84 लाख का पैकेज छोड़ बच्चों को बना रहे संस्कारी
अमेरिका में 84 लाख रुपये का सालाना पैकेज पाने वाले छाबड़ा दंपती ने बच्चों को जैन धर्म सिखाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।
रामकृष्ण मुले, इंदौर। बच्चों के चरित्र निर्माण का ऐसा जुनून छाबड़ा दंपती पर चढ़ा कि अमेरिका में 84 लाख रुपये का सालाना पैकेज छोड़कर बच्चों को जैन धर्म और संस्कारों की शिक्षा देने में जुट गए। बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए अपने देश लौटकर पहले उन्होंने खुद संस्कृत के साथ अन्य दर्शन की शिक्षा ली। इसके बाद जैन धर्म के हर पहलू से रूबरू कराने वाला एक सॉफ्टवेयर बनाया। उनके इस काम में करीब 150 लोग सहभागी बनें।
इसके बाद शुरू हुआ इंदौर सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बच्चों के चरित्र निर्माण का सिलसिला जो आज भी जारी है। जिस भी शहर में वे जाते हैं, वहां लोगों से संपर्क साधकर शिविर का आयोजन किया जाता है। इस शिविर में बच्चों को घर से लाने से लेकर वापस घर छोड़ने तक की जिम्मेदारी उनकी टीम के हाथ में होती है। बच्चे के शिविर में पहुंचते ही इसकी सूचना भी माता-पिता को तत्काल मोबाइल पर पहुंच जाती है।
आधुनिक संसाधन के साथ रोचक तरीके से बच्चों को पाप-पुण्य, पूजन पद्धति, माता-पिता के साथ व्यवहार व जरूरतमंदों की मदद करने जैसे सकारात्मक कार्यो के लिए प्रेरित किया जाता है। इनकी टीम इंदौर, अहमदाबाद, मुंबई, बड़ौदा, खंडवा, मंदसौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलूर आदि स्थानों पर बच्चों को संस्कारों की शिक्षा देने के लिए निशुल्क कई आयोजन कर चुकी है।
बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन की रिसर्च टीम का हिस्सा रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर प्रकाश छाबड़ा के मुताबिक 2006 में वह अमेरिका से भारत आए। इसके बाद संस्कृत और अन्य दर्शन की पढ़ाई की। उन्होंने कहा कि बच्चों का चरित्र निर्माण हमारी पहली प्राथमिकता होती है, इसलिए हमने बच्चों को धर्म से जोड़कर संस्कारों की शिक्षा देने का लक्ष्य रखा। वेडर एंड मार्टिन कंपनी में चार्टर्ड अकाउंट रहीं पूजा छाबड़ा कहती हैं कि पहले इसमें रुचि नहीं थी, लेकिन इन बातों के मायने समझने पर वह भी अपने पति के साथ इन कामों में सहयोगी बन गई।
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