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नक्सल प्रभावित बस्तर के प्राकृतिक सौंदर्य से दुनिया को करा रहे परिचित ये युवा

दल के पास आज आधुनिक एसएलआर श्रेणी के साथ फोर-के व ड्रोन कैमरे हैं, जिनका इस्तेमाल वे वृत्तचित्र बनाने में करते हैं। यह संसाधन उन्होंने आपस में चंदा कर जुटाए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 10:41 AM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 10:41 AM (IST)
नक्सल प्रभावित बस्तर के प्राकृतिक सौंदर्य से दुनिया को करा रहे परिचित ये युवा

रीतेश पांडेय, जगदलपुर। नक्सल हिंसा के चलते देश-दुनिया के सामने बस्तर की वह सुंदर छवि कहीं खो गई, जिसका वह हकदार रहा है। हिंसा की भयावह तस्वीर ही इसकी पहचान बन गई। अकूत प्राकृतिक वैभव से संपन्न यह भूभाग आज भी अपनी असल पहचान को जूझ रहा है। ‘दंडक दल’ की कोशिश रंग लाती दिख रही है। प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, यहां के आदिवासियों का भोलापन, उनका सांस्कृतिक सौंदर्य भी नक्सल हिंसा के चलते दुनिया के सामने नहीं आ पाया है। बस्तर की बिगड़ चुकी तस्वीर को बदलने में जुटा हुआ है दंडक दल। शहरी पढ़े-लिखे व ठेठ आदिवासियों के करीब 50 युवाओं का यह दल सिनेमा, वृत्तचित्र और सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया के सामने बस्तर की सुंदर व सकारात्मक तस्वीरें प्रस्तुत करने में सफल हो रहा है।

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अब तक 25 लघु वृत्तचित्र

पुरातात्विक धरोहरों, मंदिरों व सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित 25 से अधिक लघु वृत्तचित्र बनाने के साथ ही बस्तर की पहली हल्बी भाषा में फिल्म ‘मोचो मया’ बनाकर यह टीम इतिहास रच चुकी है। इनके द्वारा स्वच्छता पर बनाए गए वृत्तचित्र ‘सुनो मन’ को बीते वर्ष केंद्र सरकार द्वारा प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया था।

इस तरह हुई शुरुआत

दंडक दल के संस्थापक सदस्य स्थानीय आर्टिस्ट अविनाश प्रसाद बताते हैं कि एक दिन दोस्तों के साथ चाय पी रहे थे। बातों ही बातों में बस्तर पर चर्चा छिड़ गई। यहां की नकारात्मक छवि को लेकर सभी ने चिंता जताई। इसी बीच बात निकली कि क्यों न इसके लिए कुछ किया जाए। फिर क्या था, हेमंत कश्यप, रजनीश पाणिकर, गुफा विज्ञानी जयंत विश्वास व भूगर्भशास्त्री जितेंद्र नक्का के साथ दंडक दल का गठन हो गया। धीरे-धीरे आदिवासी युवाओं को भी जोड़ना शुरू किया, इससे मनचाही राह मिल गई।

आज संभाग के अलग-अलग स्थानों से 50 से अधिक युवा इस दल में हैं। हल्बी फिल्म मोचो मया में बिना पारिश्रमिक लिए ही स्थानीय कलाकारों ने सहयोग किया। छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री ने इसके निर्माता-निदेशक को पुरस्कृत किया। आर्थिक दिक्कतों के बावजूद यह दल पूरी तरह सक्रिय है। आज इस दल में कविता, आरती शर्मा, फातिमा, फूलवति बघेल, मुन्ना बघेल, उमेश कश्यप, मोतीराम, कमल कुमार, यशपाल, चंद्रशेखर, पदमनाथ कश्यप, हरेराम, शिवशंकर, लूमन बघेल, पूरन नाग, जागृति नाग आदि शामिल हैं।

खोज निकाले कई मनोरम स्थान

दल के सदस्यों ने ग्रामीणों की मदद से बीते कुछ वर्षों में डूमरकरपन, जोंदरी करपन, मेंडरापारी व हरिगुफा की खोज की है। ये गुफाएं कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में संभाग मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। इसी दल ने बारसूर क्षेत्र के मनोरम जलप्रपात हांदावाड़ा, शिवगंगा नदी व घाटी के ऊपर स्थित लघु प्रपात को पर्यटन विभाग के संज्ञान में लाने का काम किया और सोशल मीडिया पर दुनिया को इनके दीदार कराए। पर्यटन विभाग अब इनके संरक्षण की योजना बना रहा है। हांदावाड़ा में दल के सदस्यों को नक्सल धमकी भी मिली, मगर परवाह नहीं। इस दल ने बारसूर इलाके में ही इंद्रावती नदी घाट के छोटे छिंदनार में मगरमच्छों के नैसर्गिक वास पर वृत्तचित्र बनाया।

आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल

दल के पास आज आधुनिक एसएलआर श्रेणी के साथ फोर-के व ड्रोन कैमरे हैं, जिनका इस्तेमाल वे वृत्तचित्र बनाने में करते हैं। यह संसाधन उन्होंने आपस में चंदा कर जुटाए हैं। वर्तमान में यह दल अबूझमाड़ क्षेत्र में विलुप्त हो रही घोटुल परंपरा व दंतेश्वरी मंदिर पर फिल्म बना रहा है। प्रशासन की ओर से आयोजित लोकोत्सव में इनके बनाए वृत्तचित्रों का नि:शुल्क प्रदर्शन किया जाता है।

नक्सल समस्या को लेकर दुनिया के सामने बस्तर की जो छवि बन गई है, उससे तकलीफ होती है। यहां की वादियां, नदियां, यहां के जंगल व वन्यजीव, चारों तरफ फैली हरियाली, यहां की लोक परंपरा, लोकोत्सव, हर चीज से हमें प्रेम है। पर्यटन की यहां ढेर संभावनाएं हैं। दंडक दल का मकसद बस्तर की बिगड़ी हुई छवि को बदलना है।

- अविनाश प्रसाद, संस्थापक सदस्य,

दंडक दल 


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