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Shaheed Bhagat Singh Jayanti 2022: शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार आज भी हैं प्रासंगिक, युवाओं को करते हैं प्रेरित

Shaheed Bhagat Singh Jayanti 2022 जेल में भगत सिंह लगभग दो साल रहे इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की।

By Shashank MishraEdited By: Published: Wed, 28 Sep 2022 03:42 PM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2022 03:42 PM (IST)
Shaheed Bhagat Singh Jayanti 2022: शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार आज भी हैं प्रासंगिक, युवाओं को करते हैं प्रेरित
अहिंसावादी विचारधारा से हुआ था भगत सिंह का मोहभंग

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। भगत सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी थे। उनमें राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट के भरी हुई थी। हंसते-हंसते देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत के लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर 1907 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पार्टी के सदस्य थे।

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अहिंसावादी विचारधारा से हुआ मोहभंग

भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करते थे। भगत सिंह अपने चाचा करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला था। देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोर देने वाले भगत सिंह ने नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरा था।

14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिये थे। महात्‍मा गांधी ने जब 1922 में चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को खत्‍म करने की घोषणा की तो भगत सिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुई गदर दल के हिस्सा बन गये। उन्‍होंने 1926 में देश की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्‍थापना की।

पीएम मोदी ने भी किया याद

पीएम मोदी ने देश के सपूत को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, "मैं शहीद भगत सिंह जी को उनकी जयंती पर नमन करता हूं। उनका साहस हमें बहुत प्रेरित करता है। हम अपने राष्ट्र के लिए उनके दृष्टिकोण को साकार करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं।"

कई भाषाओं के थे जानकार शहीद-ए-आजम

23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर षडयंत्र के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर लटका दिया। मृत्युदण्ड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, मगर जनाक्रोश से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही फांसी पर लटका दिया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिन्तक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने अकाली और कीर्ति दो अखबारों का संपादन भी किया था।

आइए डालते है भगत सिंह के विचारों पर एक खास नजर

  • बम और पिस्तौल से क्रान्ति नहीं आती, क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।
  • राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में आजाद है।
  • निष्‍ठुर आलोचना और स्‍वतन्त्र विचार, ये दोनों क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
  • प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं और देशभक्‍तों को अक्‍सर लोग पागल कहते हैं।
  • जिन्दगी तो केवल अपने कन्धों पर जी जाती है, दूसरों के कन्धे पर तो केवल जनाजे उठाए जाते हैं।
  • व्‍यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं।
  • निष्ठुर आलोचना और स्वतन्त्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
  • आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसी के अभ्यस्त हो जाते हैं। बदलाव के विचार से ही उनकी कम्कम्पी छूटने लगती है। इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की दरकार है।
  • वे मुझे कत्ल कर सकते हैं, मेरे विचारों को नहीं। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरे जज्बे को नहीं।
  • अगर बहरों को अपनी बात सुनानी है तो आवाज को जोरदार होना होगा। जब हमने बम फेंका तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना और उसे आजाद करना चाहिए।

ऐसे महान क्रांतिकारी, शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्म-दिवस पर देश उन्हें कोटि-कोटि नमन् करता है।

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