्दर जाने को तैयार नहीं है। यह दलिद्दर है हमारी सोच का, हमारे चरित्र का, हमारे पारिस्थितिकी क्षरण का, हमारे अस्वस्थ समाज का, हमारे अशिक्षित लोगों का और समग्र रूप से हमारे आधे-अधूरे जीवन कल्याण स्तर का।

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मानव विकास सूचकांक में ये दलिद्दर हमें कई पायदान नीचे ठेल देता है। तभी तो कुछ लोगों की आर्थिक समृद्धि व्यापक स्तर की सामाजिक खुशहाली पर भारी पड़ती है। ये सामाजिक खुशहाली तभी हासिल होगी, जब देश का चहुंमुखी विकास होगा। व्यक्ति की समृद्धि से ज्यादा जरूरी है राष्ट्र की समृद्धि। राष्ट्र समृद्ध होगा तो सभी व्यक्ति समान रूप से स्वयमेव समृद्ध होंगे। यह बात और है कि इस भौतिक समृद्धि के फेर में हम असली समृद्धि को भुला बैठे। धन को हाथ का मैल समझने वाले हमारे देश में मनीषियों ने कहा है कि अगर आपका धन चला जाए तो समझो कुछ नहीं गया। अगर आपका स्वास्थ्य चला जाए तो समझो आपने कुछ खोया, लेकिन अगर चरित्र चला जाए तो समझो सब कुछ चला गया। हमारे पास सब कुछ है लेकिन हमारी प्राथमिकता से चरित्र और प्रकृति के साथ राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव कम होता जा रहा है। असली समृद्धि तभी आएगी जब चरित्र और प्रकृति को कायम रखते हुए समर्पित भाव से लोग राष्ट्र निर्माण में जुटेंगे। राष्ट्र की समृद्धि से ही राष्ट्रवासी खुशहाल होंगे। ऐसे में आइए, इस प्रकाश पर्व पर इसी असली समृद्धि को हासिल करने का संकल्प लें और इसकी प्राप्ति के लिए एक दीया जलाएं।

इस ओर भी चिंतन की जरूरत : प्रसन्नता और समृद्धि के गुणा-भाग में हमें देश के रूप में कई मानकों पर अपने प्रदर्शन को आंकने की जरूरत है। बात चाहे प्रकृति के दोहन की हो या स्वभाव में शामिल होते जा रहे भ्रष्टाचार की, इन सबसे ही किसी समाज का भविष्य तय होता है।

प्रकृति का दोहन : हमारे पालन-पोषण से लेकर हमारे कल्याण का हर पहलू कहीं न कहीं प्रकृति से ही जुड़ा है। इसके बावजूद प्रकृति का संरक्षण हमारे एजेंडा से बाहर होता जा रहा है। हम अपने कथित विकास के लिए प्रकृति का नाश कर रहे हैं। मनुष्य और प्रकृति के संबंधों के आकलन के लिए 2006 में वैश्विक स्तर पर हैप्पी प्लेनेट इंडेक्स की शुरुआत की गई थी। 2019 के इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 152 देशों में 128वीं रही थी। चिंता की बात यह भी है कि भारत का स्कोर लगातार गिरता जा रहा है। 2006 में भारत का स्कोर 50.4 रहा था, जो 2019 में 36.4 पर आ गया।

भ्रष्टाचार का दंश : भ्रष्टाचार किसी भी देश की व्यवस्था को खोखला कर सकता है। इस मामले में भारत की स्थिति बहुत खराब है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ओर से जारी होने वाला करप्शन परसेप्शन इंडेक्स इस बात की गवाही दे रहा है। 180 देशों की सूची में भारत 86वें स्थान पर है। बेहतर व्यवस्था के लिए 100 के स्कोर में से भारत को मात्र 40 अंक मिले हैं।

समृद्धि में पीछे हम : संपूर्ण समृद्धि के मामले में भारत बहुत पीछे है। लेगाटम इंस्टीट्यूट दुनियाभर में सुरक्षा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रशासन, सामाजिक पूंजी, पर्यावरण संबंधी नीतियों निवेश, रहने की स्थिति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा समेत कुछ अन्य मानकों पर प्रास्पेरिटी इंडेक्स यानी समृद्धि सूचकांक जारी करता है। यह इंडेक्स हमें कई तरह से आत्मावलोकन करने को विवश करता है। पिछले एक दशक में हमने इस इंडेक्स में कुछ खास तरक्की नहीं की है। करीब 160 से 170 देशों के आधार पर बनने वाले इंडेक्स में भारत टाप 100 देशों में भी नहीं है।


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