मंदिर-दरगाह के बाद संघ भी तृप्ति के निशाने पर
महिलाओं की आवाज बन चुकीं भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने मंदिर और दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे के बाद आरएसएस में महिलाओं को बराबरी देने पर जोर दिया है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने मंदिर और दरगाह में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा उठाने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने की मांग उठा दी है। उन्होंने इस मांग पर संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को पत्र लिखा है।
तृप्ति देसाई ने पत्र में कहा कि संघ के कार्यक्रमों में मंच पर भारत माता की प्रतिमा होती है लेकिन भारत माता का प्रतिनिधित्व करने वाली स्त्री को कभी संघ के मंच पर नहीं देखा जाता। संघ की महिला शाखा के नाम पर राष्ट्रसेविका समिति जरूर है, लेकिन वह भी नाममात्र का ही संगठन है। इस समिति ने महिलाओं के लिए कभी भी प्रभावशाली अथवा ठोस काम नहीं किया है। इस समय केंद्र और राज्य में संघ से प्रेरणा लेने वाली सरकारें हैं। ऐसे में संघ में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाना चाहिए ताकि पूरे देश में समानता का सकारात्मक संदेश दिया जा सके। देसाई के अनुसार महिलाओं ने इस बार बहुत बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान किया है। इसलिए उन्हें भी अच्छे दिन आने का इंतजार है। देसाई ने इस संबंध में चर्चा के लिए संघ प्रमुख से समय मांगा है। तृप्ति के पत्र पर संघ की तरफ से कोई आधिकारिक बयान फिलहाल नहीं आया है। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता इस संबंध में कुछ बोलने से भी कतरा रहे हैं।
लेकिन आपस की बातचीत में वे देसाई के कथन का जोरदार खंडन करते हैं कि संघ में राष्ट्र सेविका समिति की भूमिका नाममात्र ही है। उनका कहना है कि तृप्ति देसाई आज महिलाओं की समानता का मुद्दा उठा रही हैं। संघ इस पर 80 साल पहले ही विचार कर चुका है, 1936 में विजयदशमी के दिन एक मराठीभाषी महिला लक्ष्मीबाई केलकर द्वारा महाराष्ट्र के ही वर्धा में राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना की गई थी। संघ की भांति ही यह समिति की भी पूरे देश में करीब 4,350 नियमित शाखाएं चलती हैं और इसकी सदस्य संख्या तीन लाख से ज्यादा है। समिति के आक्रामक एवं ठोस कायरें पर सवाल उठाने वालों पर उक्त पदाधिकारियों ने करारे प्रहार किए। उनके अनुसार राष्ट्रसेविका समिति के 500 से ज्यादा सेवा प्रकल्प देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे हैं।
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