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‎Earth Day 2020: दुनिया 50 तो आदिवासी समाज हजारों साल से मना रहा 'पृथ्वी दिवस'

छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति में हर साल पृथ्वी दिवस को खद्दी परब के धार्मिक अनुष्ठान के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 01:17 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 08:25 AM (IST)
‎Earth Day 2020: दुनिया 50 तो आदिवासी समाज हजारों साल से मना रहा 'पृथ्वी दिवस'
‎Earth Day 2020: दुनिया 50 तो आदिवासी समाज हजारों साल से मना रहा 'पृथ्वी दिवस'

श्रवण शर्मा, रायपुर। विश्व ने पचास साल पहले 22 अप्रैल 1970 से पृथ्वी दिवस मनाने की औपचारिकता शुरू की है, जबकि भारती आदिवासी समाज में पृथ्वी को पूजने की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है। छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति में हर साल पृथ्वी दिवस को 'खद्दी परब' के धार्मिक अनुष्ठान के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

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यूं तो भारत के लोग धरती को मां मानकर धरती, जंगल, पहाड़, प्रकृति की उपासना करते रहे हैं, लेकिन बात आदिवासी समाज की करें तो इस समाज ने सिर्फ धरती की पूजा और उत्सव के लिए दिन तय कर रखा है। आदिवासी समाज खद्दी परब चैत्र पूर्णिमा को मनाता है। इस बार चैत्र पूर्णिमा आठ अप्रैल को थी। लॉकडाउन के कारण आदिवासी समाज ने अपने घरों में ही धार्मिक अनुष्ठान किया। इस बार कोई सामूहिक उत्सव नहीं मनाया गया। आदिवासियों के लिए यह पृथ्वी ही भगवान है।

आदिवासी मानते हैं कि प्रत्येक जीव धरती माता पर ही निर्भर है। ये धरती माता ही हैं, जो हमें अन्न, जल, फल-फूल, पेड़-पौधे, पहाड़, नदियां, झरने का सुख देती हैं। धरती की कृपा से ही जीवों का जीवन चलता है। यही कारण है कि आदिवासी समाज हजारों साल से धरती माता की पूजा करता आ रहा है। न केवल जंगलों में रहने वाले, बल्कि शहरी लोग भी पृथ्वी के इसी उपकार का आभार प्रकट करने के लिए सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। हर इलाके के आदिवासी स्थानीय परंपरा के अनुसार धरती की पूजा करते हैं।

'खद्दी परब' से देते हैं प्रकृति बचाने का संदेश

आदिवासी उरांव समाज के वरिष्ठ सदस्य एसआर प्रधान बताते हैं कि प्रकृति के महत्व को आदिवासी समाज ने हजारों साल पहले ही समझ लिया था। यही कारण है कि आदिवासी समाज के लोग 'खद्दी परब' पर पारंपरिक रीतिरिवाज के अनुरूप धरती माता, साल वृक्ष, फूल की पूजा-अर्चना करके प्रकृति को बचाने का संकल्प लेते हैं। चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व इस साल आठ अप्रैल को मनाया जाना था, लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण खद्दी परब सामूहिक रूप से नहीं मनाया गया। लोगों ने घरों में ही पूजा की।

माटी तिहार भी इसी का एक रूप

छत्तीसगढ़ कला परंपरा पर शोध कर चुके वरिष्ठ संस्कृति कर्मी डॉ. डीपी देशमुख बताते हैं कि बस्तर का माटी तिहार, धरती परब या खद्दी परब के समान माना जाता है। चैत्र माह में तृतीया के दिन आयोजित होने वाला यह उत्सव बस्तर में केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं है। बस्तर के सभी किसान भी इसे अपनी सुविधा के अनुसार तिथि बदलकर मनाते हैं, लेकिन दिन अक्सर मंगलवार ही होता है।


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