अगर आप भी है ट्रेकिंग के शौकीन तो यह जगह आपके लिए किसी जन्नत से कम नहीं
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित बंजार घाटी शीतलता व रोमांच का अद्भुत एहसास कराती है। ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए यह किसी जन्नत से कम नहीं। आज चलते हैं यहां के मनभावन सफर पर
पूर्वी कमालिया। बंजार घाटी प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग की तरह है। यहीं बसा है एक छोटा-सा गांव जीभी, जो पर्यटकों को अब खूब आकर्षित करता है। सामाजिक विज्ञान में मास्टर डिग्री लेने के बाद भारत के कई गांवों में जाकर शोध कर चुकीं शीना ठाकुर अपने गांव जीभी के बारे में कहती हैं, ‘साल 2002 में हमेशा गुलजार रहने वाले हिमाचल के छोटे से कस्बे बंजार से जंगल और खेतों के बीच बसे जीभी गांव तक जाना और वहां बसना किसी सजा से कम नहीं था। उस समय यहां गिने-चुने घर ही रहे होंगे, पर आज पर्यटन ने यहां के लोगों के चेहरे पर लालिमा ला दी है।’गौरतलब है कि यहां कई ऐसे सुंदर गांव और दर्शनीय स्थल हैं, जो अब पर्यटकों की पसंद बनते जा रहे हैं।
ऋषियों की घाटी: कुल्लू घाटी के 18 ऋषियों में से शृंग (शृंगी) ऋषि का बंजार घाटी से ताल्लुक माना जाता है। घने वृक्षों के बीच से एक पैदल रास्ता शृंग ऋषि के मंदिर तक जाता है। यह काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है। मान्यता है कि दशरथ ने इसी पावन धरती पर शृंग ऋषि के कहने पर संतान-प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था। कहा जाता है कि यहां के शांत वातावरण के कारण ही अन्य ऋषि-मुनि भी हर युग में यहां तप-साधना हेतु आते थे। शृंग ऋषि के मंदिर में बने लकड़ी के कपाल की पूजा आज भी स्थानीय लोग पूरी श्रद्धा से करते हैं। यह मंदिर भले ही पर्यटकों के लिए न खोला गया हो, लेकिन मंदिर के चारों ओर का वातावरण लोगों को अपनी ओर खींच लेता है।
ओल्ड ब्रिटिश रूट अब है ट्रेकिंग रूट: वयोवृद्ध प्रतापजी कुल्लू जिले की तहसील बंजार में स्थित जीभी गांव के निवासी हैं, जो ब्रिटिशकाल के दौरान ‘पहाड़ी कुली’ का काम करते थे। वे अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘अंग्रेजों को टट्टू से नीचे उतारने के लिए कुली को अपनी हथेली फैलानी पड़ती थी, जिसके ऊपर पैर रख कर वे अपनी सवारी से नीचे उतरते। उस वक्त यह ब्रिटिश रूट केवल मिट्टी और पत्थर से बना हुआ था। अगर अंग्रेजी बाबुओं के जूतों में धूल या मिट्टी लग जाती, तो उनके पैरों से जूते उतारकर साफ करने पड़ते थे। मना करने पर चाबुक से खूब पिटाई होती थी।’ औट से शिमला तक फैला यह ओल्ड ब्रिटिश रूट आज एक शानदार ट्रेकिंग एवं बाइकिंग रूट बन चुका है। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों द्वारा हर 16 किलोमीटर पर बनवाए गए आलीशान गेस्ट हाउस के अवशेष आज भी बीते दिनों की कहानी बयां करते हैं।
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का ऐश्वर्य: प्राकृतिक धरोहरों की श्रेणी में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की पदवी हासिल करने वाला यहां का ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क ‘हैरी पॉटर’ सीरीज की कहानियों का कोई रहस्यमय जंगलसा प्रतीत होता है। यहां आसमान को चूमते घने देवदार वृक्ष, स्थानीय पहाड़ी पक्षियों के मनमोहक
सुर, पत्तों से छन कर जमीन पर गिरती कोमल धूप और महकते हुए रंगीन जंगली फूल इस घने जंगल में खुशनुमा वातावरण का निर्माण करते हैं। पक्षी-प्रेमियों के लिए यह नेशनल पार्क किसी स्वर्गलोक से कम नहीं है। दिलचस्प है कि यहां पहाड़ी पक्षियों की लगभग 181 प्रजातियां पाई जाती हैं।
ट्रेकिंग का रोमांच: अगर आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं, तो साईं रोपा नामक गांव से आपको हिमालयन नेशनल पार्क तक ट्रेकिंग करने और यहां के इको-जोन में स्थित गांवों में रहने की अनुमति लेकर अपना शौक पूरा कर सकते हैं। रंगथर टॉप, रोला जलप्रपात और शिल्ट हट ट्रेक इस पार्क के कुछ उम्दा ट्रेक्स हैं। बंजार टाउन के पास गुशैनी, सैंज तथा पेरख्री जैसे गांवों से आपको ट्रेकिंग के लिए गाइड भी मिल जाएंगे।
जीभी जलप्रपात: एक ओर फलों के बगीचे और दूसरी ओर दूर तक फैले जंगल के बीच में स्थित पहाड़ी घरों से होते हुए गुजरता है जीभी जलप्रपात तक पहुंचने का रास्ता। मिट्टी एवं पत्थरों से बने इस रास्ते पर चलने के लिए फैशनेबल की बजाय आरामदायक और अच्छी ग्रिप वाले जूते पहन कर जाना चाहिए। इस जलप्रपात के धुआंधार बहते जल को सतरंगी आभा देते हुए दो इंद्रधनुष सृजित होते हैं। सुनहरी सुबह में सूर्य की कोमल किरणों से बने इंद्रधनुषों की यह जोड़ी यहां आने वाले पर्यटकों को उल्लास से भर देती है। मई-जून की गर्मियों में इसके बर्फीले पानी में नहाने पर ऐसा महसूस होता है, मानो हमने तपते सूरज की किरणों को बर्फ में पिघला दिया हो। जीभी गांव की सैर के दौरान इस कुदरती करिश्मे का आनंद जरूर लें।
आसपास की रौनक
शोजा-छिपा हुआ हीरा: लगभग 2014 तक शोजा को ज्यादा लोग नहीं जानते थे। इसकी जानकारी सिर्फ हिमाचलवासियों और कुछ गिने-चुने ट्रेकर्स को ही थी। जीभी एवं जलोड़ी पास की लोकप्रियता बढ़ते ही शोजा नामक इस छिपे हुए हीरे ने बाहर निकल कर अपनी चमक से सबको चौंका दिया। यह जीभी गांव से करीब सात किलोमीटर दूर स्थित है। जलोड़ी पास की गोद में बसे इस गांव से सूर्यास्त का मनोरम नजारा देखने के लिए यात्री यहां पर रात में रुकना पसंद करते हैं। और हां, शोजा में रात्रिवास करने के बाद सूरज निकलने से पहले ही जलोड़ी पास के उच्चतम शिखर तक ट्रेक करने का कार्यक्रम आपके लिए सही निर्णय साबित होगा।
नारकंडा में पहली बार सेब की खेती: बंजार टाउन से 108 किलोमीटर तथा जलोड़ी पास से शिमला की ओर स्थित नारकंडा, थानेदार के ‘एपल बेल्ट’ के लिए मशहूर है। कहते हैं सेब के बागानों की जन्मभूमि माने जाने वाले थानेदार में अमेरिका के सत्यानंद स्टोक्स नामक व्यक्ति ने सेब का बीज बोया था। यहीं से सेब की खेती हिमाचल में फैली। गर्मियों में हरे घास से लदी यहां की पहाड़ियों में पिकनिक मनाना जहां यात्रियों को रुचिकर लगता है, वहीं सर्दियों में नारकंडा की पहाड़ियां स्कीइंग प्रेमियों के लिए स्वर्ग होती हैं।
चेह्नी कोठी का आकर्षण: बंजार से जीभी की तरफ हाईवे से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर शृंगी ऋषि मंदिर के लिए रास्ता जाता है और वहां से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर चेह्नी कोठी स्थित है। दरअसल, यह लगभग 40 मीटर ऊंचा टावर है, जो 1905 के विनाशकारी भूकंप को मात देकर आज भी अविचल खड़ा है। मानो वह हिमाचली वास्तुकारों के कौशल का झंडा लहरा रहा हो। ‘काठ-कुणी’ शैली में बनाई गई इस कोठी में सीमेंट, रेत या पानी का उपयोग नहीं हुआ है।
17वीं सदी में केवल लकड़ी और पत्थरों से बनी यह कोठी किसी भी प्रकार की कुदरती आपदा का सामना कर सकती है। हालांकि सरकार और स्थानीय निवासियों की लापरवाही के कारण आज इसका कुछ हिस्सा धराशायी हो चुका है, पर ऐसा लगता है मानो 40 मीटर ऊंची मीनार, जो पहरेदारी के उद्देश्य से निर्मित की गई थी, आज भी गांव की सीमाओं पर अपनी नजरें रखे हुए है। टावर के सामने का हिस्सा कृष्ण मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही, लकड़ियों की दीवारों पर की गई नक्काशी एवं कारीगरी आपका मन मोह लेगी। वहीं मंदिर के अंदर का आध्यात्मिक वातावरण आपको शांति अनुभव कराएगा। हिमाचल की वादियों में छिपे हुए इस स्थान की खोज एक उत्सुक सैलानी ही कर सकता है।
तीर्थन घाटी : बंजार से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तीर्थन घाटी इस हिम-प्रदेश का बगीचा है। सर्पाकार बहती तीर्थन नदी के किनारे आपको ‘क्या देखें’ या ‘कहां जाएं’ जैसे विचार बिलकुल नहीं आएंगे। इस घाटी के ठहराव में घुलकर बस दिन-रात यहां के नजारों का लुत्फ उठाना ही जैसे आपका ध्येय बन जाएगा। शहरों की भाग-दौड़ और शोरगुल से दूर तीर्थन नदी के किनारे स्थित लकड़ी के बने आलीशान घर आपको इस नदी के किनारे बैठ कर मछलियों का शिकार करने का मौका और साधन भी देंगे। वैसे, इस घाटी के कुछ गांवों तक केवल ट्रेकिंग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है, किंतु आप बाइक तथा गाड़ी में भी तीर्थन के कुछ बेहद सुंदर गांवों में कैंपिंग का स्थान या गेस्ट हाउस ढूंढ़ सकते हैं।
जलोड़ी पास: नर्म बर्फ की सफेद चादर शिमला से बंजार घाटी का प्रवेश द्वार माना जाने वाला जलोड़ी पास घाटी के द्वार पर लगे फूलों के तोरण जैसा प्रतीत होता है। देवदार के वृक्षों से ढके पर्वतों की ढलानें अपनी चोटियों पर लगभग मई तक सफेद नर्म बर्फ की चादर संजोए रखती हैं। एक घाटी से दूसरी में प्रवेश करने के रास्ते को पास यानी दर्रा कहा जाता है, किंतु जलोड़ी पास घाटी के दो ऐतिहासिक धरोहरों को जोड़ता है। इनमें से एक है पवित्र झील शिरोल्स्कर और दूसरा रघुपुर किला। जलोड़ी पास की चोटी पर बने पठार पर काली माता मंदिर है, जिसे जलोड़ी माता भी कहते हैं। यहां वसंत की शुरुआत में काली माता की रथ-सवारी संगीत-वाद्यों के साथ निकाली जाती है।
यह कैंपिंग है कुछ खास
घने जंगल या फिर सेब के बागानों में तंबू गाड़ कर जब आप सितारों से सजे आसमान के नीचे सोएंगे तो नजदीकी झरने का कलकल बहता पानी आपको सपनों की दुनिया में ले जाएगा। दरअसल, यहां कैंपिंग अलग तरह का आनंद देती है। फाइव स्टार होटल छोड़कर यहां टेंट में रहने का रोमांच अतुलनीय है। घ्याघी, जीभी तथा शोजा में अनगिनत कैंप साइट्स हैं, जिनकी जानकारी आपको आसानी से इंटरनेट पर मिल जाएगी। हर बजट में टेंट आसानी से मिल जाएंगे। स्थानीय लोगों ने भी अपने घरों के दरवाजे पहाड़ी जीवनशैली का अनुभव लेने और कैंपिंग के लिए यात्रियों के स्वागत में खोल रखे हैं। यह ‘होम स्टे’ एक तरह से पहाड़ी परिवारों से मिलने-जुलने और उनकी संस्कृति के समझने का मौका भी देता है। यहां आपको स्थानीय व्यंजनों का यादगार स्वाद भी मिलेगा।
इन्हें भी जानें
सर्दियों में बर्फरूपी सैलाब जब रोहतांग पास को बंद करने पर मजबूर कर देता है, तब औट- बंजर-जीभी- जलोड़ी पास और फिर कल्पा-सांगला से होकर जाने वाला यह रास्ता स्पीति घाटी तक पहुंचने का एकमात्र विकल्प बन जाता है। उस दौरान स्पीति घाटी में खाने-पीने की सामग्री तथा चिकित्सा सहायता भी केवल इसी रास्ते से पहुंचाई जा सकती है। ’सरकार द्वारा संचालित ‘यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ किफायती मूल्य में जलोड़ी पास का साइक्लिंग एडवेंचर आयोजित करता है और साथ में फागुपुल-जीभी- घ्याघी- शोजा में कैंपिंग का अवसर भी देता है।
सिद्दू का स्वाद और फलों की चटनी की मिठास
घी में सराबोर गरमागरम सिद्दू जब जंगली पुदीने की चटनी के साथ मुंह में जाता है तो एक एक अनोखे स्वाद का एहसास होता है। बंजार घाटी के व्यंजनों में मुख्यत: कुल्लू अंचल की विशेषता नजर आती है। आपको यहां मिलेगा कुल्लू धाम भी, जो एक संपूर्ण थाली है। इसे सिर्फ शुभ अवसरों तथा त्योहारों के मौके पर बनाया जाता है। हां, आप ‘होम स्टे’ करने के एक दिन पहले धाम बनाने का आग्रह कर सकते हैं। काली दाल से बना ‘माह’ और काबुली चने से बने ‘माद्र’ के साथ ‘माह्नी’ का खट्टा स्वाद और घी से बने मीठे भात का रसभरा स्वाद आपको इस घाटी के व्यंजनों से परिचित कराएगा। ऊंचे पहाड़ों में पाए जाने वाले बुरांस नामक फूल ज्यादातर तो जड़ी-बूटी के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं, पर खास बात यह है कि स्थानीय लोग इस फूल से खट्टा-मीठा शर्बत, जैम और चटनी भी बनाते हैं। ‘चिलाडा’ नामक पहाड़ी चिले के साथ आप बुरांस, सेब की चटनियों का मजा ले सकते है।
जंगली शहद और कुल्लू शॉल-टोपी की खरीदारी
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से नजदीक के स्थानीय निवासियों को जंगल से शहद लाने की सुविधा है। वहीं घाटी में ऊंचाई पर स्थित हर गांव में लगभग हर दूसरे घर के बाहर एक मधुमक्खी का छत्ता जरूर होता है। इस तरह आप उनसे सेब, बुरांश के व्यंजन तथा जंगली शहद खरीद सकते हैं। बुरांश के शर्बत की बोतलें भी बंजार के गांवों में मिल जाती हैं। कहते हैं कि यह शर्बत शरीर की गर्मी दूर कर खून साफ करता है और गर्भ संबंधी समस्याओं में भी आराम देता है। इसके अलावा, लकड़ी से बनी कलाकृतियां, जंगली जड़ी-बूटियां, कुल्लू शॉल, टोपी तथा अन्य गरम कपड़े यहां से खरीदे जा सकते हैं।
कैसे और कब पहुंचें?
दिल्ली से शिमला व रामपुर जाने वाली हिमाचल परिवहन निगम की बसें तीर्थन घाटी से गुजरती हैं। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुंतर में स्थित है तथा नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला है। दिल्ली से कालका तक 5 घंटे की दूरी किसी भी सुपरफास्ट ट्रेन में तय कर सकते है और वहां से शिमला तक का सफर ‘टॉय ट्रेन’ से कर सकते हैं। शिमला से जलोड़ी पास होते हुए बाइक ट्रिप के लिए भी बंजार तथा तीर्थन घाटी का रूट प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श माना जाता है। यहां जाने का अनुकूल समय मार्च से जून तक है।