DATA STORY : भारत में यूं बनेंगे 'शून्य कार्बन उत्सर्जन शहर', 13 बिलियन डॉलर का होगा फायदा
शहर में दुनिया की 50 फीसद आबादी रहती है। ये शहर दुनिया की 78 फीसद ऊर्जा का उपभोग करते हैं और दो-तिहाई कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। शॉपिंग मॉल एसयूवी और बढ़ते एसी से ज्यादा उत्सर्जन होता है। इसके चलते जलवायु परिवर्तन भी तेजी से हो रहा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। धरती की 3 फीसद जमीन पर स्थित शहर दुनिया का 70 फीसद कार्बन उत्सर्जन करते हैं। शहरों में ऊर्जा की सबसे अधिक खपत भी होती है। हालांकि, अगर दुनिया के तापमान को आधी सदी तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने से रोकना है तो शहरों को नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना होगा। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने हालिया रिपोर्ट में बताया है कि भारत समेत दुनिया के शहर यह लक्ष्य कैसे हासिल कर सकते हैं। इस रिपोर्ट का नाम है- ‘नेट जीरो कार्बन सिटी: एन इंटिग्रेटेड एप्रोच’। इस रिपोर्ट में एक वैश्विक ढांचे और एक एकीकृत ऊर्जा दृष्टिकोण की सिफारिश की गई है। इसमें स्वच्छ विद्युतिकरण, स्मार्ट डिजिटल तकनीक और एफिशिएंट बिल्डिंग पर जोर दिया गया है। वहीं, पानी, कचरे और सामग्रियों के लिए सर्कुलर इकोनॉमी को अपनाना होगा। इन सबके जरिए ही शहरों को भविष्य के जलवायु और स्वास्थ्य संबंधी संकटों का सामना करने के लिए तैयार किया जा सकता है।
चुनौती क्या है
शहर में दुनिया की 50 फीसद आबादी रहती है। ये शहर दुनिया की 78 फीसद ऊर्जा का उपभोग करते हैं और दो-तिहाई कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। शॉपिंग मॉल, एसयूवी और बढ़ते एसी से ज्यादा उत्सर्जन होता है। इसके चलते जलवायु परिवर्तन भी तेजी से हो रहा है। वहीं एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक शहरों की आबादी कुल आबादी की 68 फीसद हो जाएगी। अगर हमने उपभोक्ता उपकरणों, जैसे एसी को बेहतर नहीं बनाया। मतलब अगर वे कम ऊर्जा में बेहतर ढंग से काम नहीं करेंगे तो 2030 तक ही बिजली की मांग में 50 फीसद की वृद्धि हो जाएगी।
तीन हैं लक्ष्य
नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए तीन मोर्चों पर काम करना होगा। पहली, ज्यादातर ऊर्जा अक्षय स्रोतों (पवन और सौर ऊर्जा) से हासिल करनी होगी। दूसरा, कार, सार्वजनिक यातायात और सारे हीटिंग सिस्टम को बिजली से चलाना होगा। तीसरा, हमें ज्यादा सक्षम तंत्र की जरूरत है। इसमें सब कुछ शामिल हैं- कारखाने, घर, परिवहन और उपभोक्ता उपकरण। सभी अधिक ऊर्जा कुशल और परस्पर जुड़े होने चाहिए। इसके लिए स्मार्ट एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर जरूरी है। स्मार्ट ऊर्जा बुनियादी ढांचे में एक किफायती, सुरक्षित बिजली वितरण ग्रिड, स्मार्ट मीटर और ई-मोबिलिटी चार्जिंग स्टेशन शामिल हैं।
डिजिटलाइजेशन
कार्बन का उत्सर्जन रोकने के लिए डिजिटलाइजेशन जरूरी है, जैसे-ऐसी तकनीक जिससे बिल्डिंग की कूलिंग और लाइटिंग को नियंत्रित किया जा सके। डिजिटल टूल से किसी फैक्ट्री को भी ज्यादा सक्षम तरीके से चलाया जा सकता है।
उत्सर्जन कम होने से भारत को होगा फायदा
भारत में ऊर्जा दक्षता से जुड़ा निवेश का अर्थशास्त्र मजबूत है। एसी की गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है। नए घर और ऑफिस की इमारतों को नए मानकों के आधार पर बनाया जा रहा है। वहीं ग्रीड ऑप्टीमाइजेशन पर जोर दिया जा रहा है, ताकि ट्रांसमिशन और वितरण में होने वाले बिजली के नुकसान को कम किया जा सके। इससे 2025 तक भारत का कार्बन उत्सर्जन 151 एमटी घट जाएगा। प्रदूषण घटने से 2030 तक 13 बिलियन डॉलर का फायदा होगा। वहीं 268 बिलियन लीटर पानी की खपत कम होगी।