तमिलनाडु में जयललिता के मुख्यमंत्री बनने के साथ शुरू हुई थी नेता पूजन की परंपरा, शपथ के बाद कई हुए दंडवत
MGR की पार्टी दो धड़े में बंट गई थी। उस समय जब जयललिता का एक पक्ष खुलकर विरोध कर रहा था तो वहीं गुट एमजीआर का उत्तराधिकारी मान बैठा था। उनके विश्वास ने जयललिता के मन में हुंकार भरी और वह एमजीआर के धड़े की लीडर बन गईं।
नई दिल्ली, आशिषा सिंह राजपूत। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक प्रमुख जयरामन जयललिता ने उतार-चढ़ाव से भरे अपने जीवन में कई लड़ाइयां लड़ी और जीतीं हैं। उनके करियर का ग्राफ भी ऊपर-नीचे हुआ लेकिन हर बार वह दुगनी ताकत से वापस उठ खड़ी हुईं। वह अपने निजी एवं राजनीतिक दुष्प्रचारकों से लड़ने के दृढ़ निश्चय के लिए पहचानी जाती हैं। राज्य के हजारों लोग उन्हें देवी का रूप में मानते थे।
तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता ने बनाया अपना शीर्ष स्थान
एक तरफ जहां जयललिता ने फिल्मी दुनिया में पर्दे पर अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा तो वहीं, दूसरी तरफ तमिलनाडु की राजनीति में उन्होंने अपना शीर्ष स्थान बनाया। जयललिता के फिल्मी करियर और राजनीतिक करियर में एम जी रामचंद्रन यानी MGR का सबसे अहम और बड़ा योगदान रहा है।
MGR वही शख्स थे, जो जयललिता को राजनीति में लेकर आए थे। लेकिन MGR के निधन के बाद जयललिता ने वो दुनिया देखी, जो MGR के रहते हुए उन्होंने कभी महसूस भी नहीं की थी।
इस खबर का आधार जयललिता की जीवनी पर लिखी गई किताब 'जयललिता- कैसे बनीं एक फिल्मी सितारे से सियासत की सरताज' है, जिसके कुछ दिलचस्प किस्सो में से एक पहलू का जिक्र किया गया है। इस किताब को तमिलनाडु के मशहूर लेखक में से एक वासंती द्वारा लिखा गया है, जिसका हिंदी अनुवाद सुशील चंद्र तिवारी ने किया है।
MGR के निधन के बाद जयललिता ने सीखी राजनीति
जयललिता के राजनीतिक करियर की शुरुआत डीएमके पार्टी से हुई थी। 1987 में जब एमजीआर के निधन के बाद जयललिता ने असल मायने में राजनीति को समझा। MGR की पार्टी दो धड़े में बंट गई थी। उस समय जब जयललिता का एक पक्ष खुलकर विरोध कर रहा था तो वहीं, गुट एमजीआर का उत्तराधिकारी मान बैठा था। उनके विश्वास ने जयललिता के मन में हुंकार भरी और वह एमजीआर के धड़े की लीडर बन गईं। उन्होंने खुद के एमजीआर के विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
जयललिता ने पहली बार 1991 में संभाला मुख्यमंत्री का पद
साल 1991 में कांग्रेस के साथ जयललिता ने गठबंधन कर लिया। उस दौरान राजीव गांधी की हत्या से पैदा हुई सहानुभूति की लहर ने उनकी पार्टी को भारी जीत दिलाने में मदद की। इसके साथ ही थे जयललिता ने पहली बार 24 जुलाई 1991 में मुख्यमंत्री का पद संभाला। बता दें कि जयललिता के नाम न केवल तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का रिकॉर्ड दर्ज है, बल्कि वो इस राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री भी बन चुकी हैं।
जयललिता के वोट खींचने की थी ताकत
जयललिता और अन्नाद्रमुक की निर्णायक जीत ने पार्टी में उन लोगों का मुंह बंद कर दिया था, जिन्होंने जयललिता को समाप्त करने की हरसंभव कोशिश की थी। शानदार जीत के साथ उन्होंने यह साबित कर दिया था कि एमजीआर के बाद वही पार्टी का चेहरा थी और उनके वोट खींचने की ताकत थी।
जयललिता के आगे दंडवत लेटे नेता
24 जुलाई 1991 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के शताब्दी उत्सव हॉल में ईश्वर के नाम और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जब वह समारोह से निकल रही थी तो उनके मंत्रिमंडल में नए चेहरे के रूप में शामिल सेनगोत्तईयन उनके पैरों पर गिर पड़े थे। यही नहीं कई कनिष्ठ मंत्री तो और भी आगे निकले और वे जयललिता के आगे दंडवत लेट गए मानो वो उनकी देवी हों।
इसी के साथ तमिलनाडु में नेता पूजन की एक नई परंपरा शुरू हो चुकी थी। पुरुष समाज, जो हाल तक जयललिता को नीचे दिखाने में लगा हुआ था वह उनके चरणों में पड़ा था।